8 दिसंबर 2025,

सोमवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

‘शोले’ की वजह से रामगढ़ को पहुंचा ऐसा नुकसान, अच्छे कारण के साथ इस दर्दनाक वजह से भी लोग करते हैं याद

क्या आपको पता है रामगढ़ कहां है? क्या कहना है वहां के लोगों का इस फिल्म के बारे में? कैसा था उनका अनुभव? क्या आज भी दिलों में ताजा है उस दौर की यादें?

3 min read
Google source verification

image

Arijita Sen

Jul 19, 2018

Sholay

'शोले' की वजह से रामगढ़ को पहुंचा ऐसा नुकसान, अच्छे कारण के साथ इस दर्दनाक वजह से भी लोग करते हैं याद

नई दिल्ली। साल 1975 में आई फिल्म 'शोले' का क्रेज आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाया हुआ है। रमेश सिप्पी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में मशहूर संगीत निर्देशक आर.डी. बर्मन के गानों की धुन आज भी सिनेमाप्रेमियों की रगों में दौड़ता है। रही फिल्म के किरदारों की बात तो इसका दौर तो मानों कभी गया ही नहीं। लगभग 40 साल बीत जाने के बाद भी 'शोले' कभी पुरानी नहीं हुई।

हर जमाने में इसे पसंद किया गया। वयस्क से लेकर नौजवानों तक 'शोले' की फैन फॉलोअर्स कई हैं। अब महज टेलीविजन के पर्दे पर फिल्म को देखकर हमारा यह हाल है तो जरा उनके बारे में सोचिए जिन्होंने अपनी आंखों के सामने इस फिल्म को बनते देखा है।

हम यहां रामगढ़ के निवासियों की बात कर रहे हैं जहां साल 1973 से 1975 के बीच इस फिल्म की शूटिंग हुई। क्या आपको पता है रामगढ़ कहां है? क्या कहना है वहां के लोगों का इस फिल्म के बारे में? कैसा था उनका अनुभव? क्या आज भी दिलों में ताजा है उस दौर की यादें?

सबसे पहले बता दें, बैंगलुरू और और मैसूर के बीच ऊंचे पठारों की गोद में बसा एक छोटा सा गांव है रामनगरम, जो शोले का रामगढ़ बना। इस गांव में कदम रखते ही पर्यटकों को फिल्म का हर सीन याद आ जाता है। पहले रामगढ़ एक सामान्य सा गांव था, लेकिन शोले के बाद से यह काफी मशहूर हो गया। यहां पर्यटकों ने आना शुरू किया। आज रामगढ़ किसी टूरिस्ट डेस्टिनेशन से कम नहीं है।

रामनगरम उर्फ रामगढ़ की सबसे बड़ी खासियत तो यह है कि इतने सालों के बाद भी गांव का माहौल बिल्कुल वैसा ही है जैसा कि फिल्म में दिखाई गई है। शान्त माहौल, लंबी चौड़ी पहाड़ियां लोगों को काफी पसंद आता है।

अब आपको यह बताते हैं कि गांववालों पर शोले का क्या असर है? बता दें, यहां के लोगों को फिल्म का एक-एक डायलॉग आज भी याद है। दीवानगी तो इस कदर है कि यहां एक रामगढ़ रिजार्ट एंड स्पा सेंटर की भी शुरुआत हो चुकी है। रिजॉट के मैनेजर को ठाकुर तो स्पा मास्टर को गब्बर के रोल में देखा जाता है।

यहां लोग आपसी बातचीत में भी फिल्म के डायलॉग का इस्तेमाल करते हैं। अब जैसा कि हम जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहां लोग इससे खुश है वहीं कही न कही उनमें काफी नाराजगी भी है।

दरअसल, यहां कुछ लोगों का मानना है कि शोले की शूटिंग के बाद से यहां की खासियत छिन गई है। उनका कहना है कि, पहले रामनगरम अपनी पहाड़ियों और दुर्लभ प्रजाति के गिद्धों की वजह से काफी मशहूर था, लेकिन शूटिंग के दौरान लगातार बमबारी, शोर-शराबा, गोलियों की आवाज से गिद्धों ने यहां से पलायन करना शुरू कर दिया।

खैर, जहां कुछ अच्छाई है वहां कुछ नुकसान भी है। आज भी यहां आने वाले लोगों को जय और वीरू की दोस्ती दिखाई देती है, गब्बर की आवाज पहाड़ियों में गूंजती है, बसंती को याद कर लोगों के चेहरे पर मुस्कान आ जाती है और राधा को याद कर दिल की धड़कनें थम जाती हैं।