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बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने पलटा सजा-ए-मौत का फैसला, जमात नेता अजहरुल इस्लाम को बरी किया

ATM Azharul Islam acquittal 2025: बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने युद्ध अपराधी के आरोपी अजहरुल इस्लाम की मौत की सज़ा को पलट दिया है।

भारतMay 27, 2025 / 04:17 pm

M I Zahir

Bangladesh Azharul Isalm

बांग्लादेश में जमात-ए-इस्लामी के नेता अजहरुल इस्लाम। (फोटो:प​त्रिका।)

ATM Azharul Islam acquittal 2025: बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता ए.टी.एम. अजहरुल इस्लाम (ATM Azharul Islam acquittal) की मौत की सज़ा को पलटते हुए उन्हें सभी प्रमुख आरोपों से बरी कर दिया है। यह फैसला ऐसे समय में आया है जब देश की राजनीति और न्यायपालिका में कई मोर्चों पर बहुत हलचल है। मुख्य न्यायाधीश डॉ. सैयद रेफत अहमद की अध्यक्षता में गठित सात सदस्यीय पीठ ने मंगलवार, 27 मई को यह फैसला सुनाया, जो बांग्लादेश के न्यायिक इतिहास में पहला मौका है जब मानवता के विरुद्ध युद्ध अपराध में मौत की सज़ा पाए हुए किसी आरोपी (Bangladesh war crimes verdict) को बरी किया गया है।

फैसले का कानूनी पृष्ठभूमि और प्रक्रिया

अजहरुल इस्लाम पर 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान रंगपुर में नरसंहार, बलात्कार, अपहरण, यातना और आगजनी सहित 6 गंभीर आरोप लगाए गए थे। सन 2014 में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण ने उन्हें पांच मामलों में मौत की सजा सुनाई थी। सन 2019 में अपीलीय अदालत ने यह सजा बरकरार रखी। सन 2024 में दायर पुनर्विचार याचिका के बाद अब उन्हें अपील के आधार पर पूरी तरह बरी कर दिया गया है।

कौन थे अदालत में और क्या रहा रुख

वकील शिशिर मोनिर, बैरिस्टर एहसान अब्दुल्ला सिद्दीकी, इमरान अब्दुल्ला और नजीब मोमेन अजहर की पैरवी कर रहे थे। फैसले के समय कोर्ट में मौजूद रहे जमात के वरिष्ठ नेता, जिनमें डॉ. सैयद अब्दुल्ला मोहम्मद ताहेर, एटीएम मासूम और अन्य कार्यकर्ता शामिल थे।

जमात का रिएक्शन: ‘न्याय की जीत’

जमात-ए-इस्लामी ने फैसले को “न्याय की देर से मिली लेकिन ऐतिहासिक जीत” बताया है। हालांकि कुछ मानवाधिकार संगठनों और 1971 युद्ध पीड़ित परिवारों ने इस फैसले पर निराशा और रोष व्यक्त किया है।

पृष्ठभूमि में राजनीति और बदलाव

राजनीतिक विश्लेषक इसे बांग्लादेश में सत्ताधारी दलों के बदलते समीकरण और न्यायपालिका के उदारवादी रुख का संकेत मान रहे हैं। इससे पहले, ट्रिब्यूनल के फैसले को “राजनीति से प्रेरित” बताया गया था, जिसे अब न्यायिक संतुलन की मिसाल के तौर पर देखा जा रहा है।

ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत गवाहों और साक्ष्यों में कई कानूनी विसंगतियां

विश्वसनीय कोर्ट सूत्रों के अनुसार, बरी किए जाने का मुख्य आधार था कि ट्रिब्यूनल के समक्ष प्रस्तुत गवाहों और साक्ष्यों में कई कानूनी विसंगतियां और प्रक्रियागत खामियां पाई गईं। कोर्ट ने पाया कि गवाहों के बयान एक-दूसरे से मेल नहीं खाते, और कुछ गवाही “मौखिक परंपरा और hearsay” पर आधारित थीं।

राजनीतिक वातावरण और सरकारी दबाव के चलते सुनवाई निष्पक्ष नहीं रही

इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि राजनीतिक वातावरण और सरकारी दबाव के चलते पहले की सुनवाई निष्पक्ष नहीं रही। जस्टिस पैनल ने यह टिप्पणी भी की कि “सभी आरोपों को शक के दायरे से परे सिद्ध नहीं किया जा सका”, जिसके चलते ड्यू प्रोसेस के आधार पर अजहरुल इस्लाम को बरी किया गया।

इस केस का व्यापक रिएक्शन

जमात-ए-इस्लामी: फैसले को “न्याय का पुनरुद्धार” बताया और कहा, “सच्चाई देर से जीतती है लेकिन हमेशा जीतती है।” मुक्तिजोद्धा मंच और युद्ध अपराध पीड़ित परिवार: “यह सिर्फ कानूनी नहीं, नैतिक हार भी है। इंसाफ फिर से टल गया।”

बांग्लादेश मानवाधिकार संगठन

बांग्लादेश की न्यायपालिका ने खुद को स्वतंत्र साबित किया है, लेकिन अब मामले की समीक्षा का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परीक्षण ज़रूरी है।

इस केस से सुलगते सवाल

क्या इस फैसले से अन्य युद्ध अपराध मामलों पर भी असर पड़ेगा? सरकार इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पेटिशन दायर करेगी या नहीं, यह अगले हफ्ते तय होगा। कोर्ट के ऑर्डर में उद्धृत तकनीकी कारणों को लेकर नए सिरे से न्यायिक बहस छिड़ सकती है।

फैक्टबॉक्स : प्रमुख घटनाक्रम

सन 2014: अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण द्वारा मौत की सज़ा।

सन 2015: अपील दायर, 2,340 पृष्ठों का दस्तावेज़।

सन 2019: अपीलीय प्रभाग ने सज़ा बरकरार रखी।

सन 2024: पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई।
सन 2025: सुप्रीम कोर्ट द्वारा बरी किया गया।

चुनाव और विपक्ष को मुख्यधारा में लाने की रणनीति

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह फैसला केवल कानून से नहीं, बल्कि आगामी चुनावों और विपक्ष को मुख्यधारा में लाने की रणनीति से भी जुड़ा है। कई मुस्लिम देशों में इस्लामी पार्टियों को न्यायिक प्रक्रिया से बाहर रखने की प्रवृत्ति पर यह फैसला नया उदाहरण बन सकता है। यह मामला न्यायाधिकरण बनाम सुप्रीम कोर्ट की कानूनी वैधता और प्रक्रियाओं की तुलना का मुद्दा भी बन रहा है। बहरहाल यह फैसला केवल एक व्यक्ति की बेगुनाही या सज़ा का मुद्दा नहीं है, यह बांग्लादेश की न्यायपालिका की पारदर्शिता, समीक्षा की स्वतंत्रता और राजनीतिक दबाव से लड़ने की क्षमता भी दर्शाता है।
( इनपुट क्रेडिट: दैनिक इत्तेफाक बांग्लादेश। )

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