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Rainy season: छह दिन बाद पड़ी फुहारें, उमस और गर्मी ने बहा दिए लोगों के पसीने

सूखे बांधों और तालाबों को पानी से जिंदगी मिलती है। खेतों में फसलो की बुवाई शुरू हो जाती है।

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rain shavers

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अजमेर

आषाढ़ के बादलों ने छह दिन बाद चुप्पी तोड़ी। बादलों ने सुबह शहर के कई इलाकों में फुहारें छोड़ी। बाद में धूप-छांव का दौर चला। उमस और गर्मी ने लोगों को पसीने से तरबतर कर दिया।

पिछले छह दिन से तरसाने वाले बादल सुबह कुछ मेहरबान हुए। सुबह करीब 8.50 बजे वैशाली नगर, पंचशील, माकड़वाली रोड, आनासागर लिंक रोड और अन्य इलाकों में फुहारें पड़ी। इससे सड़कें गीली हो गई। इसके बाद दोपहर में सिविल लाइंस, जयपुर रोड, कचहरी रोड, मेयो लिंक रोड क्षेत्र, क्रिश्चियनगंज, श्रीनगर रोड सहित अन्य क्षेत्रों में बौछारें गिरी। अन्य इलाकों में भी टपका-टपकी का दौर चला। बाद में मौसम में बनी उमस और हल्की गर्माहट से लोग पसीने से तरबतर होते रहे।

बरसात है वरदान
मानसून और बरसात के राजस्थान में अपने कई मायने भी हैं। इस रेतीले और गर्म प्रांत में बरसात किसी वरदान से कम नहीं होती। सूखे बांधों और तालाबों को पानी से जिंदगी मिलती है। खेतों में फसलो की बुवाई शुरू हो जाती है। लेकिन बारिश का सैर-सपाटा करने वालों को भी सालभर इंतजार रहता है। वैसे भी मरुधरा अपने खूबसूरत किलों, महलों, घाटियों, वादियों और दिलकश नजारों के लिए विश्व विख्यात है। बरसात में तो इसकी सुंदरता और निखर जाती है। खासतौर पर पिकनिक स्पॉट तो बरसात में हर वक्त आबाद रहते हैं।

कई खतरे हैं बरसात में
प्रदेश में कई पिकनिक स्पॉट खूबसूरती के साथ जानलेवा खतरे के लिए जाने जाते हैं। लोगक ऊंची पहाड़ों से गिरते झरनों में नहाने, गहरे तालाबों और नदियों, टापूओं पर घूमने-फिरने, मौसम का लुत्फ उठाने जाते हैं। दुर्भाग्यवश हर कई लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं। कोई डूबकर तो कोई जानबूझकर जिंदगी को खत्म कर लेता है। हकीकत में यह हादसे सरकारी तंत्र की बेफिक्री को दर्शाते हैं। प्रदेश के चुनिंदा स्थानों को छोड़ दें, तो ज्यादातर छोटे या बड़े पिकनिक स्थल सुरक्षित श्रेणी में नहीं आते हैं। बरसात आने से पहले इन क्षेत्रों में ना रोड ठीक होते हैं ना कोई नाव, लाइफ जैकेट जैसे इंतजाम होते हैं। कई जगह तो लोगों को चेतावनी देने का बोर्ड भी नजर नहीं आता।

सिर्फ जताते हैं अफसोस
कई घुमावदार घाटियों पर दीवार टूटी दिखती है। पर्याप्त लाइट, आपातकालीन सेवाओं का अभाव दिखता है। हर बार कहीं पानी के तेज बहाव में लोगों या वाहन बहने जैसे हादसे होते हैं। कहीं चट्टान गिरने, बड़ा पुल या पुलिया ढह जाती है। घटनाओं के बाद शासन-प्रशासन अफसोस जताने के सिवाय कुछ नहीं करते। घटना से सबक लेने के बजाय सबकुछ भुलाने की परम्परा चलती रहती है।

वास्तव में बरसात से पहले हर जिले में बंदोबस्त चुस्त-दुरुस्त होने चाहिए। विशेष तौर पर पहाड़ी इलाकों के पिकनिक स्थल, गहरे झरनों-तालाबों के पास तो विशेष सुरक्षा, बचाव दल, प्राथमिक चिकित्सा के इंतजाम होने ही चाहिए। इससे कुदरती या अन्य कारणों से हुए हादसों से निबटने और उन्हें रोकने में मदद मिलेगी। साथ ही सरकार और प्रदेश के लिए ' बरसात बेवजह की मुसीबत के बजाय मददगार साबित होगी।