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तब शहर की सडक़ों पर तिनका तक नहीं दिखता था

locationअलवरPublished: Nov 12, 2019 11:05:52 pm

Submitted by:

Prem Pathak

जिले में नगर पालिका का इतिहास करीब 100 साल पुराना है, लेकिन उस दौर में अलवर में सफाई व सार्वजनिक रोशनी की व्यवस्था बेहतर थी।

तब शहर की सडक़ों पर तिनका तक नहीं दिखता था

तब शहर की सडक़ों पर तिनका तक नहीं दिखता था

अलवर. जिले में नगर पालिका का इतिहास करीब 100 साल पुराना है, लेकिन उस दौर में अलवर में सफाई व सार्वजनिक रोशनी की व्यवस्था बेहतर थी। परकोटे मे बसे अलवर की सफाई व्यवस्था का जिम्मा एक मुख्य सफाई निरीक्षक (सीएसआई) एवं पांच वृत्त निरीक्षकों पर था तो शहर की सार्वजनिक रोशनी की व्यवस्था भी नगर पालिका बखूबी संभालती थी। जबकि वर्तमान में अलवर में सफाई व्यवस्था पर एक साल में 10 करोड़ से ज्यादा तथा रोड लाइट पर दो करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च होने के बाद भी हर रोज सफाई व रोडलाइट की खराबी का शोर सुनाई देती है।
अलवर के पूर्व शासक जयङ्क्षसह के शासनकाल 1920 में अलवर में म्यूनिसिपलिटी एक्ट लागू हो गया था। तभी से अलवर में नगर निकाय सफाई, सार्वजनिक रोशनी एवं अन्य मूलभूत सुविधाओं का जिम्मा संभालती रही है। अंतर है तो इतना कि तब कम कर्मचारियों व कम बजट में शहर स्वच्छ व सुन्दर दिखाई पड़ता था और अलवर शहर की सफाई व्यवस्था पर हर साल 10 करोड़ व रोडलाइट्स पर 2 करोड़ से ज्यादा राशि खर्च होने के बाद भी रात में वीआईपी रोड को छोडकऱ समूचा शहर अंधेरा तथा कचरे के ढेर व कचरे से अटी नालियां ग्रीन अलवर क्लीन अलवर की छवि को धूमिल करती दिखाई पड़ती है। यह स्थिति तो तब है पूर्व स्टेट समय में सफाई व रोशनी के संसाधन भी कम थे।
नगर परिषद में अब तक कायम है सीएसआई का पद

पूर्व स्टेट समय से अब तक अलवर की सफाई का जिम्मा मुख्य सफाई निरीक्षक (सीएसआई) पर है। उस दौरान भी सीएसआई के अधीन पांच सफाई निरीक्षक वृत्त की सफाई व्यवस्था की मॉनिटरिंग करते थे। हालांकि समय के साथ अलवर शहर का विस्तार हुआ और आबादी में वृद्धि हुई, नगर पालिका दर्जा बढकऱ नगर परिषद हो गया, लेकिन दायित्व निर्वहन में अलवर नगर परिषद की रैंकिंग पूर्व स्टेट समय की तुलना में गिरती रही।
पूर्व स्टेट समय में यह थी सफाई व रोशनी की व्यवस्था

पूर्व अलवर रियासत से जुड़े नरेन्द्र सिंह राठौड़ बताते हैं कि पूर्व शासक जयसिंह के शासनकाल में अलवर में सफाई व रोशनी की व्यवस्था पुख्ता थी। उस दौरान अलवर शहर परकोटे में बसता था। परकोटे के अंदर जगन्नाथ मंदिर से त्रिपोलिया, बजाजा बजारा, सर्राफा बाजार, मालाखेड़ा बाजार, मुंशी बाजार आदि क्षेत्रों में हर दिन नालियों की भिश्ती की ओर से मसक के पानी से धुलाई होती थी। उस समय सीवरेज व पक्के शौचालय की व्यवस्था भी नहीं थी, लेकिन सफाईकर्मी रोजाना सफाई करते थे। परकोटे के अंदर बसे मोहल्लों व गलियों की प्रतिदिन सफाई होती थी। मोहल्लों व बाजारों में एकत्र कचरे को उठाने के लिए पड्डा गाड़ी की व्यवस्था थी। पड्डा गाड़ी से कचरा उठाकर जेल चौराहे के पास बने ट्रिचिंग मैदान में पहुंचाया जाता था। वहीं सार्वजनिक रोशनी व्यवस्था के लिए शहर में लकड़ी के लैम्प पोस्ट थे। शाम के समय लकड़ी के बने फ्रेम में लोहे की लालटेन जलाकर रखी जाती थी। नगर पालिका के कर्मचारी प्रतिदिन शाम को कैरोसिन डालकर लालटेन जलाते और रात भर जलने के बाद सुबह इन लालटेन को एकत्र कर नगर पालिका ले जाते थे। उस समय शहर के परकोटे में प्रमुख स्थानों पर लैम्प पोस्ट स्थित थे।
नगर पालिका का चेयरमैन पूर्व शासक मनोनीत करते थे

पूर्व शासक जयसिंह उस समय नगर पालिका का चेयरमैन मनोनीत करते थे तथा विभिन्न वर्गों के सदस्यों का मनोनयन किया जाता था। नगर पालिका का हर वर्ष का बजट तैयार होता था, जिसे पूर्व स्टेट के वित्त मंत्री बनाते थे। उस समय नगर पालिका की खासियत यह थी कि ज्यादातर निर्णय सर्वसम्मति से किए जाते थे। पूर्व अलवर रियासत में उस समय अलवर व राजगढ़ नगर पालिका तथा गांवों में 37 अन्य छोटी पालिकाएं होती थी।
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