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सावधान! जान लीजिए क्यों नहीं खाना चाहिए ‘तेरहवीं का भोजन’, पीछे छुपा है ये बड़ा रहस्य

हिंदू धर्म में करवाया जाता है तेरहवी का भोजन महाभारत काल से जुड़ा है रहस्य

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Know why you should not eat thirteenth meal

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नई दिल्ली: जो इंसान इस दुनिया में आया है उसका जाना भी तय है क्योंकि ये विधि का विधान है, इसको कोई नहीं बदल सकता। वहीं जब कोई व्यक्ति दुनिया छोड़कर चला जाता है, तब के लिए भी कई नियम बनाए गए हैं जैसे कि जन्म के बाद होते हैं। इसमें अंतिम संस्कार क्रिया, श्राद्ध, तेरहवीं का भोज जैसी चीजें शामिल हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृत्युभोज क्यों नहीं खाना चाहिए? चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं।

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वैसे सभी धर्मों में अनेकों नियम ऐसे हैं जो काफी पहले से चले आ रहे हैं। इसी में से हिंदू धर्म ( Hindu dharma ) में एक नियम है 'मृ्त्युभोज'। दरअसल, हिन्दू धर्म में मुख्य 16 संस्कार बनाए गए है, जिसमें प्रथम संस्कार गर्भाधान एवं अन्तिम तथा 16वां संस्कार अन्त्येष्टि है। इस प्रकार जब सत्रहवां संस्कार बनाया ही नहीं गया तो सत्रहवां संस्कार 'तेरहवीं का भोज' क्यों? तेरहवी का भोज करने वैसे तो कई लोग जाते हैं, लेकिन वो शायद ये बात नहीं जानते। हालांकि, पहले मृत्युभोज सिर्फ वहीं लोग खाते थे जो लोग अंतिम क्रिया में घाट गए होते थे। लेकिन समय बदला तो इसमें अन्य लोग भी मतलब परिवार के बाकी सदस्य भी शामिल होने लग गए।

धर्म ग्रन्थ में मृत्युभोज का विधान वैसे तो कहीं नजर नहीं आता। वहीं महाभारत के अनुशासन पर्व में लिखा है कि मृत्युभोज खाने वाले की ऊर्जा नष्ट हो जाती है। दरअसल, महाभारत का युद्ध होने को था, अतः श्री कृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर युद्ध न करने के लिए संधि करने का आग्रह किया। दुर्योधन द्वारा आग्रह ठुकराए जाने पर श्री कृष्ण को कष्ट हुआ और वो चल पड़े। तब दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि ''सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः'' अर्थात जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।