
Laser Guided System (Photo: IANS)
चीन (China) की हरकत से जर्मनी (Germany) आगबबूला है। लेजर बीम (laser beam) दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न होने की वजह है। जर्मनी ने आरोप लगाया है कि चीनी नौसेना (Chinese Navy) ने लाल सागर (Red Sea) में उसके विमान (Plane) को लेजर बीम से नुकसान पहुंचाया है, लेकिन चीन इन आरोपों से इनकार कर रहा है।
जर्मनी का कहना है कि उसके एक नागरिक विमान को पता लगा कि उसे समंदर में एक लेजर बीम से निशाना बनाया गया है। इसके बाद पायलट ने जिबूती स्थित यूरोपीय बेस पर लौटने का फैसला लिया। इसके बाद मामले की जांच शुरू हुई। इसमें पता चला कि अदन की खाड़ी से चीनी युद्धपोत ने नागिरक विमान पर लेजर गाइडेड बीम से निशाना साधा। चीनी हरकत ने अब दुनिया भर में लेजर वारफेयर को लेकर नई बहस छेड़ दी है।
मॉर्डन वारफेयर में दुनिया भर की सेनाएं और रक्षा प्रयोगशालाएं हवा में लक्ष्यों को निष्क्रिय करने की ताकत रखने वाली शक्तिशाली लेजर किरणों की एक नई श्रेणी विकसित करने में जुट गई हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी लेजर किरणों का इस्तेमाल करके ड्रोन और मिसाइलों को नष्ट किए जाने की बात सामने आई थी।
भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान D4 एंट्री ड्रोन सिस्टम का इस्तेमाल करके 2 किलोवाट क्षमता की बीम जेनरेट कर पाकिस्तान की ओर से आ रही मिसाइलों और ड्रोन्स को हवा में ही निष्क्रय कर दिया। भारत ने कई चरणों वाली एंटी ड्रोन ग्रिड के जरिए पाकिस्तान की तरफ से भेजे गए ड्रोन झुंड को भी कामयाबी से मार गिराया।
रक्षा अधिकारियों ने कहा कि भारत ने D4 को 24 महीनों के भीतर विकसित किया है। भारत ने 30 किलोवाट क्षमता की एंटी ड्रोन गन का सफल परीक्षण भी किया है। साथ ही DRDO के सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम एंड साइंसेज ने लेजर डायरेक्टेड वैपन सिस्टम विकसित किया है, जो एक साथ ड्रोन्स के झुंड को निष्क्रय करने में सक्षम है।
कुछ सालों में यह साफ हो गया है कि मिसाइल और ड्रोन के बाद लेजर वारफेयर का दौर आ गया है। इस मामले में अमेरिका दुनिया से कहीं आगे चल रहा है। उसने अपने युद्धपोत यूएसएस प्रीबल पर हीलियोस तैनात किया है। यह 70 किलोवाट क्षमता का लेजर गाइडेड सिस्टम 8 किलोमीटर दूर तक मारक क्षमता रखता है। वहीं है. रूस ने भी PERESVET लेजर वैपन सिस्टम विकसित किया है।
Published on:
11 Jul 2025 07:52 am
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