
रामजी ऐसे ही नहीं कहलाते हैं तेजस्वी, इसी मामूली चीज का था असर
प्राचीन काल में लोग जूते की जगह पैरों में पहनने के लिए खड़ाऊ का इस्तेमाल करते थे। उस दौर में चमड़े या लेदर से बने जूतों की जगह खड़ाऊ को प्राथमिकता दी जाती थी। पहले के जमाने में साधु-संत सहित साधारण लोग भी खड़ाऊ पहनते थे।
हालांकि आज इसका चलन बहुत कम हो गया है लेकिन बावजूद इसके कुछ बुजुर्ग सहित साधू या संत वर्तमान समय में भी खड़ाऊ का उपयोग करते नजर आते हैं।
आखिर इसकी ऐसी क्या वजह हो सकती है कि आज के जमाने में चमड़े या रबड़ के जूते की जगह ये लोग खड़ाऊ पहनना ही बेहतर समझते हैं। तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर आज भी खड़ाऊ का चलन क्यों बरकरार है? क्यों आज भी लोग इसका प्रयोग करते हैं?
सबसे पहले आपको बता दें कि इसके पीछे का कारण पूरी तरह से वैज्ञानिक है। दरअसल पहले के जमाने में साधु-संतो को गुरूत्वाकर्षण का सिद्धान्त पहले से ही पता था जिसका जिक्र वैज्ञानिकों ने बाद में किया।
विज्ञान के अनुसार इंसान के शरीर में प्रवाहित होने वाली विद्युत की तरंगे गुरुत्वार्कषण के कारण पृथ्वी द्वारा खींच ली जाती हैं। अगर ये प्रक्रिया लगातार चलती रहे तो इससे शरीर की जैविक शक्ति (वाइटल्टी फोर्स) खत्म होने लगती है।
इसी जैविक शक्ति के संरक्षण हेतु प्राचीन काल में खड़ाऊ पहनने की प्रथा शुरू की गई थी। खड़ाऊ में लकड़ी का इस्तेमाल होने से इससे शरीर की विद्युत तरंगो का पृथ्वी की अवशोषण शक्ति के साथ संपर्क नहीं होता था।
इसके साथ ही उस जमाने में लोग चमड़े के जूतों का प्रयोग करने से कतराते थे क्योंकि उस दौरान समाज के एक बड़े वर्ग के द्वारा धार्मिक और सामाजिक कारणों को मद्देनजर रखते हुए इसका बहिष्कार किया गया था। भले ही आज के जमाने में लोग इसे आध्यात्मिक या सामाजिक कारणों से जोड़कर देखें लेकिन प्राचीन काल में लिए गए हर एक निर्णय के पीछे वैज्ञानिक तर्क होता था जिसे आज भी समझ पाना हमारे वश की बात नहीं है।
Published on:
25 May 2018 02:11 pm
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