तपती रेत, संसाधनों का अभाव, लेकिन हौसलों से भरी उड़ान, जीते पदक
बाड़मेर। राष्ट्रीय खेल दिवस बाड़मेर. रेगिस्तान की तपती रेत, पानी की कमी और संसाधनों का अभाव। इन हालातों में अक्सर बच्चों के लिए खेल एक सपना बनकर रह जाता है। लेकिन रेगिस्तान की यही धरती उन होनहार खिलाडिय़ों को तैयार कर रही है, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों को मात देकर खेलों में देश और प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया।
अली मोहम्मद: बास्केटबॉल कोर्ट से भारतीय टीम तक
बाड़मेर जिले के सोखरू गांव के मोहम्मद अली की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं। गांव और स्कूल में सुविधाओं का अभाव था। अली ने हार नहीं मानी और हाई स्कूल के मैदान में ही दिन-रात पसीना बहाते रहे। लगातार मेहनत और अभ्यास के दम पर वर्ष 2016-17 में उन्होंने भारतीय बास्केटबॉल टीम में जगह बनाई। देश का प्रतिनिधित्व करने का सपना साकार हुआ। अली ने साउथ एशियन चैम्पियनशिप में गोल्ड मेडल जीता। बाद में खेल कोटे से वे पुलिस सेवा में भर्ती हुए। अली बताते हैं कि रेगिस्तान से निकलकर देश की टीम में खेलना किसी सपने जैसा था।
खेताराम : बाड़मेर के पहले ओलम्पियन
बाड़मेर के खोखसर गांव में किसान परिवार में जन्मे खेताराम का बचपन खेतों और गांव की स्कूल तक दौड़ते-दौड़ते बीता। गरीबी और संसाधनों की कमी के बावजूद हार नहीं मानी। भारतीय सेना में हवलदार रहते हुए उन्होंने दौड़ को अपना जीवन बना लिया। वर्ष 2016 में वे रियो ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करने वाले बाड़मेर के पहले खिलाड़ी बने। मैराथन धावक के रूप में उन्होंने 155 देशों के 167 धावकों के साथ प्रतिस्पर्धा की और 26वां स्थान प्राप्त किया। खेताराम ने दो बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया और दो गोल्ड मेडल जीते। आज वे सेना में सूबेदार पद पर उत्तराखंड में तैनात हैं। वे बताते हैं कि बाड़मेर में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है, कमी है तो संसाधनों और खेल मैदानों की। अगर गांवों में सुविधाएं मिलें तो यहां से और भी खिलाड़ी देश का नाम रोशन करेंगे।
जितेंद्रसिंह मगरा: एशियाई खेलों के रजत विजेता
सीमावर्ती मगरा गांव के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले जितेंद्र मगरा ने एशियाई खेलों में घुड़़सवारी टीम स्पर्धा में रजत पदक जीतकर देश और जिले का नाम रोशन किया था। 2010 में सेना में भर्ती हुए जितेंद्र ने मेरठ के रिमाउंट वेटरनरी कोर (आरवीसी) से घुड़सवारी की बारीकियां सीखीं। विदेश में छह माह विशेष प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने भारतीय टीम का हिस्सा बनकर एशियाई खेलों में शानदार प्रदर्शन किया। गांव के सरकारी स्कूल से शुरू हुई उनकी पढ़ाई आठवीं तक देताणी स्कूल में पूरी हुई। इसके बाद वे मेरठ चले गए। कठिन परिस्थितियों के बावजूद जितेंद्र ने मेहनत और लगन से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई।
थार के जूडो सितारे
खेताराम चौधरी: जूडो के मार्गदर्शक
बाड़मेर के जूडो और कुश्ती प्रशिक्षक खेताराम चौधरी ने तीन दशक तक खिलाडिय़ों को तराशा। राउमावि सुथारों का तला में सेवाएं देते हुए उन्होंने लगभग 150 खिलाडिय़ों को राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाया। करीब बारह खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय पदक जीते। उनकी कोचिंग से तैयार कई खिलाड़ी आज भी बड़े मंचों पर खेल रहे हैं। वर्तमान में खेताराम राउमावि सनावड़ा में सेवाएं दे रहे हैं और नई पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
रेखाराम सियोल: अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता
रेखाराम सियोल ने जूडो में अपनी पहचान बनाई। वर्ष 2002 से भारतीय रेलवे में सेवाएं देते हुए वे लगातार रेलवे टीम का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीतकर बाड़मेर का नाम रोशन किया।
गंगा चौधरी: राष्ट्रीय स्तर पर दो पदक विजेता
बाड़मेर की जूडो खिलाड़ी गंगा चौधरी ने 2012 में खेल यात्रा शुरू की। अब तक वह 15 राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं का हिस्सा बन चुकी हैं। गंगा ने 2018 के खेलो इंडिया टूर्नामेंट में कांस्य पदक और राष्ट्र स्तरीय ओपन जूडो प्रतियोगिता में रजत पदक जीतकर अपनी प्रतिभा साबित की। गंगा का सपना है कि आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करें।