वर्ष 2005-06 में प्रदेश में 15 लॉ कॉलेज स्थापित हुए। इनमें अजमेर, भीलवाड़ा, सीकर, नागौर, सिरोही, बूंदी, कोटा, झालावाड़ और अन्य कॉलेज शामिल हैं। इनको बार कौंसिल ऑफ इंडिया से स्थाई मान्यता नहीं मिल पाई है। इन्हें प्रतिवर्ष संबंधित विश्वविद्यालय का सम्बद्धता पत्र, निरीक्षण रिपोर्ट और पत्र भेजना पड़ता है। इसके बाद प्रथम वर्ष के दाखिले होते हैं इसके अलावा ये कॉलेज यूजीसी के नियम 12 (बी) और 2 एफ में पंजीकृत ही नहीं हुए हैं। तेरह साल से कॉलेज बिना पंजीयन के संचालित हैं।
ये है नियम…. यूजीसी के नियम 12 (बी) और 2 एफ के तहत सभी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को पंजीयन होता है। संस्थाओं में शैक्षिक विभाग, शिक्षकों और स्टाफ की संख्या, भवन, संसाधन, सह शैक्षिक गतिविधियों के आधार पर पंजीयन होता है। पंजीकृत कॉलेज-विश्वविद्यालयों को विकास कार्यों, शैक्षिक कॉन्फे्रंस, कार्यशाला, भवन निर्माण के लिए बजट मिलता है।
ये हैं लॉ कॉलेज के हाल अजमेर सहित कोई लॉ कॉलेज के यूजीसी के नियम 12 (बी) और 2 एफ में पंजीकृत नहीं है। यूजीसी की नैक ग्रेडिंग रिपोर्ट में यह स्थिति सामने आई है। लॉ कॉलेज ने यूजीसी को भेजी रिपोर्ट में बताया कि भवन, शिक्षक और संसाधन उपलब्ध हैं। लेकिन यूजीसी के नियमानुसार पंजीकरण नहीं होने से ग्रेड के लिए आवेदन करना मुश्किल है।
अब तक पिछड़े हैं कॉलेज प्रदेश के लॉ कॉलेज अब तक पिछड़े हैं। राजस्थान लोक सेवा आयोग से चयनित व्याख्यातओं की नियुक्ति के बावजूद शिक्षक कम हैं। कुछव्याख्याता अपने सियासी रसूखात के चलते विश्वविद्यालयों और कॉलेज शिक्षा निदेशालय में पदस्थापित हैं। पृथक प्राचार्य पद सृजित नहीं है। वरिष्ठ रीडर ही यह जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
नहीं शुरू हुए प्रवेश प्रथम वर्ष के दाखिले अटके हुए हैं। सरकार को सभी कॉलेज में स्थाई प्राचार्य, पर्याप्त व्याख्याता, स्टाफ की नियुक्ति और संसाधनों की कमी दूर करनी है। अजमेर सहित अन्य कॉलेज में शारीरिक शिक्षक, खेल मैदान, सभागार, और अन्य सुविधाएं भी नहीं हैं।
यूजीसी के 12 बी-2एफ में पंजीकरण होने के बाद ही ग्रेडिंग के लिए आवेदन संभव है। फिलहाल इसमें कॉलेज पंजीकृत नहीं है। इस मामले में सरकार, यूजीसी और बीसीआई ही फैसला लेने के लिए अधिकृत हैं। डॉ. डी. के. सिंह प्राचार्य लॉ कॉलेज