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जिला प्रमुख चुनाव से भी नहीं लिया भाजपा ने सबक, गंवाई सभापति की कुर्सी

locationअलवरPublished: Nov 27, 2019 11:36:58 pm

Submitted by:

Prem Pathak

बहुमत का दावा करने के बाद भी नगर परिषद अलवर में सभापति की कुर्सी गंवाने की यह पहली घटना नहीं है, वर्ष 2015 में जिला प्रमुख चुनाव में भी भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी क्रॉस वोटिंग के चलते पार्टी प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा।

जिला प्रमुख चुनाव से भी नहीं लिया भाजपा ने सबक, गंवाई सभापति की कुर्सी

जिला प्रमुख चुनाव से भी नहीं लिया भाजपा ने सबक, गंवाई सभापति की कुर्सी

अलवर. बहुमत का दावा करने के बाद भी नगर परिषद अलवर में सभापति की कुर्सी गंवाने की यह पहली घटना नहीं है, वर्ष 2015 में जिला प्रमुख चुनाव में भी भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत होने के बाद भी क्रॉस वोटिंग के चलते पार्टी प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि पूर्व में भी पार्टी नेताओं की ओर से जिला प्रमुख व अन्य चुनावों में क्रॉस वोटिंग की शिकायतें की जाती रही हैं।
अलवर जिले में भाजपा कई बार चुनाव में बहुमत या इसके नजदीक जाकर भी जीत के दरवाजे से वापस लौट चुकी है। वर्ष 2015 पंचायत चुनाव के दौरान अलवर जिला परिषद के 49 वार्डों में से भाजपा को 29 जिला पार्षद की जीत से स्पष्ट बहुमत मिला था। जिला प्रमुख चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को जीत के लिए 25 का बहुमत जरूरी था। इस लिहाज से पार्टी के पास 4 जिला पार्षद ज्यादा थे। वहीं कांग्रेस के 19 जिला पार्षद जीते थे। एक निर्दलीय जिला पार्षद भी जीतकर आए। मतदान के दौरान आंकड़ों का खेल पलट गया और भाजपा प्रत्याशी को केवल 24 वोट ही मिल पाए। जबकि जिला प्रमुख के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 25 था। इस चुनाव में कांग्रेस को 25 वोट मिले और भाजपा से कम जिला पार्षद जीतने के बाद भी कांग्रेस भाजपा से एक ज्यादा वोट ले जाने में सफल रही।
सभापति चुनाव में फिर दोहराई कहानी

नगर परिषद अलवर के सभापति के बुधवार को हुए चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ। भाजपा की ओर से सभापति चुनाव के लिए 34 पार्षदों के समर्थन का दावा किया जा रहा था। सभापति के लिए बहुमत का जादुई आंकड़ा 33 था। भाजपा के दावे के अनुसार अलवर नगर परिषद सभापति चुनाव में भाजपा की जीत तय थी। मतदान के दौरान भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में केवल 28 वोट ही डले। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में 37 वोट डल गए। अलवर नगर परिषद चुनाव में भाजपा के 27, कांग्रेस के 19 व निर्दलीय 19 पार्षद जीते थे। यानि सभापति के चुनाव में भाजपा को फिर से क्रॉस वोटिंग झेलनी पड़ी और सभापति की कुर्सी भी भाजपा के हाथ से फिसल गई।
अंदरूनी खींचतान का नतीजा है क्रॉस वोटिंग

भाजपा में पांच साल से कम समय में दो प्रमुख चुनावों में भाजपा की हार का कारण क्रॉस वोटिंग रहा। यह क्रॉस वोटिंग भी पार्टी में लंबे समय से व्याप्त अंदरूनी खींचतान का नतीजा है। कारण है कि बार-बार क्रॉस वोटिंग व अंदरूनी खींचतान के बावजूद पार्टी स्तर पर दोषी लोगों के खिलाफ ठोस कार्रवाई का अभाव रहा। इसी का नतीजा रहा कि पार्टी के नेताओं के बीच की अंदरूनी खींचतान अब प्रमुख चुनावों में क्रॉस वोटिंग की हद तक पहुंच गई है।
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