
Guru Gobind Singh Jayanti special: पुष्कर के गऊ घाट पर किया था गोबिंद सिंहजी ने स्नान
अजमेर. सिखों के दसवें और अन्तिम गुरु (Guru Gobind Singh), धर्म की रक्षा के लिए खालसा सेना की स्थापना करते हुए ‘वाहे गुरुजी का खालसा वाहे गुरुजी की फ तह‘ का नारा देने वाले तथा मुगलों से राष्ट्रधर्म की रक्षार्थ वीरता और बलिदान की मिसाल कायम करने वाले पूज्य गुरु गोबिंद सिंहजी की आज जयंती( Guru Gobind Singh Jayanti ) है।
इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर जिन दो बालकों को दीवार में चुनवा दिए जाने का वीरतापूर्ण किस्सा हम सभी बचपन से सुनते आ रहे हैं, वे भी इन्हीं के पुत्र थे। जो पांच ककार केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण आज सिख समुदाय की पहचान बन गए हंैं उन्हें लागू करने वाले भी गुरु गोबिंद सिंह ही थे। ‘सतश्री अकाल‘(Sat Shri akal) का नारा देते हुए उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया था कि संत केवल धार्मिक शिक्षा (religious education) ही नहीं देते वरन् आवश्यकता पडऩे पर धर्मरक्षा के लिए युद्ध भी कर सकते हैं।
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सिखों के पवित्र धर्मग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब (Guru Granth Sahib) को अंतिम गुरु का दर्जा भी गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। फ ारसी भाषा में जफ रनामा (विजयपत्र) लिखकर औरंगजेब को चेतावनी देने वाले गुरु गोबिंद सिंह 1706 ई. में अजमेर(ajmer news) के निकट स्थित ब्रह्मतीर्थ पुष्कर (Pushkar ) भी आए थे। यहाँ उन्होंने गऊ घाट पर पवित्र पुष्कर सरोवर(pushkar sarover) में स्नान किया था।
तत्पश्चात समकालीन राजपूत राजाओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक करते हुए उनसे मातृभूमि की रक्षा के लिए समर्थन प्राप्त किया था। दरअसल वे राजपुताना की यात्रा पर इसीलिए आए थे। कहा जाता है कि पुष्कर में उनकी सेवा एक ब्राह्मण पुजारी चेतनदास ने की थी। जिस जगह वे लगभग एक सप्ताह रहे उसे बाद में गोबिंद घाट कहा गया और कालांतर में उस स्थान का नाम बदलकर गांधी घाट कर दिया गया। कहते हैं कि महंत चेतनदास के पास वह स्थान आवंटन करने संबंधी गुरु गोबिंद सिंह द्वारा भोजपत्र पर हस्तलिखित हुकुमनामा भी था।
उनसे पूर्व 1509 ई. में गुरु नानक भी उनके जन्मदिवस कार्तिक पूर्णिमा पर पुष्कर स्नान के लिए आए थे। इसी दिन प्रति वर्ष पुष्कर मेला भी लगता है। सिखों के इन दो प्रमुख गुरुओं के पुष्कर आगमन की स्मृति में यहाँ ‘गुरुद्वारा सिंह सभा‘ स्थापित किया गया। इस स्थान को पूर्व में गुरु नानक धर्मशाला भी कहा जाता था, जिसका निर्माण 19वीं शताब्दी के लगभग माना जाता है। इस गुरुद्वारे का संचालन श्री गुरु सिंह सभा अजमेर द्वारा किया जाता है। धर्म, संस्कृति और मातृभूमि के प्रति अपना सर्वस्व न्योछावर कर देने वाले महान् आध्यात्मिक गुरु गोबिंद सिंह को श्रद्धापूर्वक नमन।
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Published on:
02 Jan 2020 12:55 pm
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