जैसे-जैसे अविश्वास प्रस्ताव की तारीख 17 जनवरी नजदीक आ रही है वैसे-वैसे कांग्रेस की तुलना में भाजपा के नेता अधिक सक्रिय दिखने लगे हैं। तभी तो भाजपा के पार्षदों को बाड़ेबंदी के लिए भाजपा शासित प्रदेश गुजरात ले जाया गया है। एक बार गए पार्षदों को वापस भी नहीं आने दिया गया। अब पार्टी के विधायक सहित अन्य नेताओं को भी पार्टी के पार्षदों को एकजुट रखने की जिम्मेदारी दी है।
उधर, कांग्रेस के पार्षद खुद ही एक लय में नहीं दिख रहे हैं। हालांकि कहने में तो वह अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में हैं लेकिन अविश्वास प्रस्ताव को पास कराने के लिए उतनी ताकत नहीं लगा रहे हैं। जितने दूसरे पार्षद कोशिश में लगे हैं।
आगे लोकसभा चुनाव पर असर आगे लोकसभा चुनाव होने है। जिसके लिए दोनों पार्टियों ने तैयारी शुरू कर दी है। कांग्रेस ने जयपुर में किसानों की सभा कर चुनावों का आगाज कर दिया है। इधर भाजपा ने लोकसभा चुनाव को लेकर नेताओं को जिम्मेदारी थमाना शुरू कर दिया ह। माना जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव पास हो गया तो भाजपा को अलवर शहर में भी झटका लगेगा। पिछले विधानसभा चुनावों में तो अलवर शहर सीट तीसरी बार भाजपा के कब्जे में रही। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पास हुआ तो भाजपा को सबसे बड़ा झटका लगेगा। वैसे भी भाजपा के पार्षदों की संख्या कांग्रेस के पार्षदों की संख्या से करीब दोगुना है। उधर, अविश्वास प्रस्ताव खारित होता है तो कांग्रेस को फिर झटका लगेगा। पहले कांग्रेस के पार्षद अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के समय एकजुट नहीं दिखे। अब मजबूरी में सबको एकजुट होना पड़ रहा है।