
ऑस्ट्रेलिया में बना अनूठा घर। (फोटो: X Handle Wrath Of Gnon.)
Sustainable Building Material: क्या आपने कभी सोचा है कि मिट्टी, कार्डबोर्ड और पानी (Sustainable Building Material) से भी मजबूत इमारतें बनाई (Rammed Earth Construction) जा सकती हैं ? ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो न सिर्फ सस्ती और टिकाऊ है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा पहुंचाती है। ऑस्ट्रेलिया के रॉयल मेलबर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (RMIT) के इंजीनियरों ने एक नई निर्माण सामग्री तैयार की है, जिसे “कार्डबोर्ड-कन्फाइन्ड रैम्ड अर्थ” (Eco-Friendly Architecture) नाम दिया गया है। यह पूरी तरह से सीमेंट-फ्री तकनीक है, जो मिट्टी, पानी और इस्तेमाल किए जा चुके कार्डबोर्ड से बनाई जाती है।
इस नई तकनीक से बनी दीवारों की खासियत यह है कि वे बिना सीमेंट के भी मजबूत होती हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे बनी इमारतें सामान्य कंक्रीट के मुकाबले 25% कम कार्बन उत्सर्जन करती हैं और इनकी लागत करीब एक-तिहाई होती है।
इस विधि में कार्डबोर्ड को एक ढांचे की तरह प्रयोग किया जाता है। उसके अंदर मिट्टी और पानी का मिश्रण भरकर उसे दबाया जाता है। यह पूरी प्रक्रिया निर्माण स्थल पर ही होती है, जिससे भारी सामग्रियों के परिवहन की जरूरत नहीं पड़ती और निर्माण सरल हो जाता है।
RMIT के शोधकर्ता डॉ. मा जियामिंग के अनुसार, इस तकनीक में यदि कार्बन फाइबर भी जोड़ा जाए, तो यह हाई-परफॉर्मेंस कंक्रीट जितनी ताकतवर बन जाती है। यानी बिना सीमेंट के भी इमारतें उतनी ही मजबूत हो सकती हैं।
हर साल दुनियाभर में सीमेंट और कंक्रीट के उपयोग से भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसें निकलती हैं, जो जलवायु परिवर्तन का बड़ा कारण बनती हैं। वहीं ऑस्ट्रेलिया में 22 लाख टन कार्डबोर्ड और पेपर वेस्ट लैंडफिल में चला जाता है। इस तकनीक से इन दोनों समस्याओं का हल निकल सकता है।
यह तकनीक खासतौर पर उन क्षेत्रों में बेहद उपयोगी है जहां गर्मी और सूखापन ज्यादा होता है। मिट्टी से बनी दीवारें अंदर के तापमान को खुद-ब-खुद संतुलित रखती हैं, जिससे एसी या हीटर की जरूरत कम होती है।
भारत जैसे देश, जहां लाल मिट्टी प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है और ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी रहती है, वहां यह तकनीक क्रांतिकारी साबित हो सकती है। अगर सरकार और स्थानीय प्रशासन इसे अपनाते हैं, तो स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा और निर्माण की लागत भी घटेगी।
बहरहाल यह नवाचार एक ऐसा विकल्प पेश करता है जो टिकाऊ, सस्ता और पर्यावरण-संवेदनशील है। अब सवाल यह है — भारत इस तकनीक को अपनाने में कितना समय लगाएगा ? जवाब जल्द मिलना चाहिए, क्योंकि हरित निर्माण ही भविष्य की जरूरत है।
Updated on:
22 Sept 2025 07:46 pm
Published on:
22 Sept 2025 07:45 pm
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