चार यार साठ के पार छुठ गया साथ
इलाहाबाद धर्म और राजनीति की पहचान तो हिंदी साहित्य की राजधानी रहा है। जिस को समृद्ध करने में बड़ा योगदान साठोत्तरी पीढ़ी का रहा।जिसमें एक विशाल स्तंभ दूधनाथ सिंह थे। दूधनाथ सिंह जिनकी कहानीयां उपन्यास और आलोचनाएं हिंदी साहित्य में मील का पत्थर साबित हुई। 80 के दशक में साहित्य की दुनिया में सबसे ज्यादा चर्चित जोड़ीए जिसको नाम दिया गया । चार यार साठ के पारए जिसमें काशीनाथ सिंह ज्ञानरंजन रवींद्र कालिया और दूधनाथ सिंह शामिल थे। इन चारों में दो साहित्यकारों का आजीवन सम्बन्ध इलाहाबाद से रहा जिसमें रवींद्र कालिया और दूधनाथ सिंह थे। साठोत्तरी पीढ़ी के या यूं कहें कि पंत निराला और महादेवी से जुड़े रहे साहित्यकारों की पीढ़ी का आज अंत हो गया।एक लेखक ही नही बल्कि पूरा एक समय जिसके साथ कई पीढियों का जुड़ाव थाए वो छूट गया ।दो बरस पहले इस शहर और साहित्य जगत ने रवींद्र कालिया को खोकर दूधनाथ के सहारे साहित्य को सहजने का प्रयास जारी रखा हिंदी के साहित्य जगत में नए नए कीर्तिमान पिरोने का जो सिलसिला जारी रखा वह आज दूधनाथ के साथ रुक सा गया है।
मुद्दों पर कलम चली तो दूर तलक गई बात
जिन मुद्दों पर दूधनाथ सिंह अपनी कलम चलायी उन सब का संदेश दूर तक गयाए समाज की तत्काल की परिस्थितियों का चित्रण होता था। साहित्य कि अपनी जिम्मेदारी समाज को नई दिशा देना उस का निर्वहन आखिरी समय तक दूधनाथ सिंह ने किया। दूधनाथ के जाने से साहित्य जगत से एक लेखक मात्र नहीं गया।आज प्रयाग से साहित्य का पितामह भी चला गया। जिसकी भरपाई संभव नहीं है। साहित्य की राजधानी साहित्य का कुंभ साहित्य की गलियाँ चौक चौबारे सब सुने हो गए है। शहर ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदी को पढ़ने लिखने और समझने वाले ऐसे सैकड़ों लोग हैं। जिनको तराशा मांझा और आज एक शिक्षक एक साहित्यकार की तरह अपने सामने तैयार किया। दूधनाथ सिंह के जाने से साहित्य जगत सूना हो गया है। हर नये लेखक को यह उम्मीद रहती थीए की उसकी रचना को को पढ़ लेगे या उसको मंच दें देंगे तो साहित्यकार या लेखक होने की मोहर लग जायेगीऔर उसी मोहरबंदी की जिद होती थी एकी तमाम रूकावटो और परेशानी के बाद भी दूधनाथ आते थे।और अपनी बेबाक लेखक रचना और शब्दों पर रखते थे।अब उस पीढ़ी का कोई नही बचा जिसका आना बहुत जरुरी होगा।अब मोहर बन्दी कौन करेगा। साहित्य की राजधानी से साहित्य की सत्ता का सिंहासन खाली हो गया।
उनकी खुश मिजाजी के सब कायल थे
दूधनाथ बलिया के रहने वाले थे ।वहाँ से उच्चशिक्षा के लिये इलाहाबाद आए ।जहाँ हालैंडहाल छात्रावासमें रहा करते थे।अक्सर छात्रावास में अपने प्रिय या कह सकते है की मानस पुत्र सुधीर सिंह के पास आ जाते और अपने संस्मरण बताया करते।खुश मिजाज रहने वाले हर उम्र के लोगो की तरह बन जाना उन्हें सबके करीब लाता था। अक्सर कहते थे की इस शहर ने पंत निराला और महादेवी के बाद मुझे इलाहाबाद ने लेखक बना दिया।लेकिन साहित्य जगत और उनसे जुड़े लोग यह जानते है। की दूधनाथ के मानस पुत्र हैंएसुधीर सिंह है। सुधीर सिंह के जीवन में जितना महत्व दूधनाथ का रहा उतना ही दूधनाथ के जीवन में सुधीर महत्व रखते रहे। हालाकि प्रयाग की परंपरा इस मिट्टी की रवायत रही है एगुरु शिष्य परंपरा की लेकिन 1991 से सुधीर इनके सानिध्य में रहे और उनसे रचना पढना और समझना सीखा। एक बरस पहले जब उनकी तबियत ज्यादा खराब हुई और तब से और इलाहाबाद आने और अंतिम साँस तक 24 घंटे दिन और रात उनके साथ रहने वाले सुधीर ने कहा की आज मैंने अपना दूसरा पिता खो दिया है।
हिंदी साहित्य दिया नया आयाम
