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जयसमंद बांध आठ दशक से अधिक समय तक करता रहा खेतों की सिंचाई, अब खुद ही प्यासा

रियासत कालीन जल स्रोत को संरक्षण की दरकार -रूपारेल नदी के बहाव क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना जरूरी, साझा प्रयासों से हो सकता है पुनर्जीवित

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मालाखेड़ा. क्षेत्र में आठ दशक तक लगातार खेतों की सिंचाई कर अन्नदाताओं के अनाज के भंडार भरने वाला प्रमुख जल स्रोत जयसमंद बांध इन दिनों खुद ही प्यासा है। इतना ही नहीं बांध के पेटे को लोगों ने खेत बना लिया और जुताई तक कर रखी है। ऐसे हालातों में रियासत कालीन इस जल स्रोत को संरक्षण की दरकार है। इसके लिए रूपारेल नदी के बहाव क्षेत्र से अतिक्रमण हटाना जरूरी है। जनप्रतिनिधियों, आमजन व प्रशासन के साझा प्रयासों से यह बांध पुनर्जीवित हो सकता है।पूर्व महाराजा राजऋषि सवाई जयसिंह ने अलवर जिले में सैकड़ों कुएं ,बावड़ी, तालाब और बांधों का निर्माण कराया था, जो देखरेख के अभाव में आज अस्तित्व खोने के कगार पर हैं। जयसमंद बांध, सिलीबेरी बांध, विजय सागर बांध अलवर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्र के प्रमुख बांध हैं। मानसरोवर बांध रत्नाकर, भाखेड़ा बांध को भी संरक्षण की जरूरत है। रूपारेल नदी का पानी लाने के लिए राजऋषि सवाई जयसिंह ने 1910 में जयसमंद बांध का निर्माण कराया। इसके सात साल बाद सन 1917 में भारी बारिश होने पर जयसमंद बांध की पाल टूट गई थी। इसके बाद 1924 में फिर से इस जयसमंद बांध का पुननिर्माण किया गया, जिसके परिणाम स्वरूप 50 से अधिक गांवों में जयसमंद के पानी से खेती की सिंचाई होने लगी। लगातार आठ दशक खेतों की सिंचाई से किसान समृद्धिशाली हो गए। लम्बे वर्षों तक रबी फसल की सिंचाई होती रही। धीरे-धीरे समय बदला। रियासतकालीन समय चला गया और लोकतंत्र आया। जहां सिंचाई विभाग की ओर से 1996 तथा 2006 तक जयसमंद बांध से जुड़े गांवों में फसल की सिंचाई के लिए पानी दिया जाता रहा है। यह पानी रूपारेल नदी से जयसमंद बांध में निर्बाध रूप से पहुंचता था।

अब जगह-जगह अतिक्रमण

क्षेत्र के लोगों का आरोप है कि संरक्षण के अभाव में रूपारेल नदी से जयसमंद बांध के बीच बहने वाली नहर में जगह-जगह अतिक्रमण कर लोगों ने जयसमंद बांध का गला घोट दिया। अब यह प्यासा रह जाता है। ज्यादा पानी रूपारेल के दूसरे बहाव क्षेत्र में चला जा रहा है। रूपारेल नदी के पश्चिम क्षेत्र में खातेदारी की भूमि वालों ने अतिक्रमण कर नदी को सिकुड़़ा दिया। इससे जयसमंद में कम पानी पहुंचता है। मानसून से पहले रूपारेल नदी के पश्चिम क्षेत्र का अतिक्रमण, सिलीसेड के बहाव से अतिक्रमण हटाया जाएं तो जयसमंद बांध फिर से जीवित हो सकता है। इसके लिए सिंचाई विभाग, प्रशासन, पंचायतीराज विभाग को सामूहिक रूप से साझा प्रयास करना जरूरी है। रूपारेल में पानी भी आया, लेकिन जयसमंद बांध अभी भी प्यास से दम तोड़ते हुए सूखा पड़ा है। कुएं बांध, बावड़ी, तालाबों का संरक्षण नहीं होने से अब पानी का संकट तेजी से बढ़ रहा है।जिम्मेदार दे ध्यानलोगों की मांग है कि केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव, राज्य वन मंत्री संजय शर्मा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली अलवर जिले से सांसद, विधायक हैं। इनके अलावा जिला प्रमुख, प्रधान, सरपंच सहित अन्य जनप्रतिनिधि, प्रबुद्धजन को आगे जाकर रूपारेल नदी, जयसमंद बांध, विजय सागर बांध की नहर का अतिक्रमण हटाने का प्रयास करना चाहिए, जिससे इन पुराने जल स्रोतों में बारिश का जल संग्रहण हो सके। इस संबंध में संबंधितों से उनका पक्ष जानने के लिए संपर्क का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो पाई।