
vice chancellor removal case
अजमेर
राज्य सरकार (state govt of rajasthan) के कुलपतियों (vice chancellor) को हटाने और नियुक्ति संबंधित संशोधित नियमों को लेकर सभी विश्वविद्यालयों में चर्चाएं जारी हैं। लेकिन एक अजीब प्रावधान से इसकी वैधानिकता पर सवाल खड़े हो सकते हैं। इसमें कुलपतियों को मामलों की जांच-हटाए जाने तक पूरे वेतन-भत्ते और अन्य लाभ देने का अजीब प्रावधान रखा गया है।
प्रदेश में 27 सरकारी विश्वविद्यालय हैं। विश्वविद्यालयों में स्थाई कुलपतियों की नियुक्ति के लिए नियमानुसार प्रक्रिया बनी हुई है। इसके तहत सर्च कमेटी (VC search committee)का गठन होता है। इसमें यूजीसी (ugc), राज्य सरकार, राजभवन (raj bhawan)और संबंधित विश्वविद्यालय के सीनेट/प्रबंध मंडल के नामित सदस्य को शामिल किया जाता है। सर्च कमेटी कुलपति योग्य उम्मीदवारों के आवेदनों की छंटनी कर तीन से पांच नाम का पैनल (penal) तैयार करती है। राज्य सरकार और राजभवन के बीच सहमति होने पर इनमें से एक शिक्षक को कुलपति नियुक्त किया जाता है।
हटाना है तो लाभ क्यों ?
कुलपतियों को हटाने का सरकार अथवा राजभवन के पास कोई अधिकार नहीं है। हाल में सरकार ने विश्वविद्यालय की विधियां (संशोधन) विधेयक 2019 पारित (new act) किया है। इसमें कुलपति को हटाने (removal of VC) को लेकर प्रावधान सुनिश्चित किया गया है। नियम की उपधारा (1) में कहा गया है किस भी जांच के लंबित रहने के दौरा या उसको ध्यान में रखते हुए कुलाधिपति , सरकार के परामर्श कुलपति को हटा सकेंगे। उपधारा (क) में कहा गया है, कि ऐसा कुलपति पद के कृत्यों का पालन करने से विरत रहेगा, लेकिन वह उन परिलब्धियों (salary) को प्राप्त करता रहेगा, जिनका वह हकदार था। इसी प्रावधान से सवाल उठ गए हैं। कुछ पूर्व कुलपतियों ने बताया कि जब संबंधित व्यक्ति को पद के दुरुपयोग, अनियमितता अथवा अन्य आचरण के खिलाफ हटाया जाना है, तो पारदर्शी जांच कैसे हो सकेगी। दोष सिद्ध होने पर उसे देय वेतन-भत्ते वसूले जाएंगे या नहीं इसको लेकर कोई व्यवस्था नहीं दी गई है।
2017 में यह हुआ था संशोधन
तत्कालीन भाजपा सरकार (bjp regime) ने साल 2017 में नियमों में संशोधन किया था। इस अधिनियम की धारा 9 (10) के तहत किसी विश्वविद्यालय के कुलपति पद की कोई स्थाई रिक्ति, मृत्यु, त्यागपत्र, हटाए जाने, निबंलन के कारण या अन्यथा होने पर कुलाधिपति (chancellor)को सरकार से परामर्श कर दूसरे विश्वविद्यालय के स्थाई कुलपति को अतिरिक्त दायित्व सौंपने की व्यवस्था लागू की गई है।
नौ महीने से अधर में विश्वविद्यालय
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के हालात राज्य में सबसे खराब हैं। यहां कुलपति प्रो. आर. पी. सिंह के कामकाज पर राजस्थान हाईकोर्ट (rajsthan high court) ने 11 अक्टूबर 2018 से रोक लगाई हुई है। अदालत ने कुलपति प्रो. सिंह को हटाया नहीं। ऐसे में किसी दूसरे विश्वविद्यालय के कुलपति को भी कार्यभार सौंपा नहीं जा सका है। नौ महीने में विश्वविद्यालय की शैक्षिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्थिति जबरदस्त प्रभावित हुई है।
Published on:
29 Jul 2019 07:14 am
बड़ी खबरें
View Allअजमेर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
