
किम जोंग उन। (फोटो- IANS)
उत्तर कोरिया में भूख और गरीबी से पैदा हुआ संकट अब जंगली जीवों को खत्म कर रहा है। एक नए अंतरराष्ट्रीय शोध के अनुसार, लोग अब जिंदा रहने के लिए जंगली जानवरों को शिकार कर खा रहे हैं। इससे देश के पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर असर पड़ा है।
उत्तर कोरिया ज्यादातर दुनिया के लिए बंद है। यहां प्रत्यक्ष शोध करना लगभग असंभव है इसलिए वैज्ञानिकों ने उत्तर कोरिया से भागकर दक्षिण कोरिया और ब्रिटेन आए 42 लोगों से बात की।
इनमें से कई पहले शिकारी, सैनिक या जंगली जानवरों के व्यापार में शामिल रहे थे। इन्हीं साक्षात्कारों से देश में चल रही वन्यजीव तस्करी और शिकार की हकीकत सामने आई।
शोध के अनुसार, उत्तर कोरिया की गरीबी और भुखमरी इस संकट की जड़ है। 1990 के दशक में सोवियत संघ की मदद बंद होने के बाद वहां भयंकर अकाल पड़ा था।
करीब 35 लाख लोग मारे गए थे। उस समय लोगों को जीवित रहने के लिए जंगली जानवरों का शिकार करना पड़ा। हालांकि, अब अर्थव्यवस्था में थोड़ी सुधार हुआ है, लेकिन काला बाजार और जानवरों का अवैध व्यापार अब भी फल-फूल रहा है।
राजधानी प्योंगयांग का चिड़ियाघर भी अपने जानवरों से बने उत्पादों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने की श्रृंखला का हिस्सा बना है। उत्तर कोरिया उस संगठन का सदस्य नहीं है, जो लुप्तप्राय जीवों के अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करता है।
अध्ययन में पाया गया कि मुलायम फरों वाला जानवर सैबल लगभग लुप्त हो चुका है। अमूर टाइगर, अमूर तेंदुए, भालू, ऊदबिलाव, हिरण, और गोरल (एक पहाड़ी बकरी) का बड़े पैमाने पर शिकार किया जा रहा है।
इन जानवरों के मांस, सींग, हड्डियों और अंगों को पारंपरिक कोरियाई औषधियों में इस्तेमाल किया जाता है। हिरण खाने के काम आता है जबकि भालू की पित्त और पंजे दवाओं में काम आते हैं। भगोड़ों ने बताया कि सरकार ने ही कुछ जानवरों के फार्म बनाए हैं, जहां से उत्पाद देश और विदेश में बेचे जाते हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि उत्तर कोरिया में यह शिकार चीन के संरक्षण प्रयासों को भी खतरे में डाल रहा है। अमूर टाइगर और तेंदुए चीन से उत्तर कोरिया की सीमा पार करते हैं, जहां वे शिकारियों के निशाने पर आ जाते हैं। इससे चीन और रूस के पारिस्थितिक तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
Published on:
10 Oct 2025 07:48 am
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