बेतवा नदी में जम रही काई, प्रदुषण के कारण मर रहे जीव
पर्यावरण संरक्षण के तमाम दावों के बीच जिले में जल प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है। बेतवा नदी में काई की छाई एक परत वर्तमान हालात को बयां करने के लिए पर्याप्त है। बेतवा नदी में बढ़ते प्रदूषण के चलते जलीय जीव भी दम तोडने लगे हैं। मछलियां व कछुए आए दिन नदी में मृत अवस्था में तैरते हुए देखे जा रहे हैं। नदी का खराब पीपीएम
एसएटीआइ के सेवानिवृत्त प्रोफेसर व पर्यावरणविद् डॉ. आरएन शुक्ला के अनुसार नदियों के पानी में कोलीफॉर्म जीव 500 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) प्रति मिली लीटर से कम होना चाहिए। जबकि बेतवा नदी के पानी की जांच में पीपीएम 5000 प्रति मिली लीटर पाया गया है। इसी प्रकार घुलित ऑक्सीजन 6 पीपीएम या अधिक होना चाहिए, लेकिन ऑक्सीजन का स्तर प्रति मिली लीटर में मात्र 3 पीपीएम है।
जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (बीओडी) 5 दिन में 20 से 10 पीपीएम या उससे कम होने चाहिए। जबकि बेतवा के पानी में बीओडी 100 तक रहता है। मुक्त अमोनिया 1.2 पीपीएम या उससे कम होना चाहिए। जबकि इसका स्तर 50 पीपीएम है। इसी तरह केमिकल ऑक्सीजन की मांग (सीओडी) 50 पीपीएम होना चाहिए। जबकि सीओडी का स्तर 250 पीपीएम तकपाई गई है।
नदी के पानी में पाए गए घातक तत्व
इसी प्रकार कैडमियम, क्रोमियम, लेड, पारा व आर्सेनिक जैसे जहरीले तत्व में पानी में पाए जा रहे हैं। यह नदी के पानी के प्रदूषण के स्तर को बयां करने के लिए पर्याप्त है। नदी के इस कदर प्रदूषित होने का प्रमुख कारण उसमें शामिल हो रहे शहर के पांच गंदे नाले हैं। नदी में चोरघाट नाला, पीलिया नाला, जतरापुरा क्षेत्र का नाला, नौलखी घाट व चरणतीर्थ घाट पर मिलने वाले नाले से दूषित पानी शमा रहा है। इन नालों के पानी का ट्रीटमेंट करने की व्यवस्था नगर पालिका के पास नहीं है। कम होता गया वन क्षेत्र
कृषि प्रधान जिले में वन क्षेत्र करीब 1138 वर्ग किलोमीटर में फैला था, जो धीरे-धीरे सिमट कर करीब 990 वर्ग किलोमीटर तक पहुंच गया है। सात रेंज वाले वन क्षेत्र में लटेरी उत्तर व लटेरी दक्षिण के अलावा शमशाबाद क्षेत्र में सागौन जैसी अन्य कीमती लकडियां पाई जाती है। यही वजह है कि इन तीनों वन परिक्षेत्र में जंगल को सबसे अधिक नुकसान हुआ है। इसके अलावा गंजबासौदा वन क्षेत्र में पत्थर के खनन के चलते जंगल उजाड़े जा रहे हैं। सबसे घने जंगल ग्यारसपुर के साथ विदिशा व सिरोंज परिक्षेत्र में भी पट्टा पाने की चाहत खेती करने के लिए जंगल उजाड़े गए हैं।
केन-बेतवा लिंक परियोजना भी बना कारण
इतना ही नहीं सिरोंज वन परिक्षेत्र के बामौरी होज, कल्यानपुर व कांजीखेड़ी में केन बेतवा लिंक परियोजना के चलते व विदिशा वन परिक्षेत्र के गंगवारा में दरगांव सिंचाई टैंक के चलते जंगल को बड़ी क्षति पहुंची है। इसी प्रकार सिरोंज के खामखेड़ा, मुगलसराय, चितावर, भीकमपुर, शमशाबाद परिक्षेत्र के जाटबरखेड़ा, जमनयाई, अगरा में भी जंगल की सूरत बिगड़ी है। वन विभाग के अधिकारी भी इस स्थिति को स्वीकार कर रहे हैं। उनकी ओर से पौधरोपण कर क्षतिपूर्ति करने का प्रयास किया जा रहा है। आगे आए लोग, बदल रही स्थिति
पर्यावरण संरक्षण को लेकर जिले भर में लोग आगे आए हैं। यही वजह है कि अब प्रदूषण से राहत मिलने की उमीद जगी है। बेतवा नदी को प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए एक ओर जहां बेतवा उत्थान समिति की ओर से नियमित रूप से दो दर्जन से अधिक सदस्य विभिन्न घाटों पर श्रमदान कर रहे हैं। प्रदूषित नालों को नदी में जाने से रोकने के लिए पर्यावरण मित्र नीरज चौरसिया ने एनजीटी में मुद्दा उठाया है। इससे नालों के पानी को शुद्ध करने के लिए नगर पालिका की ओर से ट्रीटमेंट प्लांट बनाने की कवायद शुरू की गई है।
हवा प्रदूषित, एक्यूआइ सामान्य से अधिक
विदिशा शहर में बढ़ते उद्योगों के चलते यहां की हवा भी प्रदूषित हो रही है। पिछले एक सप्ताह का वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) कुछ ऐसा ही बयां कर रहा है। हालांकि 4 जून बुधवार को वायु की गुणवत्ता सामान्य रही। एक्यूआइ 79 दर्ज किया गया। जबकि मंगलवार को 85, सोमवार को 91, रविवार को 99, शनिवार को 100 और शुक्रवार को 106 दर्ज किया गया। एक्यूआइ 100 से अधिक होने की स्थिति में लोगों को सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती हैं। यह स्थिति लगातार हो रही बारिश के चलते है। मौसम शुष्क होने की स्थिति में एक्यूआइ हमेशा 100 के उपर दर्ज किया जा रहा है।
अब की 5 लाख पौधरोपण की योजना
उजड़ रहे जंगलों की क्षतिपूर्ति के लिए वन विभाग की ओर से इस बार साढ़े 5 लाख पौधों के रोपण की योजना बनाई गई है। इनमें लगभग सभी वन परिक्षेत्र के प्रभावित जंगल शामिल हैं। लघुवनोपज संघ की ओर से भी 30 लोकेशन में 18500 पौधों के रोपण की योजना बनाई गई है। पौधरोपण की योजना काटे गए पेड़ों की तुलना में 10 गुना हैं।