
Russia will remove Taliban from the list of terrorist organization
रूस ने तालिबान (Taliban) को आतंकी संगठन की लिस्ट से बाहर करने का जो फैसला लिया है उसकी पूरी दुनिया में आलोचना हो रही है। कहा जा रहा है कि रूस (Russia) तालिबान के साथ मिलकर आतंकी गतिविधियों में शामिल होगा या फिर तालिबान की आड़ में अपने दुश्मन देशों के खिलाफ गतिविधियां करेगा। हालांकि रूस ने तालिबान को आतंकी ना मानने का जो तर्क दिया है वो किसी के गले नहीं उतर रहा है।
रूसी एजेंसी RIA नोवोत्सी की रिपोर्ट के मुताबिक रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावारोव (Sergei Lavrov) ने कहा कि तालिबान एक ताकतवर और मजबूत संघ है। अफगानिस्तान (Afghanistan) में उसका शासन काबिले-तारीफ है, उसने अब ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके चलते उसे आतंकी संगठन की लिस्ट में रखा जाए। इसलिए रूस तालिबान (Taliban) को आतंकी संगठन की लिस्ट से बाहर करेगा और तालिबान के साथ मिलकर एक नए संबंधों की इबारत लिखेगा। सर्गेई ने कहा कि तालिबान सेंट्रल एशिया में हमारा साथी है, हमारे सहयोगी भी उनसे अलग नहीं है।
बता दें कि रुस ने ये फैसला तालिबान के अफगानिस्तान में कब्जे के 3 साल बाद लिया है। रूस ने तालिबान पर करीब 21 साल पहले 2003 में उसे आतंकी संगठन की लिस्ट में डालकर उस पर बैन लगा दिया था।
हालांकि तालिबान ने जब अफगानिस्तान से अमेरिका सेना के बाद उस पर कब्जा जमा लिया था तो फिर रूस तालिबान के करीब आ गया था और सालों से इनके बीच संबंध बन रहे हैं। इसकी वजह अमेरिका सेना के अफगानिस्तान से अपना नाता तोड़ लेना भी था क्य़ोंकि रूस अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है। गौर करने वाली बात ये भी है कि साल 2018 में अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के प्रमुख ने दावा किया था कि रूस तालिबान को हथियार मुहैया करा रहा था जिससे वो अफगानिस्तान में इतना आतंक मचा रहा है। हालांकि तब रूस ने अमेरिका के इन आरोपों को खारिज कर दिया था।
विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि रूस ने फैसला जमीनी हकीकत को जानने के बाद ही लिया है। रूस ने कहा कि एशिया में भी साल 2023 में कजाकिस्तान ने तालिबान को आतंकी सूची से बाहर कर दिया था। तालिबान ही असली शक्ति है। रूस ने तालिबान प्रतिनिधियों को अपने प्रमुख सेंट पीटर्सबर्ग इंटरनेशन इकोनॉमिक फोरम (अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच) में भी आमंत्रित किया है। ये कार्यक्रम 5 से 8 जून के बीच होगा।
मॉस्को का अफगानिस्तान (Russia-Afghanistan Relation) के साथ एक पुराना संबंध है। साथ इनका इतिहास भी काफी उलझा हुआ है। 1980 के दशक में सोवियत संघ ने क्रेमलिन समर्थित अफगानिस्तान की सरकार का समर्थन करने के लिए तालिबान के गुरिल्ला मुजाहिदीन लड़ाकों के खिलाफ एक दशक लंबा युद्ध (Soviet-Afghanistan War) लड़ा था। दिसंबर 1979 के आखिर में सोवियत सैनिकों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण किया था। लेकिन तालिबान ने ये युद्ध अमेरिका की सेना की मदद से जीत लिया और सोवियत सेना को अफगानिस्तान से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। ये युद्ध 1978 से 92 और फरवरी 1989 के बीच तक अफगानिस्तान में चला था।
व्लादिमिर पुतिन के 2003 में तालिबान को बैन करने के बाद साल 2017 में रूस ने अफगानिस्तान की सरकार को बचाने में हस्तक्षेप किया था। तालिबान और अफगानी सरकार के बीच में समझौता कराने के लिए रूस ने दखल दिया था। इसके बाद अब 2024 में फिर रूस ने तालिबान से हाथ मिला लिया है।
विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि 80 के दशक में रूस ने तालिबान की ताकत का अंदाजा लगा लिया था कि जिसने सोवियत सेना को बाहर का रास्ता दिखा दिया वो कितना ताकतवर होगा। रूस इसी ताकत का फायदा अब उठाना चाहता है। तालिबान अमेरिका का दुश्मन है और रूस अमेरिका को अपना दुश्मन मानता है। इसलिए अमेरिका जैसी शक्ति से निपटने के लिए अब रूस को तालिबान की जरूरत है। इनके रिश्तों की शुरुआत व्यापारिक संबंध से शुरू होगी जो कहां पर ठहरेगी इसके बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। क्योंकि रूसी न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक तालिबान अब रूस से तेल खरीदना चाहता है। इसका प्रस्ताव 5 से 8 जून को मॉस्को में होने जा रहे अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक मंच पर भी तालिबान रख सकता है।
रूस का ये कदम रूस और अफगानिस्तान के बीच कूटनीति को और बढ़ावा दे सकता है। हालांकि तालिबान की इच्छा "अफगानिस्तान का इस्लामी अमीरात" कहना ये फिलहाल पूरा नहीं हो सकता क्य़ोंकि खुद विदेश मंत्री ने इसके लिए अभी हामी नहीं भरी है।
Updated on:
29 May 2024 01:07 pm
Published on:
29 May 2024 12:21 pm
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