Arun Khetarpal: भारत का वो बहादुर सपूत, जिसने 1971 के भारत-पाक युद्ध में अकेले दुश्मन सैनिकों के 10 टैंक तबाह कर दिए थे। यही कारण है कि उनका नाम ‘टैंक किलर’ पड़ा। पाकिस्तान आज भी इस वीर सपूत का नाम सुनकर दहल जाता है।
Martyr Lieutenant Arun Khetarpal: देशभक्ति की लहर में डूबे सिनेमा के शौकीनों, अगर आपकी रगों में वीरता का खून दौड़ता है और 'उरी', 'शेरशाह' जैसी फिल्मों ने आपको गर्व से सीना चौड़ा किया है, तो तैयार हो जाइए। सिनेमा घरों में एक ऐसी फिल्म आ रही, जिसे देखने के बाद मस्तक और गर्व से ऊंचा हो जाएगा। फिल्म का नाम है- 'इक्कीस'
एक ऐसी फिल्म जो न सिर्फ दिल को छू लेगी, बल्कि रोंगटे खड़े कर देगी। यह फिल्म भारत के सबसे युवा परमवीर चक्र विजेता, सेकंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की अनकही कहानी है, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में मात्र 21 साल की उम्र में अपनी जान कुर्बान कर दी। मेकर्स ने हाल ही में इसका धमाकेदार मोशन पोस्टर जारी किया था, जो देखते ही आंखें नम कर देता है।
पोस्टर में अगस्त्य नंदा सैन्य वर्दी में खड़े हैं, चेहरे पर दृढ़ संकल्प, आंखों में जज्बा। टैंक की पृष्ठभूमि में लिखा है: "वह इक्कीस का था, इक्कीस का रहेगा।"
फिल्म 'इक्कीस' में अगस्त्य नंदा अरुण खेत्रपाल की भूमिका में हैं, जबकि धर्मेंद्र उनके दादा ब्रिगेडियर केएल खेत्रपाल (जो खुद एक वीर सैनिक थे) का किरदार निभा रहे हैं। जयदीप अहलावत एक आर्मी जनरल के रूप में नजर आएंगे, जो पाकिस्तानी कमांडर से आमने-सामने होते हैं।
अब बात करते हैं असली हीरो की। अरुण खेत्रपाल का जन्म 14 अक्टूबर 1950 को पुणे में हुआ। लॉरेंस स्कूल, सनावर और एनडीए, खड़कवासला से पढ़ाई की। 13 जून 1971 को 17 पूना हॉर्स रेजिमेंट में कमीशन हुए, यानि युद्ध से ठीक पहले।
1971 का भारत-पाक युद्ध जब पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) आजादी की जंग लड़ रहा था। अरुण की रेजिमेंट 47वीं इन्फैंट्री ब्रिगेड के अधीन थी। 16 दिसंबर 1971 को बसंतर (पंजाब) के युद्धक्षेत्र में चमत्कार हुआ। पाकिस्तानी सेना ने 13 लांसर्स रेजिमेंट के साथ काउंटर-अटैक किया। धुंध के स्क्रीन के पीछे छिपे 40+ टैंकों के साथ। भारतीय सैनिकों को भारी नुकसान हो रहा था।
यहां अरुण ने कमाल कर दिया। अपने सेंटुरियन टैंक (फैमागुस्ता Jx 202) से अकेले ही दुश्मन पर टूट पड़े। घायल होने के बावजूद, उन्होंने 10 पाकिस्तानी टैंकों को नेस्तनाबूद कर दिया। उनके साथी टैंक उड़ चुके थे, लेकिन अरुण ने हार नहीं मानी। रेडियो पर उनके आखिरी शब्द आज भी कांपते हैं: "नहीं सर, मैं अपने टैंक को नहीं छोड़ूंगा। मेरी मेन गन अभी भी काम कर रही है, और मैं इन बास्टर्ड्स को मार गिराऊंगा!"
अंत में, उनका टैंक हिट हो गया। आग की लपटों में भी उन्होंने दुश्मन को ब्रेकथ्रू नहीं लेने दिया। 21 साल की उम्र में शहीद हो गए। मरणोपरांत परमवीर चक्र मिला। भारत का सबसे ऊंचा सैन्य सम्मान। उनकी स्मृति में अहमदनगर के आर्मर्ड कोर सेंटर में उनका टैंक आज भी संरक्षित है।