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एक एेसा अनोखा गांव, जहां अंतिम संस्कार के बाद लोग नहीं करते ये जरूरी काम

राजस्थान के चूरू जिले में एक एेसा अनोखा गांव है, जहां लोग मृतकों की अस्थियों को नदी में नहीं बहाते हैं।

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Priya Singh

May 29, 2018

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एक एेसा अनोखा गांव, जहां अंतिम संस्कार के बाद लोग नहीं करते ये जरूरी काम

नई दिल्ली: राजस्थान के चूरू जिले में एक एेसा अनोखा गांव है, जहां लोग मृतकों की अस्थियों को नदी में नहीं बहाते हैं। यही नहीं इस गांव में कोइर् मंदिर तक नहीं है। इसी वजह से यह चर्चा में रहता है। गांव का नाम है लांबा की ढाणी।

मेहनत और कर्म में विश्वास रखते हैं गांववाले

मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक, यहां के सभी लोग अंधविश्वास से दूर रहकर मेहनत और कर्म में विश्वास रखते हैं। इस गांव के लोग आर्मी से लेकर प्रशासनिक सेवा में अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं।

65 साल पहले लिया गया था फैसला

गांव के एक बुजुर्ग बीरबल सिंह लांबा ने बताया कि इस गांव में करीब 65 साल पहले यहां रहने वाले लोगों ने सामूहिक रूप से तय किया कि गांव में किसी की मृत्यु पर उसके दाह संस्कार के बाद अस्थियों का नदी में विर्सजन नहीं किया जाएगा। दाह संस्कार के बाद ग्रामीण बची हुई अस्थियों को दोबारा जला कर राख कर देते हैं। गांव के एक अन्य व्यक्ति ईश्वर सिंह लांबा कहते हैं कि गांव के लोग अंधविश्वास और आडंबर से दूर रहकर मेहनत के बल पर प्रशासनिक सेवा से लेकर खेलों में गांव का नाम रोशन कर रहे हैं।

एेसा गांव, जहां पांच दिन तक कपड़ें नहीं बदलती हैं महिलाएं

अजब-गजब आैर अनोखे गांवों की बात करें तो हिमाचल के कुल्लू जिले में भी एक ऐसा अनोखा गांव है, जहां आज भी एक अनोखी परंपरा चल रही है। फैशन की चकाचौंध से कुल्लू भी प्रभावित हुआ हो, लेकिन देव नियम अभी भी कायम हैं। दरअसल, मणिकर्ण घाटी के पीणी गांव में जहां महिलाएं 5 दिन तक कपड़े भी बदल नहीं सकती। उन्हें 5 दिन तक ऊन से बने पट्टू ओढ़ने पड़ते हैं। इस अनोखी परंपरा का पालन 17 से 21 अगस्त तक 5 दिनों के लिए पीणी फाटी के दर्जनों गांवों के लोगों ने किया। शराब आैर गुटखा को हाथ नहीं लगाते थे लोग

क्या है मान्यता

मान्यता है कि लाहुआ घोंड देवता जब पीणी पहुंचे थे तो उस दौरान राक्षसों का बोलबाला था। भादो संक्रांति यानी काला महीने के पहले दिन देवता ने पीणी में पांव रखते ही राक्षसों का खात्मा किया था। कहा जाता है कि इसके बाद ही देव परंपरा के अनुसार यहां अनोखी विरासत शुरू हो गई। इसके बाद स्त्री-पुरुषों को 5 दिनों के लिए हंसी-मजाक करने की मनाई की थी। महिलाओं को कपड़े की जगह खास तरह के पट्टू ओढ़ने की परंपरा शुरू हो गई। वहीं आज तक इसी परंपरा का निर्वहन पीणी फाटी के लोग करते आ रहे हैं। लाहुआ घोंड, माता भागासिद्ध, माता चामुंडा, देवता नारायण और माता कराण के करीब 25 चेलों की देव खेल आकर्षण का केंद्र रही। माता भागासिद्ध के पुजारी मोहर सिंह ठाकुर का कहना है कि भादो महीने के शुरुआती 5 दिनों में पूरी पीणी फाटी के हारियानों को कड़े देव नियमों का पालन करना पड़ता है।