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Women health : क्यों जरूरी है अर्ली प्रेगनेंसी टेस्ट

प्रेग्‍नेंसी के नौ महीने आपको बेशक लंबे लग सकते हैं मगर बच्चे के आने की खुशी में समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है पता ही नहीं चलता है। जब बात आपके बच्‍चे की अच्‍छी सेहत की आती है, तो आपको रास्ते में आने वाली हर चीज के लिए तैयार रहना चाहिए। डॉक्टर प्रेग्‍नेंट महिलाओं को बच्‍चे के जन्‍म से पूर्व देखभाल के रूप में कई लैब टेस्ट कराने की सलाह देते हैं।

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Why is an early pregnancy test important

क्यों जरूरी है अर्ली प्रेगनेंसी टेस्ट

नई दिल्ली। प्रेगनेंसी में टेस्ट करवाना बहुत जरूरी होता है। बच्चे के बेहतर हेल्थ के लिए प्रेगनेंसी से पहले अपने फिटनेस का टेस्ट भी उतना ही जरूरी है । जितना प्रेगनेंसी के बाद के टेस्ट। ये टेस्ट्स उन स्थितियों को पता लगाने में बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो आपके और आपके बच्चे के लिए जटिलताएं बढ़ा सकती हैं। सीबीसी, ब्लड ग्रुप और आरएच टाइपिंग, यूरिनलिसिस, टीएसएच, डायबिटीज स्‍क्रीनिंग, रूबेला स्टेटस, हेपेटाइटिस-बी, वीडीआरएल, एचआईवी और इन्‍फेक्‍शन स्‍क्रीनिंग जैसे रूटीन टेस्‍ट्स होते हैं, जिन्हें हर मां को करवाना होता है। हालांकि, आपका डॉक्टर आपके बच्चे के अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के बारे में सुनिश्चित करने के लिए आपको स्‍क्रीनिंग टेस्‍ट और डायग्‍नोस्टिक टेस्‍ट कराने के लिए भी कह सकता है ।

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स्‍क्रीनिंग टेस्‍ट
स्‍क्रीनिंग टेस्‍ट आमतौर पर प्रारंभिक प्रेग्‍नेंसी में यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्‍या बच्‍चे में सामान्‍य जन्म दोषों का खतरा है या नहीं। ये टेस्ट्स आमतौर पर पुष्टि नहीं करते हैं कि बच्‍चे में जन्‍म दोष है या नहीं, इसलिए कंफर्मेटरी टेस्‍ट किए जाते हैं। ये टेस्ट्स प्रेग्‍नेंसी में संभावित जन्म दोषों का पता लगाने में मदद करते हैं, इसलिए आपके बच्चे के इलाज के लिए आवश्यक उपाय किए जा सकते हैं।

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डायग्‍नोस्टिक टेस्‍ट्स
यदि आपके परिवार में जन्म दोषों का इतिहास रहा है या आपकी आयु 35 वर्ष या उससे अधिक है, तो आपका डॉक्टर आपको डायग्नोस्टिक टेस्ट करने के लिए कह सकता है। ये टेस्‍ट एक जीन या क्रोमोसोम्स में दोषों का पता लगाकर फीटस में कई जन्म दोषों का पता लगाने में मदद कर सकते हैं, मगर सभी जन्‍म दोष इससे पता नहीं चल पाते हैं।
डायग्नोस्टिक टेस्ट जितने सटीक होते हैं, उतने ही आक्रामक भी होते हैं और फीटस के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैं।

डायग्नोस्टिक टेस्ट में सुई के माध्यम से आपके एमनियोटिक फ्लूइड का एक सैंपल लिया जाता है और यह निर्धारित किया जाता है कि क्या बच्चे को डाउन सिंड्रोम है या अन्य क्रोमोसोमल स्थितियां हैं। यदि डाउन सिंड्रोम का पता चलता है, तो आपको आगे के चरणों के लिए एक जेनेटिक काउंसलर के पास भेजा जाएगा।