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अलवर शहर के 15 वार्ड चर्चा में, कुर्सी के किस्से

locationअलवरPublished: Nov 14, 2019 12:27:40 am

Submitted by:

Prem Pathak

शहर की सरकार के चुनाव में 65 में से करीब 15 वार्ड अधिक चर्चा में हैं। जहां पार्षद के चुनाव के आगे मुखिया (चेयरमैन) बनने की कुर्सी के किस्से हैं।

अलवर शहर के 15 वार्ड चर्चा में, कुर्सी के किस्से

अलवर शहर के 15 वार्ड चर्चा में, कुर्सी के किस्से

अलवर.

शहर की सरकार के चुनाव में 65 में से करीब 15 वार्ड अधिक चर्चा में हैं। जहां पार्षद के चुनाव के आगे मुखिया (चेयरमैन) बनने की कुर्सी के किस्से हैं। वार्ड चुनाव के प्रचार में भी आगे की दावेदारी को जनता के सामने चुपके से रखा जाता है। ताकि जनता को लगे कि उनका चुना पार्षद चेयरमैन भी बन सकता है। नगर परिषद अलवर के कुछ ऐसे वार्डों की तस्वीर आपके सामने हैं। यह जरूरी नहीं कि इन्हीं वार्डों के जीते पार्षद चेयरमैन बनेंगे। लेकिन, जनता के बीच में चुनाव से पहले यही चेहरे चेयरमैन के रूप में घूम-घूम कर आने लगे हैं। इस बार सामान्य सीट होने के कारण किसी भी वार्ड का पार्षद चेयरमैन बन सकता है लेकिन, प्रमुख पार्टियों तो हर बार की तरह तो अपने सोशल इंजीनियरिंग को सुलझाने में ही विश्वास रखेंगी। जिसके कारण आमजन को लगता है कि शहर के गिने-चुने वार्डों में कुछ खास चेहरे ऐसे हैं जो आगे की कुर्सी तक पहुंच सकते हैं।
भाजपा के ये 10 वार्ड चर्चा में

भाजपा ने अलवर नगर परिषद क्षेत्र में सभी 65 वार्डों में प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं लेकिन, 10 वार्ड ऐसे हैं जहां इनके सभापति के चेहरे के रूप में देखे जा रहे हैं। जिनमें प्रमुख रूप से वार्ड 6 से दिनेश गुप्ता, वार्ड 9 से अशोक कुमार गुप्ता, वार्ड 3 से सुनील मेठी, वार्ड 15 से आनन्द बेनीवाल, वार्ड 19 से घनश्याम गुर्जर, वार्ड 31 से धीरज जैन, वार्ड 48 से मीना सैनी, वार्ड 58 से हर्षपाल कौर, वार्ड 60 से अशोक पाठक, वार्ड 61 से सतीश यादव हैं।
कांग्रेस के ये 7 वार्ड

वार्ड 19 से गौरी शंकर, वार्ड 30 से नरेन्द्र मीणा, वार्ड 32 से जीतकौर, वार्ड 35 से अंशुल कुमार सैनी, वार्ड 36 से रेणू अग्रवाल, वार्ड 58 से देवेन्द्र कौर, वार्ड 59 से अजय मेठी का नाम कुछ चर्चा में है।
ज्यादातर सीट पर मुकाबला भी

जिन वार्डों में चेयरमैन के दावेदार हैं उनमें से कुछ वार्डों में कड़ा मुकाबला है तो कुछ की सीट त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय मुकाबले में है। अपनी सीट बचाने के लिए आखिरी तक निर्दलीय प्रत्याशियों को भी अपने पक्ष में करने की जुगत हो रही है।
हर बार नयों को अवसर

नगर परिषद के चुनावों का इतिहास तो यही कहता है कि चेयरमैन की कुर्सी हर बार नए पार्षद के खाते में जाती रही है। एक बार चेयरमैन बनने के बाद दुबारा मौका भी नहीं मिलता है। जब भी सामान्य सीट रही तो ज्यादातर सामान्य वर्ग का ही चेयरमैन बना है। वैसे कांग्रेस-भाजपा दोनों ही विधानसभा चुनावों के लिहाज से सोशल इंजीनियरिंग को अधिक महत्व देती है। जिन समाजों के शहर में अधिक मतदाता हैं उनको टिकट में प्राथमिकता दी जाती रही है।
टिकट से पहले राजनीति आगे भी होगी


पार्षद के चुनाव तक तो प्रत्याशी एक-दूसरे के खिलाफ वोट मांगते हैं लेकिन, आगे की कुर्सी के लिए पार्टियों के भीतर ही बड़ी राजनीति शुरू हो जाएगी। यह बहुत महत्वपूर्ण होगा कि कितने दावेदार चुनाव जीतकर आते हैं। कुछ ऐसे भी होंगे जिनके लिए बड़े नेता पैरवी करेंगे। यदि किसी भी पार्टी को बहुमत की सीट नहीं मिलती हैं तो प्रत्याशी चयन की प्राथमिकता भी बदल जााती है। जिसके कारण चुनाव परिणाम के बाद चेयरमैन के प्रत्याशी का चयन का आधार बदल सकता है।
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