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राजस्थान की यह गणगौर है सबसे अनूठी, बारात के साथ कराए जाते हैं ईसर-गणगौर के फेरे, फिर इस तरह की जाती है विदाई

locationअलवरPublished: Apr 08, 2019 05:05:07 pm

Submitted by:

Hiren Joshi

राजस्थान में गणगौर की अनेक परंपराएं हैं, लेकिन अलवर जिले के खैरथल कस्बे की गणगौर अपने आप में बेहद खास है।

Gangaur Celebration Of Pushkarna Community In Khairthal Rajasthan

राजस्थान की यह गणगौर है सबसे अनूठी, बारात के साथ कराए जाते हैं ईसर-गणगौर के फेरे, फिर इस तरह की जाती है विदाई

खैरथल. गणगौर राजस्थानी संस्कृति का हिस्सा है। महिलाओं के लिए यह त्योहार विशेष रूप से प्रिय होता है। हर गांव व कस्बे में गणगौर की अपनी परंपराएं हैं। लेकिन खैरथल कस्बे में मनने वाली गणगौर सबसे अलग होती है, क्योंकि यहां पर हर साल गणगौर का विवाह होता है और कस्बे की पुरानी आबादी में रहने वाला पुष्करणा समाज सामूहिक रूप से भाग लेता है।
होली के अगले दिन से आरम्भ होने वाले गणगौर पर्व की तैयारियों में विशेष कर महिलाओं व बच्चियों का खासा उत्साह व योगदान रहता है। लगभग सौ घरों की बस्ती में प्रत्येक वर्ष अलग अलग घरों में गणगौर का विवाह सम्पन्न कराया जाता है । गणगौर की मूर्तियां बनाने में होलिका दहन की राख में मिट्टी मिला कर बनाई जाती है। जिसकी दोनों समय पूजा की जाती है ।
वधू पक्ष के घर से निकलती है बारात

पुष्करणा समाज की महिलाओं की ओर से चौथ, अष्टमी ,एकादशी व गणगौर वाले दिन पूरे दिन व्रत रखा जाता है। इन दिनों समाज की महिलाएं एकत्र होकर भजन कीर्तन व सामाजिक परम्परा के अनुसार मनोरंजन करती है। गणगौर वाले दिन गणगौर स्वरूप मिट्टी की बनी मूर्ति को नगर भ्रमण कराया जाता है । वधू पक्ष के घर से शोभायात्रा निकाल कर पूरे खैरथल गांव में होते हुए अम्बेडकर चौराहा, सिनेमा रोड, पुरानी अनाज मंडी, मेन मार्केट, रेलवे फाटक, आनन्द नगर कालोनी से होती हुई वापस घर पहुचती है।
जगह-जगह पर होता है बारात का स्वागत

रास्ते में विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से पुष्प वर्षा व ठंडा पेय पिला कर स्वागत किया जाता है ।आकर्षक पोशाक में सजी प्रतिमा किसी जीवंत दुल्हन के समान लगती है । इस वर्ष समाज के बंशीधर व्यास के पुत्र गौरव व्यास के यहां गणगौर माता का विवाह संपन्न होगा।
जिनके नन्दलाल आचार्य के यहां से ईशर जी को लेकर बारात आएगी। गणगौर वाले दिन सोमवार को विधिवत रूप से फेरे होने के बाद पर्व सम्पन्न होगा। इसके बाद समाज के लिए सामूहिक भोज भी होगा। गणगौर के अगले दिन हरसौली रोड़ स्थित स्वामी ज्ञानानन्द के आश्रम में पीपल के पेड़ पर मूर्तियों को पधरा दिया जाता है।
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