
luni river in rajasthan
रक्तिम तिवारी/अजमेर.
अतिक्रमण और अंधाधुंध विकास की चपेट में मृत ‘लूणी ’ (LUNI River) नदी को जिंदा करने की कवायद जल्द शुरू होगी। कृषि एवं वानिकी विकास योजना (agro and forset development) के तहत नदी के मार्ग को चिन्हित कर उसके दाएं और बाएं हिस्सों पेड़-पौधे लगाए जाएंगे। इससे उपजाऊ मिट्टी और जल संरक्षण होने के अलावा नदी में प्रदूषण कम हो सकेगा। वन विभाग और शुष्क वन अनुसंधान संस्थान जोधपुर (आफरी) मिलकर यह कार्य करेंगे।
लूणी नदी का उद्गम अजमेर जिले के तिलोरा (tilora ajmer) के निकट पहाड़ी से है। यह नदी नागपहाड़ अजमेर, पीसांगन, गोविंदगढ़, नागौर (nagaur) जिले से जोधपुर (jodhpur) , बाडमेर (barmer), सांचौर (sanchore) होते हुए कच्छ के रण (Ran of kach) में पहुंचती है। राजस्थान में यह 511 किलोमीटर क्षेत्र तय करती है।
यह हो गया है लूणी का हाल
-नदी के 508.543 हेक्टेयर क्षेत्र में नहीं है पानी
-तेज हवाओं के कारण 463.821 हेक्टेयर क्षेत्र (42.16 प्रतिशत) में मृदा अपरदन
-लूणी सहित माही, साबरमत नदी के किनारों पर सूखे-अकाल की स्थिति
-40 प्रतिशत से ज्यादा बहाव क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण, अवैध एनिकट निर्माण, मृदा खनन
केंद्र सरकार देगी बजट
नमामि गंगे प्रोजेक्ट (Namai gange project) की तर्ज पर भारतीय वानिकी अनुसंधान संस्थान, आफरी, वन, कृषि, राजस्व और अन्य विभाग प्रोजेक्ट (detail project) तैयार करने में जुटे हैं। यह प्रोजेक्ट मार्च 2020 तक तैयार कर केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (environment and forest) भेजा जाएगा। केंद्र सरकार इसका अवलोकन और मंजूरी देगी। राजस्थान सहित अन्य राज्य सरकारों को नदियों को पुनजीर्वित करने के लिए बजट (budget) मुहैया कराया जाएगा। इसमें राजस्थान की लूणी, बांडी, मीठड़ी और अन्य नदियां शामिल हैं।
यह होगा फायदा...
-लूणी के आसपास के क्षेत्रों में ईको टूरिज्म को मिलेगा बढ़ावा
-लगाए जा सकेंगे फल, जैविक और औषधीय महत्व के पौधे
-उपजाऊ मिट्टी के संरक्षण में मिलेगी मदद
-नदी के निकटवर्ती बंजर क्षेत्र में बढ़ेगी हरियाली
-झाडिय़ां, घास, पेड़-पौधे रोकेंगे नदी में प्रदूषण
फैक्ट फाइल
-तिलोरा के निकट पहाड़ी से निकलती है लूणी
-राजस्थान में 511 किलोमीटर तय कर मिलती है कच्छ में
-लूणी की सहायक नदियां की लंबाई 76 से 137 किलोमीटर तक
-नदी का बहाव क्षेत्र 52 प्रतिशत घाटी
-पहाड़ी और 48 प्रतिशत मैदानी इलाके में
लूणी नदी के उद्गम स्थल से गुजरात तक लूणी का बहाव क्षेत्र चिन्हित किया जाएगा। बहाव क्षेत्र की वन भूमि, कृषि भूमि, राजस्व भूमि और ओरण क्षेत्र में पांच-पांच किलोमीटर में घास, पेड़-पौधे लगाए जाएंगे। लूणी की सहायक बांडी, मीठड़ी और अन्य नदियों के दोनों ओर दो-दो किलोमीटर में पेड़-पौधे लगाएं जाएंगे। इसके लिए किसानों को पौधे और बीज दिए जाएंगे। उन्हें प्रोत्साहन देने और जल संरक्षण के लिए भूमिगत टैंक भी बनाए जाएंगे।
एम. आर. बालोच, निदेशक शुष्क वन अनुसंधान संस्थान (आफरी)
Published on:
27 Sept 2019 08:31 am
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