
विदिशा से जनसंघ के पहले विधायक बने थे शंभू सिंह, कभी हीरो बनने चले गए थे मुंबई, बंदूक की नोक पर वापस लाईं थी क्षत्राणी मां
विदिशा/ भले ही पहले पर्दा प्रथा का प्रचलन हो और महिलाओं को घर की चार दीवारी में ही ज्यादा रहना पड़ता हो। लेकिन जब-जब जरूरत पड़ी, तो यही महिलाएं वीरांगना की तरह घर की दहलीज लांघकर निकलीं और अपने सबला होने का प्रमाण भी समाज को दिया। ऐसी ही एक क्षत्राणी छोटी हवेली में भी थीं, नाम था रतनकुंवर बाई।
कई बार लांघनी पड़ी घर की दहलीज
जब घर के मुखिया भैरोंसिंह का जल्दी ही देहांत हो गया और उनका बेटा बहुत छोटा था तो कई बार उन्हें अपने घर की दहलीज लांघना पड़ी और वे हाथ में बंदूक लेकर बैलगाड़ी में निकल पड़तीं थीं। अपने खेतों को अतिक्रमण कारियों से मुक्त कराने। इतना ही नहीं जब जवानी में उनके बेटे शंभूसिंह एक बार हीरो बनने की चाहत में मुंबई पहुंच गए थे, तो वे भी पीछे से जा पहुंचीं थीं बंदूक लेकर उन्हें वापस विदिशा लाने के लिए। वे आज नहीं हैं, शंभू सिंह भी नहीं हैं, लेकिन उनके ही वंशज शिवेंद्र सिंह और उनका परिवार अब भी छोटी हवेली में उनकी विरासत को सहेजे हुए है। दरअसल ऐसी ही हवेलियों, गढ़ियों में जिले के इतिहास के कई पन्ने अब भी लिखे पड़े हैं।
निराश्रित महिला समझकर करना चाहते थे लोग संपत्ति पर कब्जा
छोटी हवेली के शिवेंद्र सिंह राजपूत अपने बुजुर्गों से सुनी बातों और यादों को कुरेदते हुए बताते हैं कि, ये हवेली मोती सिंह की थी। उनके कोई संतान नहीं हुई तो उन्होंने सांगुल से चंदेल परिवार के तख्त सिंह को गोद लिया, तख्त सिंह के पुत्र हुए भैरों सिंह। भैरों सिंह का विवाह रतनकुंवर बाई से हुआ जिनसे शंभूसिंह जन्में। लेकिन शंभूसिंह जब छोटे थे तभी पिता भैरोंसिंह का निधन हो गया और सारी जिम्मेदारी आ पड़ी शंभू सिंह की मां रतन कुंवर बाई पर। पति की मृत्यु के बाद रतन कुंवर का घर से निकलना नहीं हुआ, उधर निराश्रित महिला समझ लोगों ने भैरों सिंह की संपत्ति और खेतों पर कब्जा जमाना शुरू कर दिया।
फिल्मों में हीरों बनने मुंबई पहुंच गए थे शंभू सिंह
तब बेटे की परवरिश की खातिर अपने पति की विरासत को बचाने रतनकुंवर ने घर की दहलीज लांघने का निर्णय लिया और निकल पड़ीं हाथ में बंदूक लेकर बैलगाड़ी से। वे खेतों में पहुंचीं और बंदूक की दुहाई देकर लोगों द्वारा किया गया जबरिया कब्जा हटाने को कहा। उनकी पहल कारगर सिद्ध हुई और लोगों ने कब्जे हटा लिए। जब शंभूसिंह बड़े हुए तो वे ग्वालियर पढ़ने गए। इसी बीच उनके दमकते चेहरे और कदकाठी को देख किसी ने उन्हें मुंबई जाकर हीरो बनने की सलाह दी। युवावस्था में ये बात उन्हें जम गई और वे पहुंच गए मायानगरी में। घर में मां परेशान कि- शंभू कहां गया? पता चला तो ट्रेन में बंदूक लेकर चल पड़ीं और मुंबई में जाकर शंभू को ढूंढ निकाला। पहले फटकार लगाई और फिर ले आईं अपने साथ।
जनसंघ के निशान पर विदिशा से विधायक बने शंभू सिंह
इसके बाद शुरू हुआ शंभूसिंह राजपूत का राजनीतिक सफर। विजयाराजे सिंधिया ने कांगे्रस को छोड़कर जनसंघ से गठजोड़ किया और शंभूसिंह जनसंघ के निशान पर विदिशा से विधायक का चुनाव लड़े और जीते। वो विदिशा से जनसंघ के पहले विधायक बने। शंंभूसिंह ने ही पुरानी हवेली का काफी कुछ जीर्णोद्धार किया, अब भी हवेली में बावड़ी है। लेकिन हवेली अब नाम की बची है, नक्शा काफी बदल गया है। लेकिन छोटी हवेली में अब भी मोतीसिंह, रतनकुंवर बाई और शंभूसिंह के चेहरों की दमक तस्वीरों में सहेजी हुई हैं।
आज भाजपा के कार्यकर्ता हैं शंभूसिंह के वंशज
मात्र 37 वर्ष की उम्र में ही विधायक रहते शंभूसिंह का निधन हो गया। शंभूसिंह के पुत्र शिवेंद्र सिंह, पुत्रवधु अनीता राजपूत और शिवेंद्र के पुत्र यश, पुत्रवधु मोनिका और पुत्री महिमा सिंह हैं। शंभूसिंह के बड़े पुत्र महेंद्र और पुत्री साधना सिंह भी हैं। शिवेंद्र और अनीता राजपूत अब भी उसी भाजपा के कर्मठ कार्यकर्ता बने हुए हैं, जो उनके पिताजी के समय जनसंघ थी और जिसके पहले विधायक बनने का मौका भी उनके पिता को ही मिला था।
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Updated on:
27 Jun 2021 12:51 pm
Published on:
27 Jun 2021 12:31 pm
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