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इलाहाबाद हाईकोर्ट: अपराध पर संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रेट को पुनर्विचार का नहीं है अधिकार

कोर्ट ने कहा कि न्यायिक पुनर्विलोकन की कोर्ट की शक्ति सीमित है। जिसका इस्तेमाल अपराध का संज्ञान लेने के आदेश पर पुनर्विचार करने में नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सी जे एम सहारनपुर व सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने जगवीर की याचिका पर दिया है। मालूम हो कि दर्ज़ एफ आई आर की विवेचना कर पुलिस ने अपराध की विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की।जिसपर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट: अपराध पर संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रेट को पुनर्विचार का नहीं है अधिकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट: अपराध पर संज्ञान लेने के बाद मजिस्ट्रेट को पुनर्विचार का नहीं है अधिकार

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक मामले में पुलिस चार्जशीट पर मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के बाद उस पर पुनर्विचार नहीं करने का उसे अधिकार नहीं है। कोर्ट ने अभियुक्त की एक धारा का अपराध न बनने के आधार पर आदेश वापस लेने से इंकार करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को सही करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि न्यायिक पुनर्विलोकन की कोर्ट की शक्ति सीमित है। जिसका इस्तेमाल अपराध का संज्ञान लेने के आदेश पर पुनर्विचार करने में नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने सी जे एम सहारनपुर व सत्र अदालत के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने जगवीर की याचिका पर दिया है। मालूम हो कि दर्ज़ एफ आई आर की विवेचना कर पुलिस ने अपराध की विभिन्न धाराओं में चार्जशीट दाखिल की।जिसपर मजिस्ट्रेट ने संज्ञान लेते हुए सम्मन जारी किया।याची अभियुक्त ने अर्जी दी कि धारा 308 का अपराध नहीं बनता। इसलिए इस धारा में लिया गया संज्ञान वापस लिया जाए। मजिस्ट्रेट ने अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि पुनर्विचार का उसे अधिकार नहीं है। इसके खिलाफ सत्र अदालत ने भी अर्जी खारिज कर दी।जिसपर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

यह भी पढ़ें: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया आदेश, कहा- नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा माता पिता को सौंपी जाए

कोर्ट ने जिलाधिकारी प्रयागराज संजय कुमार खत्री व अन्य अधिकारियों के खिलाफ अवमानना आरोप निर्मित करने के लिए 5 जुलाई को हाजिर होने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति जे जे मुनीर ने अशवाद हुसैन की अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है। मालूम हो कि कोर्ट ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर 14सितंबर 21को बच्चे को माता पिता की अभिरक्षा में सौंपने का आदेश दिया था।