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यहां के आरटीओ दफ्तर में एजेंटों व बाबुओं में जबरदस्त गठजोड़, डीएल-रजिस्ट्रेशन की ऐंठते हैं मोटी रकम, ऑफिसर अनजान

RTO: बिना एजेंट के सीधे दफ्तर में कार्य कराने जाने वाले लोगों को नियमों में उलझाकर किया जाता है परेशान, झारखंड-बिहार (Jharkhand-Bihar) के लोगों का मोटी रकम ऐंठकर जल्द करा दिया जाता है काम, आरटीओ दफ्तर (RTO Office) में भ्रष्टाचार (Corruption) व कमीशनखोरी का खेल बदस्तूर जारी

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RTO

RTO office Ambikapur

अंबिकापुर. (RTO) विभागीय अफसरों की नाक के नीचे जिला परिवहन कार्यालय (आरटीओ) अंबिकापुर में भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी का खेल बदस्तूर जारी है। एजेंटों व विभागीय कर्मचारियों की साठगांठ से प्रतिदिन कार्यालय परिसर में चल रहे अवैध लेन-देन के संबंध में जिम्मेदार विभागीय अफसर जान-बूझकर अनजान बने हुए हैं।

कार्यालय में खुलेआम एजेंटों का बोलबाला है। अपने आप को आरटीओ एजेंट बताने वाले बिचौलिए वाहनों के रजिस्ट्रेशन, ड्राइविंग लाइसेंस, फिटनेस जैसे कार्यों के लिए आवेदकों से मोटी रकम वसूल रहे है जबकि आरटीओ कार्यालय का सारा कार्य ऑनलाइन होता है।

यहीं नहीं, मोटी रकम मिलने के कारण यहां झारखंड, बिहार, यूपी के लोगों का काम पहले होता है, स्थानीय लोगों से भी अधिक रकम वसूली जाती है, लेकिन यह झारखंड के लोगों से वसूली गई राशि से कुछ कम होती है, इसलिए स्थानीय लोगों के काम को यहां लटका कर रखा जाता है।


अंबिकापुर आरटीओ कार्यालय में ड्राइविंग लाइसेंस बनाने में भारी अनियमितता हो रही है। परिवहन विभाग के अधिकारियों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि सरकार और राजस्व की हानि हो रही है। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के नाम पर एजेंटों के माध्यम से अंधाधुंध अवैध राशि ली जा रही है।

ड्राइविंग लाइसेंस (Driving License) बनवाने पहुंचे कई लोगों ने बताया कि छत्तीसगढ़ के स्थानीय निवासियों को ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने के लिए 2 से 3 माह भटकना पड़ता है और झारखंड से आए लोगों को तत्काल ड्राइविंग लाइसेंस बनाया जा रहा है। वैसे तो स्थानीय निवासी से भी निर्धारित शुल्क से अधिक रकम वसूली जाती है,

जबकि झारखंड के लोगों से लाइसेंस बनाने के एवज में 5 से 6 हजार रुपए तक लिए जाते हैं, लेकिन इस अवैध वसूली से इनकार करते हुए अफसर कहते हैं कि लोगों से निर्धारित शुल्क ही लिया जा रहा है। हकीकत तो यह है कि आरटीओ दफ्तर में झारखंड निवासी कतार में खड़े रहते हैं और बाहर में एजेंटों की फौज बैठी होती है।

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वे किसी तरह से लोगों को अपने चंगुल में फंसा लेते हैं और उन्हें कई तरह के प्रलोभन देते हैं। एजेंट कहते हैं कि 30 दिन के अंदर आपका ड्राइविंग लाइसेंस बना कर दिया जाएगा लेकिन इसके लिए आपको बड़ी रकम देनी पड़ेगी।

फिर झारखंड के लोगों से मोटी रकम वसूल कर उनका काम पहले किया जाता है। कुल मिलाकर यहां बाबू व एजेंट मोटी रकम के एवज में सहूलियत के अनुसार आरटीओ दफ्तर चला रहे हैं।


1300 के लाइसेंस के लिए चुका रहे 6000
नियम के तहत लाइसेंस बनवाने के लिए सबसे पहले लर्निंग लाइसेंस बनवाना होता है, यदि टू व्हीलर के लिए लर्निंग लाइसेंस बनवाना होता है तो किसी भी ऑनलाइन सेंटर से मात्र 200 रुपये के शुल्क से आवेदन किया जा सकता है। लर्निंग लाइसेंस बन जाने के बाद 30 दिन से 6 माह के अंदर परमानेंट लाइसेंस बनाया जाता है, जिसका शुल्क 750 रुपए निर्धारित है।

इसी तरह टू प्लस फोर व्हीलर लर्निंग लाइसेंस के लिए 300 रुपये, लर्निंग लाइसेंस के बाद स्थाई लाइसेंस के लिए एक हजार रुपये। इस तरह कुल 1300 रुपये का शुल्क देना होता है लेकिन झारखंड के लोगों से 6 हजार रुपए लेकर उनका काम पहले किया जाता है।

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आरटीओ दफ्तर में बाबुओं व एजेंटों का बोलबाला
आरटीओ दफ्तर में बाबुओं व एजेंटों का बोलबाला रहता है। अधिकारी का रोल न के बराबर होता है। विभाग में सारा कुछ बाबुओं व एजेंटों के हाथों ही हो रहा है। एजेंट आरटीओ विभाग के बाबुओं के सहारे काम करा रहे हैं।

इसकी जानकारी विभाग के अधिकारी को भी रहती है। इसके बावजूद भी किसी तरह की कोई रोक टोक नहीं है और एजेंट बड़े ही आसानी से काम करवा कर लोगों को दे देते हैं। वहीं लोग अगर चाहें कि सीधे विभाग द्वारा लाइसेंस या किसी काम करवा लिया जाए तो उसे नियमों में उलझा दिया जाता है।

सीधी बात
सीएल देवांगन, आरटीओ अधिकारी, सरगुजा
सवाल- आरटीओ कार्यालय में बिना एजेंट के कोई काम नहीं हो रहा है।
जवाब- ऐसी बात नहीं है। जो आवेदक आते हैं उनका काम कार्यालय से हो रहा है।


सवाल- आरटीओ कार्यालय के सामने दर्जनों एजेंटों की दुकानें हैं।
जवाब- मेरा आरटीओ कार्यालय के बाहर कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है। कार्यालय के बाहर कौन क्या बेच रहा है, यह मेरी जवाबदारी नहीं।


सवाल- एजेंट कार्यालय में आकर काम कराते हैं।
जवाब- मैं अभी नया हूं। एजेंटों को नहीं पहचानता। एजेंटों की पहचान होती है तो उनका कार्यालय में प्रवेश वर्जित किया जाएगा।


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