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NATO की समिट आज से हेग में शुरू, दुनिया भर की रहेगी नजरें, जानिए क्यों बना सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन

आज नीदरलैंड के द हेग शहर में नाटो की बैठक शुरू हो रही है। नाटो की बैठक ऐसे समय में शुरू हो रही है, जब नाटो संगठन अपने सबसे मुश्किल दौर में है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप बार-बार नाटो से अलग होने की बात कह चुके हैं।

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NATO- ( Photo: Washington Post)

NATO- ( Photo: Washington Post)

NATO Meeting 2025: नीदरलैंड (Netherlands) के द हेग शहर में आज से नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) समिट शुरू हो रहा है। 76 साल पहले बने इस सैन्य गठबंधन की बैठक पर आज दुनिया भर की नजरें टिकी हुई हैं। यूक्रेन-रूस जंग (Russia-Ukraine War) और इजरायल-ईरान जंग (Israel-Iran War) को लेकर भी इस बैठक में बातचीत हो सकती है, लेकिन अमेरिका (America) व यूरोपीय देशों (European Country) का यह सैन्य गठबंधन अपने सबसे बुरे दौर में है। डोनाल्ड ट्रंप बार-बार नाटो से अलग होने की धमकी दे चुके हैं।

कितने देश हैं नाटो के सदस्य

नाटों साल 1949 में बनाया गया था। वर्तमान में नाटों के 32 सदस्य देश हैं। इन्हें नाटो सहयोगी कहा जाता है। सभी संप्रभु राष्ट्र नाटो के माध्यम से भू-राजनीतिक और सुरक्षा मुद्दों पर चर्चा करते हैं और सामूहिक निर्णय लेते हैं। बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्जमबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका नाटों के संस्थापक सदस्य देश हैं। साल 1952 में तुर्किये और ग्रीस नाटो से जुड़े, 1955 में जर्मनी और 1982 में स्पेन नाटो का सदस्य बने। 1999 में चेक गणराज्य, हंगरी और पॉलेंड इसके सदस्य बने। साल 2004 में नाटो का कुनबा और बढ़ा, लताविया, लुथवानिया, बुल्गारिया, एस्टोनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया इसके सदस्य बने। 2009 में अल्बानिया और क्रोएशिया, 2017 में मोंटेनेग्रो और 2020 में उत्तर मेसिडोनिया इसके सदस्य बने। 2023 में फीनलैंड और 2024 में स्वीडन ने इसकी सदस्यता ली।

USSR के प्रभाव को कम करने के लिए बना था NATO

साम्यवादी विचारधारा वाले देश USSR यानी सोवियत संघ (वर्तमान का रूस) के प्रभाव को कम करने के लिए और पूंजीवादी विचारधारा वाले देश को एकजुट करने के लिए अमेरिका व उसके सहयोगी देशों ने एकजुटता दिखाई और NATO का गठन किया। दरअसल, सोवियत संघ पर आरोप लगा कि उसने पौलेंड, हंगरी और चेकोस्लोवाकिया में कम्यूनिस्ट सरकार बनाने में मदद की और चुनाव में हेराफेरी की। सोवियत संघ तुर्किये और ग्रीस पर दबदबा बनाकर काला सागर पर वर्चस्व हासिल करना चाहता था, ताकि वह दुनिया के व्यापार पर कंट्रोल कर सके। अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस, सोवियत पर यूरोप में साम्यवादी विचारधारा फैलाने का आरोप लगा रहे थे। USSR के इन कदमों को पश्चिमी देशों ने आक्रमण की तरह माना।

USSR के एग्रेसन से निपटने के लिए अमेरिका ने बनाई पॉलिसी

अमेरिका ने साम्यवादी एग्रेसन से निपटने के लिए 1947 में ट्रूमेन डॉक्ट्रिन पेश की। इसके तहत साम्यवाद का विरोध करने वाले देशों को समर्थन देने की बात कही। अमेरिका ने द्वितीय विश्व युद्ध में बर्बाद हो चुके यूरोपीय देशों को आर्थिक मदद की। इसे मार्शल प्लान और यूरोपियन रिकवनी प्लान बताया। इसके बाद पश्चिमी देशों ने एक सुरक्षा समझौता किया। 1948 में ब्रिटेन, फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्जमबर्ग ने ब्रसेल्स संधि पर हस्ताक्षर किए और सोवियत का मुकाबला करने के लिए बड़ा सैन्य गठबंधन बनाने की मांग की। 4 अप्रैल 1949 को अमेरिका को मिलाकर 12 देशों ने NATO ट्रीटी पर साइन किया। इस समझौते के आर्टिकल 5 के मुताबिक यदि किसी एक देश पर हमला होता है तो NATO के सभी सदस्यीय देश विरोधी पर हमला करेंगे।

NATO देशों के बीच हुए कई बार विवाद

NATO सदस्य देशों के बीच कई बार विवाद हुए। विवादों के चलते फ्रांस और ग्रीस ने नाटो की सदस्यता छोड़ी। फ्रांस 1966 में नाटो से अलग हुआ और फिर साल 2009 में इससे जुड़ा। वहीं ग्रीस तुर्किए के कारण अलग हुआ। 1980 में अमेरिका की मध्यस्थता से ग्रीस फिर से सैन्य रूप से NATO में शामिल हो गया। तुर्किए द्वारा रूस निर्मित 400 खरीदने पर भी विवाद हुआ। नाटो देशों ने F-35 जेट बनाने की प्रक्रिया से तुर्किये को बाहर कर दिया।

ट्रंप दे चुके हैं अलग होने की धमकी

हालिया दौर में अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप बार-बार अमेरिका को नाटो से अलग करने की धमकी दे चुके हैं। ट्रंप का मानना है कि यूरोपीय देश अपनी सुरक्षा के लिए पर्याप्त खर्च नहीं कर रहे हैं। सुरक्षा का सारा बोझ अमेरिका उठा रहा है। ट्रंप ने धमकी दी है कि अगर यूरोपीय सुरक्षा पर 2 फीसदी खर्च नहीं कर सकता है तो अमेरिका संगठन से पीछे हट जाएगा।

यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की मंशा से रूस से नाराज

रूस का यूक्रेन पर हमला नाटो से ही जुड़ा है। यूक्रेन लगातार नाटो में शामिल होने की मंशा जता रहा था, रूस इसे अपने लिए खतरा मानता है। लिहाजा रूस ने साल 2022 में यूक्रेन पर हमला बोल दिया। बीते तीन साल से यूक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है।