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राजस्थान विधानसभा चुनाव: उम्र का आखिरी पड़ाव, टिकट का मोह नहीं छूटा, बागी हुए तो मिली हार

Rajasthan Assembly Election 2023 : प्रदेश की राजनीति कई विधानसभा सीटों पर एक ही परिवारों तक सीमित रही। राजनीतिक दलों ने इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए प्रत्याशी बदले तो उम्र दराज नेताओं ने अपनी ताकत दिखाने के लिए बागी बनने का रास्ता चुना।

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अलवर

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Nupur Sharma

Nov 03, 2023

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Rajasthan Assembly Election 2023 : प्रदेश की राजनीति कई विधानसभा सीटों पर एक ही परिवारों तक सीमित रही। राजनीतिक दलों ने इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए प्रत्याशी बदले तो उम्र दराज नेताओं ने अपनी ताकत दिखाने के लिए बागी बनने का रास्ता चुना। परिणाम आया तो जनता ने उन्हें सबक सिखाया। इस बार भी कई नेता प्रदेश के पटल पर बागी की मुहर लगाने के लिए आतुर हैं लेकिन पिछले रेकॉर्ड का ये अध्ययन करेंगे तो पार्टियों को इससे इस बार भी फायदा हो सकता है।

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घनश्याम तिवारी, रिणवा, धन सिंह को करना पड़ा था हार का सामना : वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में करीब 75 साल के घनश्याम तिवारी को भाजपा ने सांगानेर सीट से टिकट नहीं दिया तो वह बागी हो गए। चुनाव लड़े तो हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह रतनगढ़ सीट से राजकुमार रिणवा का भाजपा ने टिकट काटा तो वह भी चुनावी मैदान में निर्दलीय उतर गए। आखिर में हार का सामना करना पड़ा। बांसवाड़ा से धन सिंह रावत का भी टिकट भाजपा ने काटा तो वह भी चुनाव नहीं जीत पाए। इसी तरह पाली सीट से सुरेंद्र गोयल भाजपा के बागी बनकर चुनावी मैदान में आए। बगावत की और हार गया।

हेेम सिंह, देवीसिंह को भी नहीं मिल पाई थी जीत : अलवर की बानसूर सीट से देवीसिंह शेखावत को भाजपा ने टिकट नहीं दिया तो वह निर्दलीय चुनाव लड़े और आखिर में कांग्रेस नेत्री शकुंतला रावत से हार का सामना करना पड़ा। थानागाजी से हेम सिंह भड़ाना का भी टिकट भाजपा ने काटा तो निर्दलीय लड़े और हार का मुंह देखना पड़ा।

करण सिंह, प्रकाश चौधरी, जौहरी, बाबूलाल ने फिर ठोकी ताल : इस बार भी बगावत कांग्रेस के अलावा भाजपा में तेज है। राजगढ़-लक्ष्मणगढ़ सीट से जौहरी लाल मीणा, कठूमर सीट से बाबूलाल बैरवा, बानसूर से रोहिताश शर्मा, किशनगढ़बास से सिमरत कौर ने भी इस बार चुनाव में ताल ठोक दी है। बहरोड़ से पूर्व सांसद करण सिंह यादव भी टिकट वितरण को लेकर खुली तौर पर विरोध में उतर आए हैं। इनके अलावा बड़ी सादड़ी चित्तौड़गढ़ से प्रकाश चौधरी कांग्रेस के बागी बन गए। कई अन्य नाम भी हैं जो अभी सामने नहीं आए हैं लेकिन विरोध उनका जारी है।

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राजनीतिक पंडितों की राय...ज्यादा हो गई उम्र तो छूटना चाहिए मोह : राजनीतिक पंडित कहते हैं कि इन अधिकांश नेताओं की आयु 65 साल से अधिक है। राजनीति का मोह नहीं छूट रहा। जब राजनीतिक दल नए लोगों को मैदान में उतार रही हैं तो इन नेताओं को उन्हें आशीर्वाद देकर आगे बढ़ाना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा। ये परिपाटी ठीक नहीं। अगर पार्टी में कई दशकों से नेता टिके हैं और निष्ठा है तो वह बनी रहनी चाहिए।