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International Women day : मीरा ने 357 महिलाओं की बदल दी जिंदगी, मां बनकर 5 बेटियों का किया कन्यादान

शून्य से शुरु हुआ 'मीरा' का सफर पहुंचा शिखर सम्मान तक, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री ने रायपुर में किया सम्मानित

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Meera Shukla

Meera Shukla

अंबिकापुर. घर से विरक्त महिलाओं व बच्चों की बेरंग हो चुकी जिंदगी में रंग भरने के प्रयास में कब 'मीरा' का सफर शून्य से शुरू होकर शिखर तक पहुंच गया, उन्हें पता ही नहीं चला। आज इनके प्रयासों से न केवल 357 महिलाओं व बच्चों की जिंदगी बदल गई, बल्कि वे आज परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी भी बिता रहे हंै।


जाने किस आशा की दृढ़ता है, करती है वह इतना काम , क्यों किस आशा पर? प्रश्न पूछता हूं मैं..., यदि उस श्रमशील नारी की आत्मा से, सब अभावों को सहकर, कष्टों को लात मार, निराशाएं ठुकराकर, किसी ध्रुव लक्ष्य पर खिंचती सी जाती। कब उसने अपनी जिंदगी में बदलाव लाते-लाते लोगों की जिंदगी बदलने का सफर शुरू कर दिया, यह खुद उस महिला को भी पता नहीं चली।

कभी ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के साथ जमीन पर बैठकर भोजन करती तो कभी शोसित महिलाओं के लिए ढाल बनकर खड़ी सरगुजा जैसे आदिवासी अंचल में अपनी जिंदगी खपा देनी वाली एमएसएसव्हीपी की संचालिका मीरा शुक्ला को समाज कल्याण विभाग ने उत्कृष्ट कार्य के लिए शिखर सम्मान से रायपुर में सम्मानित किया। यह पुरस्कार महिला एवं बाल कल्याण विभाग की मंत्री रमशिला साहू द्वारा मंगलवार को प्रदान किया गया।


कोशिशों से महिलाओं की जिंदगी में खुशियां
कुछ महिलाओं की जिंदगी में खुशियां लाने के लिए कब मीरा शुक्ला सख्त रूप अख्तियार कर लेती हैं, इसका एहसास उन्हें बाद में होता है लेकिन इस सख्त रूप की वजह से कई बार कई महिलाओं की जिंदगी में आज खुशियां-ही-खुशियां नजर आती हैं।

परिवार के लोगों ने जिसे घर से बाहर निकाल दिया, उन महिलाओं को एक आश्रय स्वाधार गृह के रूप में प्रदान करने के साथ ही उन्हें बेहतर जिंदगी देने का हमेशा प्रयास करती हैं। 5 महिलाओं का कन्यादान कर आज मां का दर्जा भी हासिल किया। जबकि मीरा शुक्ला ने 357 महिलाओं का पुनर्वास कर उनकी जिंदगी बदल दी और आज ये महिलाएं अपने घर में बेहतर जिंदगी बिता रही हैं।


मां पर उठाया चाकू, काउंसिलिंग ने बदल दी जिंदगी
अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढऩे वाली एक बच्ची को उसके मां व पिता ने जब बाहर किसी से मिलने से रोका तो उसने अपनी मां पर ही चाकू चला दिया था। उसकी मां ने ही उसे एमएसएसव्हीपी के बालिका गृह में भेज दिया। यहां लगातार एक माह तक उसकी काउंसलिंग कर उस बच्ची की पूरी जिंदगी बदल गई।


सेंदरी से रात में आता था फोन, बात कर बदली जिंदगी
एक मुस्लिम बच्ची जिसे विक्षिप्त स्थिति में मीरा शुक्ला के पास लाया गया था। उसे बाद में प्रशासन के निर्देश पर बिलासपुर के सेंदरी अस्पताल भेज दिया गया था। रात मेें उठकर बच्ची मां से बात कराने की बात डाक्टरों से करती थी। डॉक्टरों को जो नम्बर उसके द्वारा दिया जाता था, वह मीरा शुक्ला का था। देर रात २ बजे उन्होंने बच्ची की काउंसिलिंग कर उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। आज वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है।