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PATANG : चली चली रे पतंग मेरी चली रे…

पतंगबाजी : बादलों के पार, आठ लाख का व्यापार, मकर संक्रान्ति पर पतंग उड़ाने की परम्परा कायम

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PATANG : चली चली रे पतंग मेरी चली रे...

PATANG : चली चली रे पतंग मेरी चली रे...

दिनेश कुमार शर्मा

अजमेर.

मकर संक्रान्ति पर एक बार फिर आसमान को रंग-बिरंगी पतंगों से अटने की तैयारी की जा रही है। शहर में पतंगों और चकरी-मांझे की दुकानें सज गई हैं। इन पर बिक्री भी शुरू हो गई है। एक अनुमान के अनुसार मकर संक्रान्ति के मौके पर जिले में 8 लाख से अधिक की पतंगें बिक जाती हैं।

करीब ढाई लाख रुपए पतंगें तो अकेले पुष्कर में उड़ती हैं। अजमेर में करीब डेढ़ लाख और केकड़ी, सरवाड़, रूपनगढ़, बिजयनगर सहित अन्य गांव-कस्बों में भी 25 से 50 हजार रुपए तक की पतंग-मांझे और चकरी की बिक्री होती है। तीर्थनगरी में विदेशी सैलानी भी पतंगबाजी का जमकर आनंद उठाते हैं।

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क्यों उड़ाते हैं पतंग

मान्यता है कि सतयुग में भगवान राम ने मकर संक्रान्ति के दिन पतंग उड़ाकर पतंगबाजी की शुरूआत की। उनकी पतंग इन्द्रलोक में चली गई थी। बाद में इस दिन पतंगबाजी परम्परा बन गई। वहीं वैज्ञानिक कारण में माना जाता है कि पतंगबाजी से शरीर के कई व्यायाम हो जाते हैं। सर्दी के दिनों में सुबह पतंग उड़ाने से ऊर्जा का संचार होता है।

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बरेली का मांझा, दिल्ली की सद्दी

शहर में बिक्री के लिए मांझा बरेली और सद्दी दिल्ली से लाई जाती है। कागज की पतंगें जयपुर और अहमदाबाद से लाई जाती हैं। अहमदाबाद से मंगवाई जा रही प्लास्टिक की पतंगों में प्रिंटेड के अलावा फैंसी पतंगें, जबकि कागज की पतंगों में कैंडिल, बैलून सहित प्रेरणादायक संदेश लिखी पतंगें शामिल होती हैं।

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इन दिनों में रहती है रौनक

शहर में 15 अगस्त, 26 जनवरी, रक्षाबंधन पर्व और मकर संक्रान्ति पर पतंगबाजी का अधिक क्रेज रहता है। इस दिनों छतों पर लोग समूह में पतंगबाजी का लुत्फ उठाते हैं।

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जुनून नहीं, अब परम्परा

हाथीभाटा में 45 साल से पतंग की दुकान कर रहे प्रदीप माथुर ने बताया कि पतंगबाजी का लोगों में अब पहले जैसा जुनून नहीं रहा, लेकिन परम्परा कायम है।

घसेटी बाजार में 2, केसरगंज में 1 और हाथीभाटा में 2 समेत पतंग की 5-6 दुकानें ही रह गई हैं। अब कभी स्कूल में बच्चों से पतंग मंगा लिए जाने तो कभी त्योहार पर पतंगबाजी को लेकर बिक्री होती है।

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कभी गोठ में ले जाते थे पतंग

कुंदननगर निवासी मुकेश भाई पटेल ने बताया कि तीन दशक पहले तक पतंगबाजी का खासा क्रेज था। लोग पिकनिक-गोठ तक में पतंगबाजी का लुत्फ उठाते थे। अब तो नई पीढ़ी पतंग की डोर (कन्ने) भी नहीं बांध पाती। दुकान से ही पतंग के कन्ने बांधकर दिए जाने लगे हैं।

02 : से 50 रुपए तक की है मार्केट में पतंग

05 : से 100 रुपए तक में मिल रही चकरी

05 : से 90 रुपए तक का है बाजार में गिट्टा

600 : रुपए में 6 हजार हाथ मांझे का चरखा चाइनीज मांझे पर है रोक

शहर में पतंगबाजी के दौरान चाइनीज मांझा काम में लेने पर रोक है। जिला प्रशासन ने मांझा में फंसकर परिंदों के जख्मी होने के मामलों को देखते हुए इसकी बिक्री पर रोक लगा रखी है।