जयपुर-पचपदरा एक्सप्रेस-वे की जद में आने से नरबदखेड़ा और केसरपुरा गांवों के ग्रामीणों की चिंता बढ़ गई है। बार-बार हो रहे भूमि अधिग्रहण से गांव के अस्तित्व पर संकट गहराता देख ग्रामीणों ने जिला प्रशासन से राहत की मांग की है।
ब्यावर। जयपुर-पचपदरा एक्सप्रेस-वे की जद में आने वाले गांवों को लेकर ग्रामीणों की चिंता बढ़ गई है। ग्राम नरबदखेड़ा और केसरपुरा के लोगों को जैसे ही इस परियोजना की जानकारी मिली, तभी से उन्हें अपने गांव उजड़ने और परिवारों के बिखरने की आशंका सताने लगी है। ग्रामीणों ने जिला प्रशासन को ज्ञापन देकर अपनी पीड़ा से अवगत कराया, लेकिन अब तक उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल सका है।
ग्रामीणों का कहना है कि विभिन्न विकास कार्यों के नाम पर पहले ही उनके गांव की काफी जमीन अधिग्रहित की जा चुकी है। अब एक्सप्रेस-वे के कारण गांव के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। ग्रामीणों से बातचीत के दौरान कई महिलाओं की आंखें छलक आईं, तो कुछ की रुलाई फूट पड़ी।
40 बीघा जमीन केंद्रीय विद्यालय में चली गई, गोल सर्किल में 20 बीघा और भंडार में 10 बीघा जमीन अधिग्रहित कर ली गई। एक ही गांव से बार-बार जमीन ली जा रही है। पाइपलाइन में भी जमीन चली गई। कृषि भूमि तक जाने के रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं। श्मशान घाट तक जाने का रास्ता भी नहीं छोड़ा जा रहा।
गांव को उजाड़े बिना एक्सप्रेस-वे को किसी अन्य स्थान से निकाला जाए। यदि गांव उजड़ गया तो ग्रामीणों की स्थिति दयनीय हो जाएगी। विकास व्यक्ति के लिए होना चाहिए, न कि विकास के लिए व्यक्ति की बलि दी जाए।
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ग्रामीणों की आजीविका कृषि और पशुपालन पर निर्भर है। पूरे गांव और खेतों के एक्सप्रेस-वे की जद में आने से लोग सदमे में हैं। पूरा गांव ही अधिग्रहण में जा रहा है। एक्सप्रेस-वे अन्य स्थान से निकाला जाए, ताकि ग्रामीणों को राहत मिल सके।
ब्यावर-गोमती और ब्यावर-पिंडवाड़ा फोरलेन में पहले ही दो बार जमीन पूरी तरह जद में आ चुकी है। अब काश्तकारों के खेत जाएंगे और मकान टूट जाएंगे। कुएं भी राजमार्ग की जद में आ गए हैं। पशुपालन ही अधिकांश लोगों की आजीविका का साधन है।
जब से पता चला है कि हमारा गांव उजड़ जाएगा, तब से सभी दुखी हैं। खेत चले जाएंगे। घर-परिवार बिखरने की चिंता सता रही है।
दिनभर मजदूरी कर परिवार चलाते हैं। पहले जमीन ब्रिज में चली गई, फिर बार-बार अधिग्रहण हुआ। करीब एक हजार साल से गांव बसा है, अब इसके उजड़ने की चिंता सता रही है।
यदि पूरा गांव ही जद में आ गया तो मवेशियों को लेकर कहां जाएंगे। गांव के चारों ओर राजमार्ग निकल चुके हैं। खेत जाने के लिए भी राजमार्ग पार करना पड़ता है। अब तो पूरा गांव ही संकट में है।
नौ पीढ़ियों से इसी गांव में रह रहे हैं। जो थोड़ी-बहुत जमीन बची है, उसे भी अधिग्रहित किया जा रहा है। अब ग्रामीणों के पास कोई विकल्प नहीं बचा है। सरकार को सहानुभूतिपूर्वक विचार कर इनकी समस्याएं सुननी चाहिए।