अजमेर (Ajmer). खरीफ की दलहन की फसलों (Cropes)को समेटने एवं दलहनी फसलों को निकालने के लिए पंजाब की थ्रेशर मशीनें अजमेर जिले के कई गांवों में दिन रात चल रही हैं। पंजाब की इन थ्रेशर मशीनों का राजस्थान के खेतों में अब राज जमने लगा है। इसकी वजह भी यही मानी जा रही है कि मजदूरों की कमी या फिर मजदूरी महंगी पडऩे के चलते इन थ्रेशर मशीनों का उपयोग किया जाने लगा है।
अजमेर जिले में इस बार मानसून की मेहरबानी के चलते ज्वार, बाजरे के साथ दहलनी फसलें भी लहलहा रही है। जिन गांवों एवं खेतों में अगेती दलहनी फसलें हैं उनमें से दलहन-मूंग, चवला आदि निकालने के लिए थ्रेशर मशीनें चल रही हैं। ये थे्रशर मशीनें खेतों में खड़ी फसल की कटाई करने के साथ मूंग, चवला व अन्य दलहन को अलग-अलग कर देती है। दलहन की फलियां व पत्ते कटकर अलग हो जाते हैं और मूंग, चवला आदि के दाने मशीन के अलग भाग में भंडार होते जाते हैं, जो मशीन पर लगे पाइप के माध्यम से ट्रेक्टर ट्रॉलियों में भर देती हैं।
Read more:राजनीतिक षड्यंत्र के तहत कार्रवाई का आरोप
गांवों में श्रमिकों की कमी की भरपाई
गांवों में एक साथ खेतों में फसलों की कटाई व मूंग आदि निकालने के चलते समय पर श्रमिक नहीं मिल पाते हैं, वहीं आसमान में बादल छाने से बारिश की आशंका और फसल में खराबे की आशंका के चलते इन थ्रेशर मशीनों का उपयोग करते हैं।
Read more : चिकित्सकों ने बढ़ाए मेक इन इंडिया की ओर कदम
मशीन का खर्चा कम
थ्रेशर मशीन से मूंग, चवला व अन्य फसलें कटवाने व निकलवाने में मजदूरों से कम खर्चा आता है। पांच से दस-दस हैक्टेयर वाले खेतों मेें मशीनों का उपयोग ज्यादा किया जाता है।