सपा सरकार में हुई थी शुरुआत
सिविल टर्मिनल के लिए सपा सरकार से ही प्रयास चल रहे हैं। जमीन अधिग्रहण के लिए सपा सरकार में एक किस्त जारी की गई थी। विधानसभा चुनाव आ जाने के कारण यह योजना ठंडे बस्तें में पड़ गई थी। सपा सरकार फिर से प्रदेश में नहीं आ सकी। भाजपा सरकार बनी, इसके करीब तीन महीने बाद सिविल टर्मिनल के लिए भाजपा सरकार ने 64 करोड़ रुपये का बजट जारी किया। जमीन अधिग्रहण भी हुआ, लेकिन चार हेक्टेयर जमीन जिला प्रशासन के गले की फांस बन गई है। हर संभव जमीन का अधिग्रहण किए जाने की कोशिश की जा रही है,लेकिन तहसील सदर प्रशासन को अभी तक सफलता नहीं मिली है।
सिविल टर्मिनल के लिए सपा सरकार से ही प्रयास चल रहे हैं। जमीन अधिग्रहण के लिए सपा सरकार में एक किस्त जारी की गई थी। विधानसभा चुनाव आ जाने के कारण यह योजना ठंडे बस्तें में पड़ गई थी। सपा सरकार फिर से प्रदेश में नहीं आ सकी। भाजपा सरकार बनी, इसके करीब तीन महीने बाद सिविल टर्मिनल के लिए भाजपा सरकार ने 64 करोड़ रुपये का बजट जारी किया। जमीन अधिग्रहण भी हुआ, लेकिन चार हेक्टेयर जमीन जिला प्रशासन के गले की फांस बन गई है। हर संभव जमीन का अधिग्रहण किए जाने की कोशिश की जा रही है,लेकिन तहसील सदर प्रशासन को अभी तक सफलता नहीं मिली है।
कॉमर्शियल रेट से मुआवजे की मांग
चार हेक्टेयर जमीन को लेकर किसानों के साथ सहमति नहीं बन पा रही है। अब किसान कॉमर्शियल रेट के मुताबिक मुआवजे की मांग कर रहे हैं, जबकि यही योजना के लिए कृषि दर के मुताबिक मुआवजा दिया गया है। एसडीएम सदर श्यामलता आनंद ने बताया कि पूर्व में मुआवजा राशि तय हुई थी, उसी के मुताबिक करीब 19 हेक्टेयर जमीन का मुआवजा दिया गया है, लेकिन अब किसान शेष चार हेक्टेयर जमीन का कॉमर्शिलयल रेट के मुताबिक मुआवजा मांग रहे हैं, इसी कारण सहमति नहीं बन पा रही है।
गले की फांस न बन जाए मुआवजा
धनौली और उसके आस पास आवासीय भूमि है। इसी कारण से किसान मुआवाज आवासीय और कॉमर्शियल रेट का मुआवाजे की डिमांड कर रहे हैं। अब प्रशासन के सामने दिक्कत ये आ रही है कि अगर चार हेक्टेयर के लिए मुआवजा कॉमर्शियल रेट से दिया गया, तो एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो रेट होना गले की फांस बन सकता है। कृषि दर पर मुआवजा ले चुके किसान फिर से मुआवजे की मांग कर सकते है।।
धनौली और उसके आस पास आवासीय भूमि है। इसी कारण से किसान मुआवाज आवासीय और कॉमर्शियल रेट का मुआवाजे की डिमांड कर रहे हैं। अब प्रशासन के सामने दिक्कत ये आ रही है कि अगर चार हेक्टेयर के लिए मुआवजा कॉमर्शियल रेट से दिया गया, तो एक ही प्रोजेक्ट के लिए दो रेट होना गले की फांस बन सकता है। कृषि दर पर मुआवजा ले चुके किसान फिर से मुआवजे की मांग कर सकते है।।