भोपाल

मध्यप्रदेश के इस शहर पर मंडरा रहा ‘मीथेन गैस विस्फोट’ का खतरा, ये है वजह

MP News: जिस आदमपुर छावनी को शहर के कचरे के वैज्ञानिक निष्पादन का मॉडल बनना था, वह पिछले आठ साल में विफल प्रयोगों की एक कहानी बन गई है। इससे शहर पर मंडराता मीथेन गैस विस्फोट का खतरा बढ़ गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हाल ही में इस मामले में टिप्पणी की है।

2 min read
Oct 05, 2025
Threat of methane gas explosion in Madhya Pradesh (फोटो सोर्स : पत्रिका)

शिवाशीष तिवारी

MP News: जिस आदमपुर छावनी को शहर के कचरे के वैज्ञानिक निष्पादन का मॉडल बनना था, वह पिछले आठ साल में विफल प्रयोगों की एक कहानी बन गई है। इससे कचरे का एक विशाल पहाड़ और भोपाल शहर पर मंडराता मीथेन गैस विस्फोट का खतरा, जैसा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हाल ही में टिप्पणी की है। नगर निगम ने इस संकट से निपटने के लिए अब 8 माह का लक्ष्य रखा है। इसके तहत 6 लाख टन पुराने कचरे (लीगेसी वेस्ट) को साफ किया जाएगा और प्रतिदिन आने वाले 850 टन कचरे के लिए नए सिरे से टेंडर जारी किया है।

ये भी पढ़ें

‘चक्रवाती तूफान’ का असर शुरू, 5 से 8 अक्टूबर तक जोरदार बारिश की चेतावनी

एक्सपर्ट की सलाह

आदमपुर में सेग्रीगेशन, बायो-रिकवरी और इनर्ट वेस्ट को साइंटिफिक लैंडफिल में दफनाने की प्रक्रिया समानांतर चले। खंती को केवल उठाने' की बजाय कचरे की आंतरिक संरचना का मूल्यांकन किया जाए। मीथेन जैसी गैसों के रिसाव होने से पहले मॉनिटरिंग सिस्टम जरूरी है।- डॉ. गौरव वैद्य, अर्बन इंफ्रास्ट्रक्चर एक्सपर्ट

इन तकनीकों से खत्म करना होगा लीगेसी वेस्ट

  • बायो-माइनिंगः पुराना कचरा छांटकर पुनः उपयोग योग्य सामग्री अलग करना और बाकी को सुरक्षित लैंडफिल में डालना।
  • रीक्लेम्ड सोलिड वेस्ट प्रोसेसिंग यूनिटः रिकवर किए गए कम्पोस्ट और आरडीएफ को उद्योगों में ईंधन के रूप में प्रयोग करना।
  • सेंसर-आधारित गैस मॉनिटरिंगः मीथेन उत्सर्जन को रियल-टाइम ट्रैक कर आपदा रोकी जा सकती है।
  • बायो-सीएनजी कन्वर्जनः इंदौर मॉडल की तर्ज पर गीले कचरे से ईंधन तैयार करना, जिससे गैस रिसाव और लैंडफिल दोनों कम होंगे।

नए टेंडर की खासियत

  • भुगतान अब वजन के बजाय खाली हुई भूमि क्षेत्र के आधार पर होगा, जिससे अधिक पारदर्शिता बनी रहेगी।
  • कंपनियों को टेंडर से तीन दिन पहले तक मौका मुआयना की छूट होगी। ताकी बाद में विवाद की स्थिति नहीं बनेगी।
  • 6 लाख टन लीगेसी वेस्ट की स्पष्ट परिभाषा दी गई है. जिससे आकलन में पारदर्शिता बढ़ेगी।

नए टेंडर की कमियां

  • टेंडर में टेक्निकल ऑडिटिंग एजेंसी का उल्लेख नहीं किया गया, जो निष्पादन की गुणवत्ता तय कर सके।
  • रोजाना आने वाले 850टन कचरे की रियल-टाइम प्रोसेसिंग व्यवस्था अस्पष्ट।

कचरे के पहाड़ खड़े होने के पांच कारण

  • 1.परियोजनाएं फेलः 2017-18 में कचरे से बिजली उत्पादन और बायो-सीएनजी प्लांट की योजनाएं अधूरी रहीं।
  • 2.अनुभव की कमीः नगर निगम ने कॉन्ट्रैक्ट में वित्तीय शर्तों को प्राथमिकता दी। इससे विशेषज्ञता वाले एजेंसियों की भागीदारी कम रही। मॉनिटरिंग भी नहीं हुई।
  • 3.अधूरा सेग्रीगेशनः निगम दावा करता रहा कि करीब 99 फीसदी कचरा अलग-अलग किया जा रहा, जबकि वास्तव में यह 70 फीसदी से अधिक नहीं था।
  • 4.गीले कचरे की अनदेखीः कंपनी ने गीला कचरा छुआ तक नहीं और वहीं सूखे कचरे का भी केवल 35 फीसदी ही रिसाइकिल किया।
  • 5.असफल प्रसंस्करण प्रणालीः मैकेनाइज्ड एमआरएफ की क्षमता करीब 400 टन प्रतिदिन की थी, पर केवल 200 टन ही उपयोग में लाया गया।

ये भी पढ़ें

बड़ी कार्रवाई, मासूमों को ‘जहर’ देने वाला डॉक्टर गिरफ्तार, श्रीसन फार्मा पर भी FIR, हो सकती है उम्रकैद

Updated on:
05 Oct 2025 09:44 am
Published on:
05 Oct 2025 09:43 am
Also Read
View All

अगली खबर