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भारत विरोध में फर्जी इतिहास लिख रहा बांग्लादेश, मिटा रहा आजादी की निशानियां

Bangladesh Writing Fake History: शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में खेल रहा है।

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बांग्लादेश में पीएम शेख हसीना के हटने के बाद पहली बार चुनाव होंगे। एएनआई

Bangladesh Writing Fake History: शेख हसीना सरकार के तख्तापलट के बाद बांग्लादेश कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में खेल रहा है। ये ताकतें न सिर्फ देश के संविधान को बदलना चाहती हैं, बल्कि 1971 में बांग्लादेश की आजादी में भारत के योगदान को इतिहास के पन्नों से मिटाकर यहां के राष्ट्रपिता माने जाने वाले शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को खत्म करने पर तुली हैं। इसी के चलते अब अंतरिम सरकार ने पाठ्यपुस्तकों में बड़े बदलाव किए हैं। इस बदलाव में पुस्तकों में बताया गया है कि 1971 में बांग्लादेश की आजादी की घोषणा पहली बार जियाउर रहमान रहमान ने की थी न कि शेख मुजीबुर रहमान ने। अभी तक आजादी की घोषणा का श्रेय शेख मुजीब को ही दिया जाता रहा है।

किताबों में लिखा- मुजीब नहीं, जिया ने दिलाई आजादी

पाठ्यपुस्तक बोर्ड के अध्यक्ष प्रोफेसर एकेएम रेजुल हसन के हवाले से बांग्लादेशी मीडिया ने बताया कि नई पाठ्यपुस्तकों में शेख मुजीबुर रहमान को दी जाने वाली ‘राष्ट्रपिता’ की उपाधि भी हटा ली गई है। 2025 के शैक्षणिक वर्ष से पाठ्यपुस्तकों में बढ़ाया जाएगा कि 26 मार्च, 1971 को जियार रहमान ने बांग्लादेश की आजादी का ऐलान किया था।

पाठ्यपुस्तक में बदलाव और ऐतिहासिक दावे

वर्ष 2010 में शेख हसीना के शासन के दौरान पाठ्य पुस्तकों में कहा गया था कि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान ने 26 फरवरी 1971 को पाकिस्तानी सेना द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले वायरलेस संदेश से स्वतंत्रता की घोषणा की थी। हालांकि, लेखक और शोधकर्ता राखल राहा ने कहा, यह तथ्य-आधारित जानकारी नहीं थी। इसलिए इस दावे को नई हटा दिया गया।

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अवामी लीग का यह तर्क

अवामी लीग के समर्थकों का मानना था कि शेख मुजीबुर रहमान ने यह घोषणा की थी और जियाउर रहमान (जो सेना में मेजर थे और बाद में मुक्ति संग्राम के सेक्टर कमांडर बने) ने मुजीब के निर्देश पर केवल घोषणा पढ़ी थी।

मुजीब की विरासत को मिटाने के प्रयास

अंतरिम सरकार ने शेख मुजीबुर रहमान की फोटो वाले करेंसी नोटों को धीरे-धीरे बंद करने का फैसला किया है। इसके अलावा, उन्होंने 15 अगस्त को उनकी हत्या की याद में राष्ट्रीय अवकाश को भी रद्द कर दिया।

चिन्मय को जमानत नहीं

हिंदू संन्यासी चिन्मय कृष्ण दास को गुरुवार को चटगांव की अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया। 40 दिन से बांग्लादेश की जेल में बंद चिन्मय कृष्ण दास को 25 नवंबर को ढाका के हजरत शाहजलाल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया गया था। उन पर देशद्रोह का आरोप है। इस्कॉन कोलकाता ने अदालत के इस फैसले को दुखद बताया। इस्कॉन के प्रवक्ता राधारमण दास ने कहा कि उम्मीद थी कि नए साल में उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। बताया, चिन्मय दास की तबीयत खराब है।