रामजन्म भूमि अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का शिलान्यास विश्व भर में सनातन संस्कृति में आस्था रखने वालों के लिए गौरव का मौका है। हर शहर, हर गांव इस उत्सव का सहभागी बनना चाहता है, लेकिन कोरोना काल ने मर्यादा पुरुषोत्तम के इस कार्य को भी मर्यादाओं में बांध दिया। ये मर्यादाएं हैं, कहीं कोई बड़ा आयोजन न करने की, भीड़ एकत्रित न होने की, फिर भी रामलला के इस उत्सव में हर कोई अपने-अपने ढंग से शामिल होना चाहता है। भगवान राम के भतीजे यानी शत्रुघ्न के पुत्र यूपकेतु के राज्य वाली इस नगरी में भगवान राम के पवित्र चरण चिन्ह होने की मान्यता है। यही कारण है कि बेतवा तट के एक हिस्से को चरणतीर्थ धाम के नाम से जाना जाता है। अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास का उत्सव चरणतीर्थ धाम पर भी मनेगा। सीमित लोगों की मौजूदगी में यहां भगवार राम के पावन चरणचिन्हों की विशेष पूजा होगी और मंदिर को दीपों तथा बिजली की झालरों से से सजाया गया है।
आज भी हैं श्रीराम के चरणों के निशान
यह भी मान्यता है कि जब भगवान राम यहां से जाने लगे तब उन्होंने अपने भक्तों के अनुरोध पर यहां अपने चरण चिन्हों की निशानी छोड़ी थी, जो आज भी चरणतीर्थ के मंदिरों में मौजूद हैं। बाद में 1775 के करीब चरणतीर्थ धाम पर शिवजी के दो मंदिर बना दिए गए। इनमें से एक मंदिर पहले मराठा सेनापति और भेलसा के सूबा खांडेराव अप्पाजी ने बनवाया और फिर दूसरा मंदिर उन्हीं की बहन ने बनवाया था। चरणतीर्थ मंदिर के पुजारी पं. संजय पुरोहित बताते हैं कि जब अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर का शिलान्यास होगा, तब विदिशा के इस चरणतीर्थ धाम में भी भगवान राम के चरण चिन्हों की विशेष पूजा और राम संकीर्तन का आयोजन होगा। सीमित लोगों की उपस्थिति में ही सही, लेकिन इस उत्सव को मनाएंगे जरूर। मंदिर परिसर पर विद्युत सज्जा कराई गई है और दीपों से पूरा परिसर जगमगाएगा।
रामायण में भी है विदिशा का उल्लेख
रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम ने विदिशा का राज्य शत्रुघ्न के पुत्र यूपकेतु को सौंपा था, जिन्होंने यहां शासन भी किया। यह भी मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान राम और लक्ष्मण यहां से होकर गुजरे थे। महर्षि च्यवन के बेतवा तट स्थित आश्रम पर वे मुनि से मिलने गए थे और उनकी आज्ञा से ही बेतवा के जिस कुण्ड में राम-लक्ष्मण ने स्नान किया था उसे चरणतीर्थ के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि कई लोग इसे चरणतीर्थ की जगह यहां महर्षि च्यवन की तपोभूमि होने के कारण च्यवनतीर्थ भी कहते हैं।