विभाग के अधिकारी तत्काल रिपोर्ट भेजने के आदेश देते हैं। इसके अलावा मोबाइल भी ले जाने की मनाही की है जबकि उसके बिना कोई काम भी नहीं होता है।
बच्चों को पढ़ाना ही जिनका मूल कार्य हैं, वह गुरुजी आज सरकारी योजनाओं और रजिस्टर-फाइलों में उलझकर मल्टीटास्किंग मशीन बन चुके हैं। कहीं घंटी बजाने से लेकर पौधों की जियो टैगिंग तक, तो कहीं दूध और पोषाहार बांटने से लेकर बीएलओ की जिम्मेदारी तक। गुरुजी से ऐसे काम कराए जा रहे हैं, जो अध्यापन से कहीं ज्यादा वक्त और ऊर्जा खा जाते हैं।
उस पर तुर्रा यह कि अगर परिणाम कमजोर आते हैं तो दोष भी शिक्षकों को ही जाता है। मजबूरी यह है कि अगर वे योजनाओं से जुड़े कार्य न करें तो अनुशासनात्मक कार्रवाई का खतरा और करें तो बच्चों की पढ़ाई का नुकसान। ऐसी ही दोहरी उलझनों-मुसीबतों का नाम है सरकारी शिक्षक।
सुबह प्रार्थना के बाद बच्चों को कतार में बैठाकर दूध पिलाने का काम शुरू हो जाता है। यह प्रक्रिया खत्म होते-होते पहला कालांश निकल जाता है। प्रदेश के सैकड़ों स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी नहीं हैं। ऐसे में घंटी बजाने जैसे काम भी शिक्षकों को ही करने पड़ते हैं।
शिविरा पंचांग के अनुसार एक शैक्षणिक सत्र में केवल 235 दिन ही शिक्षण कार्य के लिए तय हैं। इनमें भी प्राकृतिक आपदा, अतिवृष्टि प्रतियोगी परीक्षाएं, अवकाश और भीषण गर्मी के कारण पढ़ाई का समय और घट जाता है। यानी बच्चों को पढ़ाने का असली वक्त बहुत कम बचता है।
शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षकों को सारा काम ऑनलाइन करना पड़ता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों के स्कूलों में नेट कनेक्शन नहीं होने के कारण काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। वहीं विभाग के अधिकारी तत्काल रिपोर्ट भेजने के आदेश देते हैं। इसके अलावा मोबाइल भी ले जाने की मनाही की है जबकि उसके बिना कोई काम भी नहीं होता है।
सरकार ने शिक्षकों पर करीब 30 से अधिक तरह के काम डाल दिए हैं। इनमें हाउस होल्ड सर्वे, शाला स्वास्थ्य कार्यक्रम, डिजिटल प्रवेशोत्सव, पौधरोपण, इंस्पायर अवार्ड, आत्मरक्षा प्रशिक्षण, छात्रवृत्ति योजना, आपकी बेटी योजना, आधार व जन आधार सत्यापन, गुड टच-बैड टच, स्वीप कार्यक्रम, मतदाता जागरुकता, महंगाई राहत शिविरों में सहयोग, पोषाहार वितरण, पोषाहार का रिकॉर्ड रखना, पाठ्य पुस्तकें लाना, बच्चों की ऑनलाइन उपस्थिति दर्ज करना, बीएलओ कार्य आदि। यह सूची इतनी लंबी है कि पढ़ाई पीछे छूट जाती है।
शिक्षकों को पढ़ाने के बजाय अलग-अलग सरकारी कामों में उलझा दिया गया है। सरकार को चाहिए कि शिक्षकों से सिर्फ अध्यापन कार्य कराया जाए। तभी परीक्षा परिणाम सुधरेंगे और नामांकन भी बढ़ेगा।
सुभाष जोशी, प्रदेशाध्यक्ष, वरिष्ठ अध्यापक कला शिक्षक संघ