रक्तिम तिवारी/अजमेर.
विद्यार्थियों को इंजीनियरिंग और मेडिकल प्रवेश परीक्षा (entrance exam)की तैयारी लिए शुरू की गई नि:शुल्क कोचिंग व्यवस्था (free coaching) बदहाल है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (science and technology) की योजना का शुरुआत में विद्यार्थियों को फायदा भी मिला। विशेषज्ञों को पारिश्रमिक भुगतान बंद करते ही योजना पर खतरा मंडरा गया है।
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यह थी नि:शुल्क कोचिंग योजना
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने वर्ष 2013-14 में विज्ञान संकाय के स्कूली विद्यार्थियों (school students) को इंजीनियरिंग (engineering) और मेडिकल (medical) संस्थानों में प्रवेश के लिए नि:शुल्क कोचिंग की शुरूआत की थी। इसके लिए उपग्रह संचार (सेटकॉम) का सहारा लिया गया। इंदिरा गांधी पंचायती राज विभाग में स्थापित स्टूडियो में विषयवार विशेषज्ञों (subject experts) को बुलाकर व्याख्यान (lecture) कराए गए। इनका वेबकैम से स्कूल, जिला परिषद, पंचायत समिति, और डाइट में स्थापित टर्मिनल केंद्र पर किया गया।
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मिला विद्यार्थियों को फायदा
-सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों को विषयवार पढ़ाई में सुविधा
-स्कूल-कॉलेज के विषय विशेषज्ञों ने तैयार किए विशेष व्याख्यान
-तकनीकी सहायता के लिए एनिमेशन, ग्राफिक्स, पावर पॉइन्ट प्रजन्टेशन
-समस्याओं-कठिनाइयों पर सवाल-जवाब करना आसान
-व्याख्यान के बाद विद्यार्थियों से फीडबैक
-फिजिक्स, केमिस्ट्री, जूलॉजी, बॉटनी, गणित के व्याख्यान
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यूं बदहाल हुई योजना
कॉलेज और स्कूल शिक्षा सहित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने विषयवार विशेषज्ञों के रूप में व्याख्याताओं का चयन (selection) किया। इसमें सरकारी स्कूल और कॉलेज, विश्वविद्यालयों और इंजीनियरिंग संकाय के कार्यरत (appointed) और सेवानिवृत्त शिक्षकों (retired) को शामिल किया गया। अजमेर, किशनगढ़ और अन्य कॉलेज-स्कूल व्याख्याताओं ने शुरुआत में जयपुर जाकर व्याख्यान दिए। इन्हें पावर प्रजन्टेशन (ppt) , आने-जाने के किराए सहित प्रति व्याख्यान 3 हजार रुपए दिए गए। चार वर्ष पूर्व पारिश्रमिक बंद होते ही योजना बदहाल हो गई।
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निजी कोचिंग को ज्यादा तरजीह
सरकार की नि:शुल्क इंजीनियरिंग-मेडिकल परीक्षा तैयारी की योजना की नाकामी में निजी कोचिंग का भी अहम योगदान है। विद्यार्थी कोटा, जयपुर सहित अन्य शहरों के निजी कोचिंग संस्थानों (private coaching) को ज्यादा तरजीह देते हैं। निजी संस्थानों के मोटी फीस वसूली के बावजूद स्कूली विद्यार्थियों और परिजनों की रुचि इनमें ज्यादा है।
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इंजीनियरिंग-मेडिकल की नि:शुल्क कोचिंग योजना वास्तव में नायाब है। खासतौर पर सरकारी-निजी स्कूल के विद्यार्थियों को विषयवार व्याख्यानों का इसका फायदा भी मिला। पहले विशेषज्ञों को पारिश्रमिक मिलता था। बाद में इसे बंद कर दिया गया। इस योजना को संभागीय मुख्यालयों पर चलाया तो शिक्षकों-विद्यार्थियों को आसानी होगी। विशेषज्ञों को पीपीटी तैयारी और आवाजाही के लिए न्यूनतम पारिश्रमिक दिया जा सकता है।
डॉ. आलोक चतुर्वेदी, रीडर केमिस्ट्री, एसपीसी-जीसीए