होली के अगले दिन से आरम्भ होने वाले गणगौर पर्व की तैयारियों में विशेष कर महिलाओं व बच्चियों का खासा उत्साह व योगदान रहता है। लगभग सौ घरों की बस्ती में प्रत्येक वर्ष अलग अलग घरों में गणगौर का विवाह सम्पन्न कराया जाता है । गणगौर की मूर्तियां बनाने में होलिका दहन की राख में मिट्टी मिला कर बनाई जाती है। जिसकी दोनों समय पूजा की जाती है ।
वधू पक्ष के घर से निकलती है बारात पुष्करणा समाज की महिलाओं की ओर से चौथ, अष्टमी ,एकादशी व गणगौर वाले दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है। इन दिनों समाज की महिलाएं एकत्र होकर भजन कीर्तन व सामाजिक परम्परा के अनुसार मनोरंजन करती है। गणगौर वाले दिन गणगौर स्वरूप मिट्टी की बनी मूर्ति को नगर भ्रमण कराया जाता है । वधू पक्ष के घर से शोभायात्रा निकाल कर पूरे खैरथल गांव में होते हुए अम्बेडकर चौराहा, सिनेमा रोड, पुरानी अनाज मंडी, मेन मार्केट, रेलवे फाटक, आनन्द नगर कालोनी से होती हुई वापस घर पहुचती है।
जगह-जगह पर होता है बारात का स्वागत रास्ते में विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से पुष्प वर्षा व ठंडा पेय पिला कर स्वागत किया जाता है ।आकर्षक पोशाक में सजी प्रतिमा किसी जीवंत दुल्हन के समान लगती है । इस वर्ष समाज के बंशीधर व्यास के पुत्र गौरव व्यास के यहां गणगौर माता का विवाह संपन्न होगा।
जिनके नन्दलाल आचार्य के यहां से ईशर जी को लेकर बारात आएगी। गणगौर वाले दिन सोमवार को विधिवत रूप से फेरे होने के बाद पर्व सम्पन्न होगा। इसके बाद समाज के लिए सामूहिक भोज भी होगा। गणगौर के अगले दिन हरसौली रोड़ स्थित स्वामी ज्ञानानन्द के आश्रम में पीपल के पेड़ पर मूर्तियों को पधरा दिया जाता है।