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# Topic of the day : इस वजह से युवा पीढ़ी त्यौहारों से होती जा रही है दूर- प्रो. मधुर मोहन रंगा- देखें Video

'टॉपिक ऑफ द डे' कार्यक्रम में सरगुजा विश्वविद्यालय के प्रो. मधुर मोहन रंगा ने युवा पीढ़ी के त्यौहारों व उत्सवों से दूर रहने पर की चर्चा

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Topic of the day with Prof. MM Ranga

Topic of the day with Prof. MM Ranga

अंबिकापुर. भारतीय त्यौहार, उत्सव समाज को ऊर्जा देते हैं, इसी ऊर्जा से युवाओं में संस्कार आते हैं, जिससे भारतीयता सबल और लोक कल्याणकारी होती है। संयमित जीवन को छोड़कर उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाने से युवा उत्सवों से दूर हो रहे हैं। रोजगार से ज्यादा जरूरी संस्कार होता है। यह बातें 'टॉपिक ऑफ दे डे' कार्यक्रम में पत्रिका से चर्चा के दौरान सरगुजा विश्वविद्यालय के प्रो. मधुर मोहन रंगा ने कही।


भारत विकास परिषद तथा अन्य सामाजिक संगठनों में सक्रिय योगदान देने वाले प्रो. मधुर मोहन रंगा ने कहा कि उत्सव और त्यौहार समाज में एकत्व लाते हैं। भारतीय शिक्षा, त्यौहार सर्वांगीण विकास पर बल देते हैं जबकि पश्चिमी सभ्यता रोजगार परक शिक्षा को लक्ष्य बनाती है।

उन्होंने कहा कि पश्चिमीकरण से बचते हुए विश्व बंधुत्व, वसुधैव कुटुम्बकम की शिक्षा देना है। युवाओं को संस्कार, कर्तव्यपूर्ण शिक्षा देने से जीवन में गति आएगी और रोजगार भी पैदा होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षक को वेतनभोगी कर्मचारी तथा विद्यार्थी को उपभोक्ता नहीं बनना है।

भारतीय संस्कृति उपभोक्तावादी नहीं है। भारतीय सभ्यता संस्कृति वैश्विक कल्याण पर आधारित है। वैश्विक कल्याण संस्कार उत्सवों से ही आते हैं। उन्होंने कहा कि संयमित जीवन को छोड़कर उपभोक्तावादी संस्कृति को अपनाने से युवा उत्सवों से दूर हो रहे हैं।


युवाओं में लानी होगी संस्कारों की प्रबलता
वैभवशाली व्यवस्था को देखने पर युवा भ्रमित होता है। वह गाड़ी, बंगला की जिन्दगी सोचने लगता है। संस्कारों की प्रबलता से युवाओं में लाना होगा। उन्होंने कहा कि दीक्षांत का लक्ष्य समाज कल्याण के लिए होता है। विद्यार्थी को अवगत कराया जाता है कि वह शिक्षा से समाज निर्माण के लिए पाता है।


रोजगार से ज्यादा जरूरी है संस्कार
संस्कार से जीवन में एकत्व, समाज को बल मिलता है। समाज के सबल और दायित्वपूर्ण होने की स्थिति में कर्तव्य का निर्वहन होगा। संस्कारों का सम्प्रेषण होने जीविकोपार्जन स्वत: हो जाएगा।


महापुरुषों के आदर्श को आत्मसात करें
संस्कार, दायित्व और कर्तव्य से विचलन होने की स्थिति में महापुरुषों के आदर्शों को आत्मसात करना होगा। कला, संस्कृति, विज्ञान और समाजसेवा से जुड़े लोगों के आदर्शों को पढऩे, आत्मसात करने से कर्तव्य का भाव सबल होता है। कर्तव्य और संस्कार साथ-साथ होते हैं।


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