बाजार,पहुंच और टैरिफ विवादों पर फोकस
बैठकों में चर्चा का मुख्य बिंदु रहा- टैरिफ में कटौती, विशेषकर गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना और कृषि-औद्योगिक उत्पादों को नए बाजारों तक पहुंच देना। भारत ने अमेरिका से ट्रंप प्रशासन की ओर से लगाया गया आपातकालीन 10% बेसलाइन टैरिफ हटाने की मांग की, जबकि अमेरिकी पक्ष ने इसका यह कह कर विरोध किया कि ऐसा ही शुल्क ब्रिटेन पर भी लागू है।
डिजिटल व्यापार और कस्टम सुधार
सूत्रों के अनुसार, डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देने और सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सरल बनाने को लेकर भी विशेष चर्चा हुई। दोनों देशों ने सहमति जताई कि व्यापारिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता बढ़ाने और डिजिटल लेन-देन को सुगम बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे।
खाद्य और कृषि उत्पादों पर असहमति
भारत ने गेहूं, डेयरी और मक्का के आयात को लेकर अमेरिकी मांगों का विरोध किया, लेकिन बादाम, पिस्ता और अखरोट जैसे हाई-वैल्यू अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ में रियायत देने की पेशकश की। यह संतुलन भारत की घरेलू खाद्य सुरक्षा नीतियों और व्यापार हितों को ध्यान में रख कर किया गया।
ऊर्जा और रक्षा में बढ़ेगी साझेदारी
नई दिल्ली ने अमेरिका को भरोसा दिलाया कि वह आने वाले वर्षों में LNG, कच्चे तेल, कोयला और रक्षा उपकरणों के आयात में वृद्धि करेगा। इसके ज़रिये दोनों देशों के बीच रणनीतिक और ऊर्जा सहयोग को और गहराने की कोशिश की जा रही है।
क्या इस महीने होगा समझौता ?
कनाडा में होने वाले G7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री मोदी और डोनाल्ड ट्रम्प की मुलाकात संभावित है, और उस अवसर पर एक प्रारंभिक समझौते पर हस्ताक्षर की उम्मीद जताई जा रही है। अमेरिकी पक्ष भारत से यह डील 26% टैरिफ प्रतिबद्धता समाप्त होने से पहले चाहता है, ताकि घरेलू आलोचना से बचा जा सके।
समानांतर में यूरोपियन यूनियन से भी बातचीत
जब नई दिल्ली में अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता चल रही थी, उसी समय केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल स्विट्ज़रलैंड में यूरोपियन यूनियन के साथ एक अन्य प्रमुख व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे थे। भारत वैश्विक व्यापार नेटवर्क को और व्यापक बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है।
रणनीतिक साझेदारी और मजबूत करने की दिशा में एक कदम
वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने वार्ता के बाद कहा:”यह बातचीत केवल व्यापारिक आंकड़ों तक सीमित नहीं रही, बल्कि रणनीतिक साझेदारी और मजबूत करने की दिशा में भी एक कदम थी। हमें भरोसा है कि समझौते का प्रारंभिक चरण जल्द पूरा होगा।”
कृषि और हथकरघा उत्पादों को नई पहचान मिलेगी
भारतीय निर्यात महासंघ (FIEO) के महासचिव ने कहा:”अगर टैरिफ मुद्दों पर संतुलन बनता है, तो भारत को अमेरिका जैसे बड़े बाजार में अपनी कृषि और हथकरघा उत्पादों को नई पहचान मिलेगी।”
भारत और अमेरिका का साथ वैश्विक सप्लाई चेन अधिक स्थिर बना सकता है
अमेरिकी वाणिज्य मंडल (USIBC) ने बयान में कहा:”भारत और अमेरिका का साथ आना वैश्विक सप्लाई चेन को अधिक स्थिर बना सकता है। हम इस डील की दिशा में हुई प्रगति का स्वागत करते हैं।”
आगे के लिए उम्मीदों का आसमान
G7 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी और ट्रम्प की संभावित मुलाकात के दौरान समझौते पर हस्ताक्षर हो सकते हैं। सितंबर–अक्टूबर में दोनों देशों के बीच फुल-स्केल ट्रेड डील पर बातचीत का अगला दौर तय हो सकता है। भारत-अमेरिका समझौते का असर EU–India व्यापार वार्ता पर भी पड़ेगा, जिसकी अगली बैठक जुलाई में स्विट्ज़रलैंड में संभावित है। कृषि लॉबी और MSME सेक्टर की प्रतिक्रिया से यह तय होगा कि भारत समझौते की किस शर्त पर कितना आगे बढ़ता है।
साइड एंगल : वैकल्पिक दृष्टिकोण या मानवीय पहलू
घरेलू किसान संगठनों और डेयरी यूनियनों ने अमेरिकी मांगों पर चिंता जताई है। राष्ट्रीय किसान महासंघ के अध्यक्ष ने कहा: “अगर भारत गेहूं और दूध के बाजार खोलता है, तो यह छोटे किसानों की आजीविका पर सीधा असर डालेगा।” वहीं, भारत में ऊर्जा कंपनियों और आयातकों ने एलएनजी और कच्चे तेल की अमेरिकी आपूर्ति पर सकारात्मक संकेत दिए हैं, जिससे ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा, टेक स्टार्टअप सेक्टर भी डिजिटल व्यापार में आसानी को लेकर उत्साहित है। उनका मानना है कि इस समझौते से डेटा फ्लो और ई-कॉमर्स को नई दिशा मिलेगी।
अगला चरण: सितंबर या अक्टूबर तक पूर्ण समझौते की योजना
पीयूष गोयल ने संकेत दिए हैं कि भारत जल्दबाजी में कोई बड़ा समझौता नहीं करेगा। भारत पहले सरल मुद्दों पर सहमति बनाना चाहता है, जबकि जटिल मसलों पर बातचीत अगले चरण में यानी सितंबर या अक्टूबर तक की जा सकती है। इससे यह संकेत मिलता है कि भारत अंतरिम डील को फिलहाल प्राथमिकता दे रहा है।