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दो जिला बनाना पंचायत चुनाव में भाजपा को पड़ सकता है भारी

locationअलवरPublished: Dec 07, 2019 11:27:23 pm

Submitted by:

Prem Pathak

निकाय चुनाव में जिले में करारी शिकस्त झेलने के बाद भाजपा में दो जिला बनाने कवायद पंचायत चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है। जिन 10 विधानसभा क्षेत्रों में पंचायत चुनाव का असर रहना है, उनमें 9 में कांग्रेस या समर्थित निर्दलीय का कब्जा है तो भाजपा सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र पर काबिज है।

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दो जिला बनाना पंचायत चुनाव में भाजपा को पड़ सकता है भारी,दो जिला बनाना पंचायत चुनाव में भाजपा को पड़ सकता है भारी

अलवर. निकाय चुनाव में जिले में करारी शिकस्त झेलने के बाद भाजपा में दो जिला बनाने कवायद पंचायत चुनाव में भाजपा को भारी पड़ सकती है। जिन 10 विधानसभा क्षेत्रों में पंचायत चुनाव का असर रहना है, उनमें 9 में कांग्रेस या समर्थित निर्दलीय का कब्जा है तो भाजपा सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र पर काबिज है। ऐसे में भाजपा को पंचायत चुनाव में पुराना गणित दोहराना बड़ी चुनौती है। वर्तमान में भाजपा के छह पंचायत समितियों में प्रधान हैं और उप जिला प्रमुख हैं।
प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव की घोषणा जल्द होने के आसार हैं। ऐसे में प्रमुख राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं। कांग्रेस अलवर जिले के तीनों निकाय पर कब्जा कर उत्साहित है, वहीं निकाय चुनाव में शिकस्त मिलने से भाजपा खुद को अभी पंचायत चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार नहीं कर पाई है।
भाजपा में दो जिले बनने से बढ़ सकती है परेशानी

भाजपा ने संगठन की दृष्टि से अलवर जिले को दो हिस्से दक्षिण व उत्तर में बांटा है। पंचायत चुनाव से ऐन पहले भाजपा की दो जिले बनाने की कवायद ने पार्टी नेताओं की चिंता बढ़ा दी है। पार्टी के चुनाव रणनीतिकारों का मानना है कि दो जिलों की कवायद का पार्टी की चुनावी रणनीति पर असर पड़ सकता है। वहीं संगठन पर काबिज होने के लिए पार्टी में गुटबाजी को भी बढ़ावा मिलने की आशंका है।
इसलिए महत्वपूर्ण है पंचायत चुनाव

पंचायत चुनाव का प्रमुख दलों के लिए बड़ा महत्व है। इसका कारण है कि अलवर जिले की राजनीति पंचायतों में बसती है। पंचायत चुनाव में पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य, जिला परिषद सदस्य, प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख व उप जिला प्रमुख के चुनाव होने हैं। इनमें पंच, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य व जिला परिषद सदस्य के चुनाव में पंचायत स्तर के मतदाताओं की सीधी भागीदारी रहती है। वहीं प्रधान, उप प्रधान, जिला प्रमुख व उप जिला प्रमुख चुनाव में भी इन्हीं मतदाताओं की ओर से चुने गए सदस्यों की भूमिका रहने से पूरे पंचायत चुनाव की धुरी पंचायत ही मानी जाती है। ऐसे में हर पार्टी का प्रयास पंचायत चुनाव में अपनी पकड़ मजबूत करने का रहता है।
वर्तमान में जिले में कांग्रेस का पलड़ा भारी

जिले की वर्तमान राजनीति में कांग्रेस का पलड़ा भारी है। जिले के ग्रामीण परिवेश के 10 विधानसभा क्षेत्रों में 7 में कांग्रेस विधायक हैं। वहीं दो विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस समर्थित निर्दलीय विधायक हैं। राज्य में सत्ता में होने और जिले में 9 विधायक होने से पंचायत चुनाव की राह कांग्रेस के लिए आसान है। वहीं भाजपा केवल मुण्डावर विधानसभा क्षेत्र में काबिज है, इस कारण पूरे जिले में भाजपा को पंचायत चुनाव में अपना दबदबा कायम करना बड़ी चुनौती है।
भाजपा में 11 विधानसभा क्षेत्रों का ही बंटवारा

संगठन की दृष्टि से भाजपा में दो जिले बनाने से अलवर जिले के 11 विधानसभा क्षेत्रों का ही बंटवारा कर दिया। इसमें अलवर दक्षिण जिले में अलवर शहर, अलवर ग्रामीण, राजगढ़-लक्ष्मणगढ़, कठूमर, रामगढ़ व थानागाजी विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। वहीं उत्तर जिले में बहरोड़, बानसूर, मुण्डावर, तिजारा व किशनगढ़बास विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। यानि अलवर जिले में पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा में दो अलग-अलग स्थानों पर रणनीति होगी। इसका असर पंचायत चुनाव पर पड़ सकता है।
पंचायत चुनाव को लेकर पार्टी सक्रिय

पंचायत चुनाव को लेकर भाजपा पूरी मुस्तैद है। भाजपा के जयपुर संभाग के प्रमुख कार्यकर्ताओं की कार्यशाला 14 दिसम्बर को खाटूश्यामजी में होगी। इसमें पंचायत चुनाव की रणनीति पर चर्चा होगी।
संजय नरूका

जिलाध्यक्ष, भाजपा अलवर

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