31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

सहारनपुर

तौबा करे करवाचौथ का व्रत रखने वाली लखनऊ की महिला : देवबंदी आलिम

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्कसहारनपुर। करवा चौथ का व्रत रखकर हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देने की कोशिश करने वाली मुस्लिम महिला से देवबंदी आलिम ने नाराजगी जताई है। सिर्फ नाराजगी ही नहीं जताई बल्कि महिला और उसके पति को अल्लाह से तौबा करने की नसीहत भी दी है।

Google source verification

दरअसल लखनऊ के मलीहाबाद में रहने वाली एक मुस्लिम महिला ने बुधवार को करवा चौथ का व्रत रखा था। इस व्रत को रखने के बाद महिला ने कहा था कि अगर दोनों मजहब के लोग एक दूसरे के रीति रिवाज अपनाएंगे और त्योहार मनाएंगे तो इससे सौहार्द बढ़ेगा और भाईचारे का संदेश जाएगा।

यह भी पढ़ें: 10 लाख तक का बिजनेस शुरू करने के लिए लोन देने में बैंक करे आनाकानी तो यहां करें शिकायत

महिला का यह बयान और कार्य सोशल मीडिया पर वायरल हो गया था। इसके बाद सोशल मीडिया पर महिला को तरह-तरह के कमेंट मिलने शुरू हो गए। कोई महिला के इस कार्य की तारीफ कर रहा था तो किसी ने इसको गलत ठहराया। इसी बीच दारुल उलूम वक्फ देवबंद के शेखुल हदीस मौलाना अहमद खिजर शाह मसूदी ने इस पूरे मामले पर अपना बयान देकर लखनऊ के दंपति को सकते में डाल दिया।

यह भी पढ़ें: मांग में सिंदूर सजाकर थाने पहुंची युवती, बोली- मुझे कोई भगाकर नहीं ले गया था…

मौलाना ने कहा है कि शरीयत के अनुसार एक दूसरे के मजहब और उनके धार्मिक कार्यक्रमों को अपनाने से आपसी सौहार्द नहीं बढ़ता। आपसी सौहार्द बढ़ाने के और बहुत से तरीके हैं जिन्हें किया जा सकता है। यह कहते हुए उन्होंने लखनऊ की इस महिला के व्रत को गलत करार दिया है। उन्होंने कहा है कि सौहार्द बढ़ाने के लिए एक दूसरे को शुभकामनाएं दी जा सकती हैं मुबारकबाद दी जा सकती हैं और तोहफे भी दिए जा सकते हैं।

यह भी पढ़ें: Ahoi Ashtami 2020: 258 साल बाद अहोई अष्टमी पर बन रहा है पंच महायोग, जानिए इसका महत्व

आलिम ने कहा है कि उक्त दंपति ने जो किया है वह उचित नहीं है। लखनऊ के दंपति को अपने किए पर अल्लाह से माफी मांगनी चाहिए तौबा करनी चाहिए। इस मामले पर मदरसा जामिया शेखुल हिंद के मोहतमिम मुफ्ती असद काजमी ने भी कहा है कि अगर कोई एक दूसरे के मजहब के रीति-रिवाजों के अमल में रहता है तो वह उसकी अपनी आजादी हो सकती है वह उसका अपना व्यक्तिगत विचार भी हो सकता है। इससे समाज में कोई उचित और सही संदेश जाए यह जरूरी नहीं है।

देवबंदी उलेमा व इत्तेहाद उलेमा-ए-हिन्द के उपाध्यक्ष मुफ्ती असद कासमी कहते हैं कि, जो भी व्यक्ति इस्लाम को मानते हैं इस्लाम को मानने वाले हैं उनके लिए सिर्फ रोजा है और वह भी शरीयत के अनुसार। अगर दूसरे मजहब के व्रत रखे जाते हैं तो इस्लाम में यह जायज नहीं है। एक सवाल के जवाब में वह बोले कि, हर व्यक्ति जानता है कि इस्लाम क्या कहता है और क्या नहीं कहता ? बावजूद इसके अगर कोई व्रत रखता है या दूसरे धर्म के कार्यों को अपनाता है तो यह उसका व्यक्तिगत मामला हो सकता है उसकी अपनी व्यक्तिगत आजादी हो सकती है। इस्लाम किसी के ऊपर कोई जबरदस्ती नहीं करता कोई दबाव नहीं डालता।

deoband-4.jpg

जमीयत दावतुल मुस्लिमीन के अध्य्क्ष मौलाना कारी इसहाक गोरा का कहना है कि सबके मजहब के अपने-अपने कायदे और कानून होते हैं। करवा चौथ मजहब-ए-इस्लाम में नहीं है। जो लोग इसको अपनाते हैं या अपना रहे हैं तो उनका मजहब-ए-इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं हो सकता। अगर कोई चीज इस्लाम में नहीं है और फिर भी उसको किया जाता है तो यह सीधे तौर पर इस्लाम के खिलाफ कार्य माना जाएगा। मैं समझता हूं कि जिसका जो मजहब है उसको उसी के कायदे और कानूनों के अनुसार चलने की जरूरत है। जो लोग किसी दूसरे मजहब में होकर किसी तीसरे मजहब का रवैया अख्तियार करते हैं तो ऐसे लोगों में मुझे तो ढोंग नजर आता है दिखावा नजर आता है अगर कोई ऐसा करता है तो वह ढोंग और दिखावा ही है।

deoband-2.jpg