
H-1B Visas (Photo: Patrika)
H-1B NRI Engineers in USA: ट्विटर हैंडल (अब एक्स) की पूर्व वरिष्ठ अधिकारी एस्थर क्रॉफर्ड (Esther Crawford) ने अमेरिका में आप्रवासी विरोधी बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने साफ कहा कि अगर आज X जैसा बड़ा प्लेटफॉर्म चल रहा है, तो उसकी सबसे बड़ी वजह भारत और चीन के एच-1बी इंजीनियर (H-1B NRI Engineers in USA) हैं, जिन्होंने मुश्किल समय में कंपनी को संभाला। एस्थर क्रॉफर्ड, जो कंपनी के अधिग्रहण और इसके X के रूप में रिब्रांडिंग के दौरान प्रोडक्ट मैनेजमेंट डायरेक्टर थीं, ने कहा कि भारत और चीन के इंजीनियरों ने अमेरिकी टीम के साथ मिल कर दिन-रात काम किया और प्लेटफॉर्म को तकनीकी रूप से जिंदा रखा।उनका बयान था "ट्विटर/एक्स इसलिए बच पाया क्योंकि H-1B इंजीनियरों ने तब भी साथ नहीं छोड़ा, जब अधिग्रहण की वजह से अनिश्चितता थी। उन्होंने अमेरिकी टीम के साथ मिल कर बेहद जटिल तकनीकी समस्याएं सुलझाईं। जब आप आप्रवासी-विरोधी पोस्ट लिखें, तो याद रखें – आप ट्वीट कर पा रहे हैं, क्योंकि उन्होंने हार नहीं मानी।”
ट्विटर हैंडल (अब एक्स) की पूर्व वरिष्ठ अधिकारी एस्थर क्रॉफर्ड।
क्रॉफर्ड की ये टिप्पणी ऐसे समय आई है जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा पर नया शुल्क लगाने का एलान किया है। नए नियमों के अनुसार, अब हर नए H-1B आवेदन पर $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) का शुल्क लगेगा, जिससे हजारों विदेशी इंजीनियर प्रभावित होंगे।
ट्रंप के इस कदम पर अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने कहा कि यह निर्णय देश की सीमाओं को सुरक्षित करने और अमेरिकी नागरिकों की नौकरियों को बचाने के लिए ज़रूरी है। उन्होंने डेमोक्रेट नेताओं और बाइडेन प्रशासन पर आरोप लगाया कि वे "अवैध विदेशियों" को बढ़ावा दे रहे हैं।
सचिव के मुताबिक –"ट्रंप प्रशासन देश की आव्रजन प्रणाली को सही दिशा में वापस ला रहा है। हमें ऐसे लोग चाहिए जो अमेरिका को फायदा दें, सिर्फ फायदा न उठाएं।"
एस्थर क्रॉफर्ड का बयान न सिर्फ साहसिक था, बल्कि एक कड़वा सच भी सामने लाया – अमेरिका की टेक इंडस्ट्री का असली इंजन विदेशी टैलेंट है, खासकर H-1B वीज़ा पर काम कर रहे भारतीय और चीनी इंजीनियर।
उनके बिना शायद ट्विटर (X) का अधिग्रहण, रीब्रांडिंग और प्लेटफॉर्म की तकनीकी स्थिरता मुमकिन नहीं होती।
ट्रंप जैसे नेताओं द्वारा जब विदेशी पेशेवरों को निशाना बनाया जाता है, तो ऐसे बयान सच्चाई को सामने लाने का साहसिक प्रयास हैं।
ट्रंप की $100,000 (83 लाख रुपये) फीस वाली नई वीज़ा नीति अगर लागू होती है, तो इसका सबसे बड़ा असर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, मेटा, अमेज़न और X जैसे कंपनियों पर पड़ेगा।
हजारों इंडियन और चाइनीज इंजीनियर जो हर साल अमेरिका आते हैं, उनकी एंट्री लगभग बंद हो जाएगी या कंपनियों को भारी कीमत चुकानी होगी।
इससे अमेरिका में "टेक टैलेंट ड्रेन" हो सकता है, और यूरोप, कनाडा या UAE जैसे देश इन प्रतिभाओं को आसानी से आकर्षित कर सकते हैं।
भारत के लिए सुनहरा मौका या चुनौती ?
ब्रेन गेन का मौका:
अगर अमेरिका में H-1B वीज़ा मुश्किल हो जाता है, तो भारतीय इंजीनियर देश लौट सकते हैं या यहीं से काम करने की सोच सकते हैं। यह भारत के लिए एक टेक्नोलॉजिकल ब्रेन गेन का अवसर हो सकता है।
कोरोना के बाद कई अमेरिकी कंपनियां रिमोट वर्क को अपना चुकी हैं। अब अगर वीज़ा मुश्किल होता है, तो वे भारतीय टेलेंट को भारत से ही हायर कर सकती हैं – कम लागत में।
इमेज बिल्डिंग:
एस्थर क्रॉफर्ड जैसे अधिकारियों के बयान भारत के टेक प्रोफेशनल्स की वैश्विक छवि को और मजबूत करते हैं – loyal, smart, hardworking and essential.
चीन बनाम भारत:
चूंकि क्रॉफर्ड ने भारत और चीन दोनों का नाम लिया है, लेकिन अमेरिका में चीन के प्रति राजनीतिक और सामरिक दृष्टिकोण नकारात्मक है। ऐसे में भारत को एक भरोसेमंद टेक पार्टनर के रूप में खुद को स्थापित करने का मौका है।
X (ट्विटर) जैसे तकनीकी प्लेटफॉर्म की मजबूती इस बात का प्रमाण है कि भारत और चीन जैसे देशों से आने वाले इंजीनियर अमेरिका की तकनीकी रीढ़ हैं। ऐसे में उन्हें निशाना बनाना, खुद अमेरिका के लिए घाटे का सौदा है।
बहरहाल इन विवादों के बीच, अमेरिकी विदेश विभाग ने भी सफाई दी है कि यह नया शुल्क नियम सिर्फ 21 सितंबर 2025 के बाद दायर की गई नई याचिकाओं पर लागू होगा। पुराने वीज़ा धारकों या पहले से जमा किए गए आवेदनों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
Updated on:
22 Sept 2025 04:48 pm
Published on:
22 Sept 2025 04:46 pm
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