दलितों के हितों की बात कर यूपी की राजनीति करने वाली मायावती की पार्टी के वोट बैंक में अब सेंधमारी तेज हो रही है। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व मेयर को जो जिम्मेदारी सौंपी है, वो अन्य दलों के लिए एक बड़ा झटका है। माना जा रहा है कि इस बार पार्टी लोकसभा चुनाव में कई तरह के नए प्रयोग कर सकती है। आगरा दलितों की राजधानी माना जाता है। यहां के कुल वोट बैंक में 30 प्रतिशत दलित वोटर शामिल हैं जो हार जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं।
राजनीति के जानकार और वरिष्ठ इतिहासकार डॉ.पीयूष श्रीवास्तव का मानना है कि जिस प्रकार से भाजपा को साल 2014 में प्रचंड बहुमत मिला था। उसके बाद पार्टी पूरी तैयारी के साथ साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गई है। पिछले चार उपचुनावों में पार्टी ने विकास को ऐजेंडा बनाया लेकिन, गोरखपुर, फूलपुर, कैराना और रामपुर के उपचुनाव में पार्टी का विकास का ऐजेंडा फेल हो गया। अब पार्टी विकास के बाद जातिगत वोट बैंक पर निशाना साधने का काम कर रही है। भाजपा अपने मूल वोट बैंक के साथ एससी और एसटी वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है। इस लिहाज से दलित चेहरों को भाजपा आगे ला रही है। बेबी रानी मौर्या को उत्तराखंड का राज्यपाल बनाए जाने को लेकर वोट बैंक की राजनीति से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि साफ स्वच्छ छवि के ऐसे चेहरों को आगे लाने से पार्टी के नेताओं द्वारा विरोध भी नहीं किया जाएगा।