
Patrika Opinion : पड़ोस की अनिश्चितता हमारे लिए खतरनाक
नई दिल्ली। संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने अफगानिस्तान में मानवीय सहायता के लिए 606 मिलियन डॉलर जुटाने के प्रयास में सोमवार को एक उच्चस्तरीय बैठक की। इसमें कई देशों की सरकारों व चैरिटी संगठनों ने भाग लिया। गुटेरेस ने कहा, "अफगान सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं।" अंतरराष्ट्रीय दानदाताओं ने एक अरब डॉलर से अधिक की राशि देने का वादा किया है।
फिलहाल, देश में लोग आर्थिक संकट में हैं। बैंकों के बाहर लंबी कतारें हैं। खाने व जरूरी चीजों के दाम आसमान पर हैं। लोग अपने घरों के सामान बेचने पर मजबूर हैं। यूएन ने कहा कि जो धन आएगा उसका एक तिहाई विश्व खाद्य कार्यक्रम उपयोग करेगा क्योंकि कई अफगानों के पास भोजन का खर्च उठाने के लिए नकदी तक पहुंच नही है।
अपने ही देश में हुए विस्थापित
अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में बड़ी संख्या में लोग बेघर होकर सड़कों पर आ गए हैं। आंतरिक रूप से विस्थापित ऐसे ही लोगों के शिविरों में दानदाता भोजन वितरित कर रहे हैं।
रसातल पर जा सकती है जीडीपी
पिछले हफ्ते एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने चेताया था कि 2022 तक अफगानिस्तान की 97 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे जा सकती है। वहीं, अफगान सेंट्रल बैंक के पूर्व गर्वनर अजमल अहमदी ने कहा था कि वैश्विक प्रतिबंध नहीं हटाए गए तो देश की जीडीपी 10-20 फीसदी गिर सकती है। विदेश मदद पर निर्भर अफगानिस्तान की जीडीपी का 40 फीसदी विदेशी मदद से आता है जो अब बंद हो रही है। फ्रांस सहित कई देशों ने तालिबानी सरकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया है।
नोट छापने के लिए भी विदेशों पर निर्भर
अफगानी मुद्रा की कमी तो है ही, इससे भी बदतर है कि देश खुद पैसा नहीं छाप सकता। अहमदी के अनुसार, देश में कोई बैंकनोट प्रिंटर नहीं है। अफगानिस्तान ने पोलैंड और फ्रांस में कंपनियों से मुद्रा छापने के लिए अनुबंध किया था। अब प्रतिबंधों के चलते यूरोपीय कंपनियों के भी तालिबान सरकार के साथ कारोबार बंद करने की आशंका है।
Published on:
14 Sept 2021 08:19 am
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