
पांडूपोल मेला : इस तारीख को है पांडूपोल मेला, हनुमान ने भीम को दिए थे दर्शन, जानिए पूरी कहानी
टहला . जन जन की आस्था एवं श्रद्धा का प्रतीक सरिस्का अभयारण्य स्थित ऐतिहासिक पांडूपोल हनुमानजी महाराज का भर लक्खी मेला 11 सितंबर भरेगा। मेले को देखते हुए तैयारी पूरी कर ली गई है।
श्रद्वालुओं को मेला परिसर से पार्र्किंग स्थल उमरी तिराया तक जगह जगह जलपान, रोशनी, पार्किंग स्थल एवं रास्तो की मरम्मत आदि का कार्य पूर्ण हो चुका है । यहां दर्शन लाभ के साथ साथ जोड़ो की जात, नवजात बच्चों के जडूलो सहित धार्मिक अनुष्ठान कार्य करते हैं। मेले के दौरान श्रद्वालु कई कई किलोमीटर पैदल या बसो से मेला परिसर में पहुंच कर दर्शन लाभ करते हैं। प्रशासन की ओर से पाडंूपोल हनुमान मेले के दौरान 10 सितंबर से 12 सितंबर तक रोडवेज बसो का संचालन किया गया है ।
भीम के घमंड को दूर किया
किंवदति है कि जब पांडव कौरवों से जुआं में सब कुछ हार गए थे तब कौरवों ने पांडवों को 13 वर्ष के लिए हस्तीनापुर से निष्कासित कर 12 वर्ष ज्ञात एवं 1 वर्ष अज्ञातवास व्यतीत करने को भेजा तो पांडवों ने इसके निर्वहन के लिए सरिस्का के इसी वन क्षेत्र को चुना । इसके बाद पांडव सरिस्का की पर्वतमालाओ में ही रहकर अपना समय व्यतीत करने
लगे थे ।
महाभारत काल की एक घटना के अनुसार इसी अवधि में द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी । एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रोपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची। स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को वह पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढऩे लगा । आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था। वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्व था ।
यहां सकरी घाटी होने के कारण भीमसेन के आगे निकलने के लिए कोई ओर मार्ग नही था । भीमसेन ने मार्ग में लेटे हुए वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटाकर एक ओर कर लो तो वानर ने कहां कि मै वृद्व अवस्था में हूं । आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें। भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीमसेन से टस से मस भी ना हो सकी । भीमसेन की बार बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नही हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नही है । भीमसेन ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की । इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया । भीमसेन ने सभी पांडव को वहां बुला कर वृद्ध वानर की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना
Published on:
08 Sept 2018 01:20 pm
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