दूधनाथ सिंह की रचनाओं ने राजनीति संस्कृति और साहित्य को आइना दिखाया।लेकिन में सबसे चर्चित चर्चित साहित्य रहे उपन्यास आखिरी कलामए निष्कासन एनमो अंधकारमए हिंदी साहित्य के जगत में सुर्खियां बटोरी यह भी कहना अतिशयोक्ति नहीं है। कि झूठा सच के बाद वस्तुतः आखरी कलाम सबसे बड़ी रचना है। कहानी संग्रह सुखांत प्रेम कथा का अंत न कोईए सपाट चेहरे वाला आदमीए माई का शोकगीत धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्रए तू फू कथा समग्र से उन्होंने पाठकों और साहित्य जगत को बड़ी शब्दावली एक बड़ा विचार दिया। यमगाथा उनका चर्चित नाटक उनकी कविताओं में एक और भी आदमी हैए युवा खुशबूएअपनी शताब्दी के नाम एउनकी सबसे लंबी कविता जो चर्चित रही सुरंग से लौटते हुएए साथ ही निराला जी उनकी कविताओं का एक बड़ा आलोचनात्मक पक्ष लेकर आए। जिससे निराला जी को समझने उनको जानने और उनको पढ़ने का एक नया विचार मिला। आत्महंता आस्था साथ ही महादेवी की रचनाओं पर उनके आलोचनात्मकता को साहित्य जगत पूरे सम्मान के साथ याद रखेगा। उनके संस्मरण लौट आओ धार सहित उनके साठोत्तरी कहानीकारों में प्रमुख स्तंभ के रूप में स्थापित हुई ।
अब कौन बुलाएगा अम्मा बाबू की तरह
दूधनाथ सिंह के बेहद करीबी रहे वरिष्ठ साहित्य राजेन्द्र कुमार ने पत्रिका से बात की और कहा की मैंने आज अपना सबसे अभिन्न साथी खो दिया है। अब बिलकुल अकेला हो गया हूं। दूधनाथ जो बिना किसी लाग.लपेट के मंचो से साहित्य की दृष्टि से अपना विचार रखने वाले बेबाक इंसान थे। आज उनके साथ एक युग का अंत हो गया। वरिष्ठ लेकर और कवि हरीशचन्द्र पाण्डेय ने नम आखो से कहा की दूधनाथ आधुनिक हिंदी के विलक्षण रचनाकार थे। जिन्होंने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया हिंदी साहित्य की सारी विधाओं में अपनी रचनाओं से साहित्य जगत को लाभान्वित किया।साठोत्तरी की पीढ़ी में उनकी कहानियां शिल्प विन्यास और भाषाओं को उसकी विषय वस्तु को तोड़.फोड़ के जिस तरीके से सबके सामने ले लाये। उसे एक नया रास्ता मिला साहित्य को नयी पहचान मिली।
साहित्य को बचाने और सहजने में बड़ा योगदान
देशभर में दूधनाथ सिंह के साहित्य प्रेमी और बड़े पत्रकारों की एक लंबी खेप है। लेखकों का एक लंबा हुजूम हैए उनमें से उनके प्रिय सानिध्य पात्रों में से रहे धनंजय चोपड़ा जो कहते हैं कि मेरी बनावट और मेरी मजावट में किसी का बड़ा हाथ रहा है तो दूधनाथ सिंह का रहा।वो ऐसे लेखक और साहित्यकार थे, जिन्होंने अगली पीढ़ी को बनाने बचाने और उनको सहेजने के लिए अपनी कलम चलायी। साहित्यकारों की पीढ़ी में दूधनाथ जी स्वर्णिम अक्षरों में इसलिए दर्ज होंगे।साहित्य की राजधानी से हिंदी उन्होंने अपने आगे की पीढ़ी को बताया कि पढ़ना क्या है।लिखना क्या एहै और समाज को दर्शाना क्या है। सारी चीजें उन्होंने सिखाई आज उनके न होने से मन दुखी है। और एक बार यह महसूस हो रहा है। कि अभी किसी से नहीं कहा जा सकता कि आपके बिना नहीं हो पाएगा।आप का आना जरूरी है। अब किसी को इतनी जिद से नही बुलाया जा सकता।प्रोफेसर उनकी बेहद करीबी अनीता गोपेश पत्रिका से बात की और कहा कि ऐसे समकालीन हिंदी के रचयिता और रचनाकार आज चले गए हैं। जिनके बिना खुद को महसूस कर पाना ही कठिन है। मुक्तिबोध पर उन्होंने जो कलम चलाई वह अविस्मरणीय अतुलनीय रचना है। अनीता नम आखो से कहा की अब अम्मा बाबु की तरह कौन बुलाएगा।कौन कहेगा अनितवा कुछ बोल।हम अब किसका इंतज़ार करेंगे।
हर वर्ग ने की शिरकत
युवा साहित्यकार सुमीत द्विवेदी ने कहा अभी बहुत सीखना और सुनना था इन्हें मंच से पास जाकर थोड़ा उअर रुकना था। हम सब को सिखाने और बताने के लिए।साहित्यकार होने के साथ एक सामाजिक क्रांतिकारी थे। जिन्होंने अपनी रचनाओं से क्रांतियों को जन्म दिया।राजनीति के पटल पर जिनके लिखे शब्दों का प्रयोग हुआ। और बड़े.बड़े आंदोलनों में दूधनाथ के लेखन की भी चर्चा हुई।साहित्य के पित्माह को खोने का दुःख सबके चहरे और आँखों में दिख रहा था। सबकी नजरे एक बार उन्हें देखना चाहती थी। उनके लम्बे समय तक सहयोगी रहे साहित्यकार राजेन्द्र कुमार प्रणय कृष्ण एए फातमी धनजय चोपड़ा सुमीत दिवेदी रामजी राय अजामिल व्यास नीलम शंकर साहित्यकार अमर कान्त के बेटे बिंदु पूर्व विधायक अनुग्रह नारायण सिंह विधायक प्रवीण पटेल सहित कई बड़े चेहरे अंतिम दर्शन के लिये मौजूद रहे