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बनारस के मणिकर्णिका घाट पर सदियों से किया जा रहा यह काम, लोगों को नहीं लगता कोई डर

बाबा काशी विश्वनाथ ने अपना गौना कराने के बाद दूसरे दिन यहां के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में अपने गणों के साथ होली खेली थी।

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Arijita Sen

Jul 06, 2018

मणिकर्णिका घाट

बनारस के मणिकर्णिका घाट पर सदियों से किया जा रहा यह काम, लोगों को नहीं लगता कोई डर

नई दिल्ली। होली के त्योहार को बीते हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इस त्योहार को पूरे देश में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लोग एक-दूसरे को रंग,गुलाल और अबीर से रंग देते हैं, लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं जो रंग के बजाया चिता के भस्म से होली खेलते हैं। हम यहां काशी की बात कर रहे है जहां रंग,अबीर और गुलाल के बजाय चिता के भस्म से होली खेली जाती है।

हैरान कर देने वाली यह बात बिल्कुल सच है। पुरातन शहर बनारस की यह परंपरा बहुत प्राचीन है। यहां होली के दिन लोग मणिकर्णिका घाट पर चिताओं के भस्म से होली खेलते हैं। इस दिन लोग आपसी रंजिश को मिटाकर भेदभाव, छुआ-छूत, पवित्र-अपवित्र की भावना से परे होकर एक दूसरे पर भस्म फेंकते हैं। यहां हवा में सिर्फ भस्म ही उड़ता है। यह नजारा बेहद अद्भुत होता है।

यहां मणिकर्णिका घाट पर चिता की राख से होली खेलने के पीछे की मान्यता भी काफी रोचक है। ऐसी मान्यता है कि, बाबा काशी विश्वनाथ ने अपना गौना कराने के बाद दूसरे दिन यहां के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट में अपने गणों के साथ होली खेली थी। इसी के चलते काशी में हर साल मणिकर्णिका घाट में राख की होली खेलने की इस परंपरा का पालन किया जाता है।

काशी का मणिकर्णिका घाट विश्व प्रसिद्ध है। यहां अनादि काल से चिताएं जल रही हैं और आज तक यह घाट कभी भी बिना चिता के नहीं रहा है। जिंदगी के परम सत्य से रूबरू कराने वाले इस घाट पर जब भस्म से होली खेली जाती है तो नजारा देखने लायक होता है। एक तरफ जहां चिता की लपटें उठती है वहीं दूसरी ओर ‘हर हर महादेव’ के उदघोष के साथ चिता के भस्म को हवा में उड़ाया जाता है। एक श्मशान का यह नजारा वाकई में विरल और दिल को छू लेने वाली है।