
पत्रिका न्यूज नेटवर्कअजमेर/नागोला। नागोला उप तहसील क्षेत्र को हरा भरा करने के दौर में लगाया गया विलायती बबूल (कीकर) अब पर्यावरण और पेड़-पौधों का दुश्मन साबित हो रहा है। विलायती बबूल खुद जीवित रहने के लिए आसपास की लाभकारी व औषधीय वनस्पति को भी निगल रहा है। इसका क्षेत्र में बढ़ता दायरा अन्य वनस्पति के लिए संकटकारी बन गया है।
लगभग तीन दशक पहले अरावली पर्वत शृंखला को हरा-भरा करने के लिए हेलिकॉप्टर से विलायती बबूल (कीकर) के बीज बिखेरे गए थे। इन विलायती बबूल के पेड़ों से अरावली पर्वतमाला में भले ही हरियाली नहीं फैली लेकिन यह क्षेत्र के खेत, उपजाऊ जमीन और जंगल से होते हुए सभी जगह फैल गया।
विलायती बबूल को यहां जमीन इतनी रास आई कि इसके सामने अन्य दूसरी प्रजातियों के पौधों का अस्तित्व संकट में आ गया। इसके कंटीले पौधों का दुष्प्रभाव अब जनजीवन पर भी पड़ऩे लगा है। ये कंटीले पौधे जीव-जंतु व पक्षी के लिए घातक होने के साथ ही पर्यावरण को भी निगल रहा है।
सरकारी स्तर पर विलायती बबूल को हटाने का काम शुरू तो हुआ लेकिन कीकर के पेड़ों के बढ़ते क्षेत्रफल के आगे निष्फल ही साबित हुआ है। विलायती बबूल को काटकर कोयला बनाने में बड़ी मात्रा में इन विलायती बबूल को काम में लिया जा रहा है जिससे अब कुछ हद तक कम हुए हैं क्षेत्र में विलायती बबूल।
Published on:
21 Jan 2023 03:23 pm
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